Friday, April 15, 2022

शिखा (चोटी) का महत्व

 *💠🛑 शिखा (चोटी) 🛑💠*

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*🔶 शिखा का महत्त्व विदेशी जान गए, पर हिन्दू भूल गए । हिन्दू धर्म का छोटे से छोटा सिद्धान्त, छोटी से छोटी बात भी अपनी जगह पूर्णतया वैज्ञानिक एवं कल्याणकारी है । छोटी सी शिखा अर्थात् चोटी भी कल्याण एवं विकास का साधन बनकर अपनी पूर्णता व आवश्यकता को दर्शाती है । शिखा का त्याग करना मानो अपने कल्याण का त्याग करना है । जैसे घड़ी के छोटे पुर्जे की जगह बडा पुर्जा काम नहीं कर सकता, क्योंकि भले वह छोटा है, परन्तु उसकी अपनी महत्ता है । शिखा न रखने से हम जिस लाभ से वंचित रह जाते हैं, उसकी पूर्ति अन्य किसी साधन से नहीं हो सकती ।*


*🔶 हरिवंश पुराण में एक कथा आती है - हैहय व तालजंघ वंश के राजाओं ने शक, यवन, काम्बोज, पारद आदि राजाओं को साथ लेकर राजा बाहु का राज्य छीन लिया था । राजा बाहु अपनी पत्नी के साथ वन में चले गए । वहाँ राजा की मृत्यु हो गयी । महर्षि और्व ने उसकी गर्भवती पत्नी की रक्षा की और उसे अपने आश्रम में ले आए । वहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा सगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।*


*🔶 राजा सगर ने महर्षि और्व से शस्त्र व शास्त्र की विद्या सीखी । समय पाकर राजा सगर ने हैहयों को मार डाला और फिर शक, यवन, काम्बोज, पारद आदि राजाओं को भी मारने का निश्चय किया । ये शक, यवन आदि राजा महर्षि वसिष्ठ की शरण में चले गए । महर्षि वसिष्ठ ने उन्हें कुछ शर्तों पर अभयदान दे दिया और राजा सगर को आज्ञा दी कि वे उनको न मारे । राजा सगर अपनी प्रतिज्ञा भी नहीं छोड़ सकते थे और महर्षि वसिष्ठ जी की आज्ञा भी नहीं टाल सकते थे । इसलिए उन्होंने उन राजाओं का सिर शिखा सहित मुँडवाकर छोड़ दिया ।*


*🔶 प्राचीन काल में किसी की शिखा काट देना मृत्यु दण्ड के समान माना जाता था । लेकिन बड़े दु:ख की बात है कि आज हिन्दू लोग अपने हाथों से ही अपनी शिखा काट रहे हैं । शिखा न रखना यह गुलामी मानसिकता की पहचान है, जबकि शिखा हिन्दुत्व की पहचान है । यह हमारे धर्म और संस्कृति की रक्षक है । इतिहास गवा है शिखा के विशेष महत्व के कारण ही हिन्दुओं ने यवन शासन के दौरान अपनी शिखा की रक्षा के लिए सिर कटवा दिए, पर शिखा नहीं कटवायी । भारतीय परम्परा में प्राचीन काल से ही सिर पर चोटी रखने का विधान है, जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता है । दक्षिण भारत में तो आधे सिर पर 'गोखुर' के समान चोटी रखते हैं । चोटी बौद्धिक विकास में बड़ी सहायक सिद्ध होती है ।*


*🔶 प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ० आई०ई० क्लार्क (एम.डी.) ने कहा है - "मैंने जब से इस विज्ञान की खोज की हैं तब से मुझे विश्वास हो गया है कि हिन्दुओं का हर एक नियम विज्ञान से परिपूर्ण है । चोटी रखना हिन्दू धर्म की मर्यादा ही नहीं, यह सुषुम्ना नाड़ी के केन्द्रों की रक्षा के लिए ऋषि-मुनियों की खोज का विलक्षण चमत्कार भी है ।"*


*🔶 इसी प्रकार पाश्चात्य विद्वान मिस्टर अर्ल थामस लिखते हैं - "सुषुम्ना की रक्षा हिन्दू लोग चोटी रखकर करते हैं, जबकि अन्य देशों में लोग सिर पर लम्बे बाल रखकर या हैट पहनकर करते हैं । इन सब में चोटी रखना सबसे लाभकारी है । किसी भी प्रकार से सुषुम्ना की रक्षा करना जरुरी है ।"*


*🔶 वास्तव में मानव शरीर को प्रकृति ने इतना सबल बनाया है कि वह बड़े से बड़े आघात को भी सहन करके रह जाता है । परन्तु शरीर में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिन पर आघात होने से मनुष्य की तत्काल मृत्यु हो सकती है, इन्हें मर्म स्थान कहा जाता है । शिखा के अधोभाग में भी मर्म स्थान होता है,* जिसके लिए सुश्रुताचार्य ने लिखा है -


       *मस्तकाभ्यन्तरोपरिष्टात्*

       *शिरासन्धि सन्निपातो ।*

       *रोमावर्तोऽधिपति*

       *स्तत्रपि सद्यो मरणम् ।।*


       अर्थात् मस्तक के भीतर ऊपर जहाँ बालों का आवर्त (भंवर) होता है, वहाँ सम्पूर्ण नाड़ियों व संधियों का मेल है, उसे 'अधिपति मर्म' कहा जाता है । यहाँ चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती है ।


*🔶 सुषुम्ना के मूल स्थान को 'मस्तुलिंग' कहते हैं । 'मस्तिष्क' के साथ ज्ञानेन्द्रियों - कान, नाक, जीभ, आँख आदि का सम्बन्ध है और कर्मेन्द्रियों - हाथ, पैर, गुदा, इन्द्रिय आदि का सम्बन्ध 'मस्तुलिंग' से है । मस्तिष्क व मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं, उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है । मस्तिष्क ठण्डक चाहता है और मस्तुलिंग गर्मी । मस्तिष्क को ठण्डक पहुँचाने के लिए 'क्षौरकर्म' करवाना और मस्तुलिंग को गर्मी पहुँचाने के लिए 'गोखुर' के परिमाण के बाल रखना आवश्यक होता है । बाल कुचालक हैं, इसलिए चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठण्डक से मस्तुलिंग की रक्षा करते हैं ।*

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