Sunday, July 21, 2019

पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें श्रावण महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था।


अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के श्रावण महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।


श्रावण में शिवशंकर की पूजा :- श्रावण के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरुआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।


महादेव का अभिषेक :- महादेव का अभिषेक करने के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्च्छित हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है।


बेलपत्र और समीपत्र :- भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी- तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है।


बेलपत्र ने दिलाया वरदान : बेलपत्र महादेव को प्रसन्न करने का सुलभ माध्यम है। बेलपत्र के महत्व में एक पौराणिक कथा के अनुसार एक भील डाकू परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटा करता था। श्रावण महीने में एक दिन डाकू जंगल में राहगीरों को लूटने के इरादे से गया। एक पूरा दिन-रात बीत जाने के बाद भी कोई शिकार नहीं मिलने से डाकू काफी परेशान हो गया।

इस दौरान डाकू जिस पेड़ पर छुपकर बैठा था, वह बेल का पेड़ था और परेशान डाकू पेड़ से पत्तों को तोड़कर नीचे फेंक रहा था। डाकू के सामने अचानक महादेव प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। अचानक हुई शिव कृपा जानने पर डाकू को पता चला कि जहां वह बेलपत्र फेंक रहा था उसके नीचे शिवलिंग स्थापित है। इसके बाद से बेलपत्र का महत्व और बढ़ गया।


श्रावण में महामृत्युंजय मंत्र का फल मिलता है 10 गुना 


श्रावण मास में महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु टलती है। आरोग्य की प्राप्ति होती है। इस माह में यह मंत्र 10 गुना अधिक फल देता है। 


महामृत्युंजय मंत्र : 

ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ॥

स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है।

दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है।

इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएं दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का सदैव श्रद्धानुसार जप करना चाहिए। 

निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है : -

(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।


(2) किसी महारोग से पीड़ित होने पर।

(3) मुकदमा आदि में फंसने पर

(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।

(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।

(6) धन-हानि हो रही हो।

(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।

(8) राजभय हो।

(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।

(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।

(11) परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।

(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।

13) प्राकृतिक आपदा आने पर।


पं. संतोष तिवारी
6299953415

Tuesday, July 16, 2019

शिव स्तोत्र संग्रह

।। चन्द्रशेखराष्टकं ।।

चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहिमाम् ।
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ १॥

रत्नसानुशरासनं रजतादिशृङ्गनिकेतनं
सिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युताननसायकम् ।
क्षिप्रदघपुरत्रयं त्रिदिवालयैभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ २॥

पञ्चपादपपुष्पगन्धपदाम्बुजदूयशोभितं
भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रह।म् ।
भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशनं भवमव्ययं
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ३॥

मत्त्वारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीमनोहरं
पङ्कजासनपद्मलोचनपुजिताङ्घ्रिसरोरुहम् ।
देवसिन्धुतरङ्गसीकर सिक्तशुभ्रजटाधरं
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ४॥

यक्षराजसखं भगाक्षहरं भुजङ्गविभूषणं
शैलराजसुता परिष्कृत चारुवामकलेवरम् ।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ५॥

कुण्डलीकृतकुण्डलेश्वरकुण्डलं वृषवाहनं
नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम् ।
अन्धकान्धकामा श्रिता मरपादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ६॥

भषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं
दक्षयज्ञर्विनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम् ।
भुक्तिमुक्तफलप्रदं सकलाघसङ्घनिवर्हनं 
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ७॥

भक्त वत्सलमचिञ्तं निधिमक्षयं हरिदम्वरं
सर्वभूतपतिं परात्पर प्रमेयमनुत्तमम् ।
सोमवारिज भूहुताशनसोमपानिलखाकृतिं 
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ८॥

विश्वसृष्टिविधालिनं पुनरेव पालनतत्परं
संहरन्तमपि प्रपञ्चम शेषलोकनिवासिनम् ।
क्रिडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथ समन्वितं
चन्द्रशेखर चन्द्रशेकर चन्द्रशेकर रक्षमाम् ॥ ९॥

।। इति चन्द्रशेखराष्टकं सम्पूर्णम् ।।

॥ शम्भुस्तुति॥

नमामि शम्भो नमामि शम्भो 
नमामि शम्भो नमामि शम्भो

नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं नमामि सर्वज्ञमपारभावम् ।
नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥१॥

नमामि देवं परमव्ययंतं उमापतिं लोकगुरुं नमामि ।
नमामि दारिद्रविदारणं तं नमामि रोगापहरं नमामि ॥२॥

नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् ।
नमामि विश्वस्थितिकारणं तं नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥

नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं नमामि नित्यं क्षरमक्षरं तम् ।
नमामि चिद्रूपममेयभावं त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥

नमामि कारुण्यकरं भवस्या भयंकरं वापि सदा नमामि ।
नमामि दातारमभीप्सितानां नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥

नमामि वेदत्रयलोचनं तं नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् ।
नमामि पुण्यं सदसद्व्यतीतं नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥

नमामि विश्वस्य हिते रतं तं नमामि रूपाणि बहूनि धत्ते ।
यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥

यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं तथागतिं लोकसदाशिवो यः ।
आराधितो यश्च ददाति सर्वं नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥

नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं उमापतिं तं विजयं नमामि ।
नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥

नमामि देवं भवदुःखशोकविनाशनं चन्द्रधरं नमामि ।
नमामि गंगाधरमीशमीड्यम् उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥

नमाम्यजादीशपुरन्दरादिसुरासुरैरर्चितपादपद्मम ।
नमामि देवीमुखवादनाना मिक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत ॥११॥

पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैर्विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः ।
अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥

।। इति शम्भुस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

॥ श्रीबदरीनाथाष्टकम् ॥

भू-वैकुण्ठ-कृतं वासं देवदेवं जगत्पतिम्।
चतुर्वर्ग-प्रदातारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ १॥

तापत्रय-हरं साक्षात् शान्ति-पुष्टि-बल-प्रदम्।
परमानन्द-दातारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ २॥

सद्यः पापक्षयकरं सद्यः कैवल्य-दायकम्।
लोकत्रय-विधातारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ३॥

भक्त-वाञ्छा-कल्पतरुं करुणारस-विग्रहम्।
भवाब्धि-पार-कर्तारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ४॥

सर्वदेव-स्तुतं सश्वत् सर्व-तीर्थास्पदं विभुम्।
लीलयोपात्त-वपुषं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ५॥

अनादिनिधनं कालकालं भीमयमच्युतम्।
सर्वाश्चर्यमयं देवं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ६॥

गन्दमादन-कूटस्थं नर-नारायणात्मकम्।
बदरीखण्ड-मध्यस्थं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ७॥

शत्रूदासीन-मित्राणां सर्वज्ञं समदर्शिनम्।
ब्रह्मानन्द-चिदाभासं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ८॥

श्रीबद्रीशाष्टकमिदं यः पटेत् प्रयतः शुचिः।
सर्व-पाप-विनिर्मुक्तः स शान्तिं लभते पराम् ॥ ९॥

       ॥ ॐ तत्सत्॥

॥ वेदसार शिवस्तव:॥

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ॥१॥

भावार्थ— जो सम्पूर्ण प्राणियों के रक्षक हैं, पापका ध्वंस करने वाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराजका चर्म पहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूटमें श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजी का मैं स्मरण करता हुॅं ||1||

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ॥२॥

भावार्थ— चन्द्र,सूर्य और अग्नि— तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देवदु:खदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूतिभूषण, नित्यानन्दस्वरूप, पंचमुख भगवान् महादेवकी मैं स्तुति करता हूॅं ||2||

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ॥३॥

भावार्थ— जो कैलासनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ हैं, बैलपर चढ़े हुए हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसारक आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीर में भस्म लगाये हुए हैं और श्री पार्वतीजी जिनकी अद्र्धागिंनी हैं, अन पंचमुख महादेवजी को मैं भजता हुॅं ||3||

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले
महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ॥४॥

भावार्थ— हे पार्वतीवल्लभ महादेव ! हे चन्द्रशेखर ! हे महेश्वर ! हे त्रिशूलिन ! हे जटाजूटधरिन्! हे विश्वरूप ! एकमात्र आप ही जगत् में व्यापक हैं। हे पूर्णरूप प्रभो ! प्रसन्न् होइये, प्रसन्न् होइये ||4||

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ॥५॥

भावार्थ— जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत् के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्राणवद्वारा जाननेयोग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभुको मैं भजता हूॅ ||5||

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु-
र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो
न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ॥६॥

भावार्थ— जो ज पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश है; न तन्द्रा हैं, निन्द्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है, उन मूर्तिहीन त्रिमूर्ति की मैं स्तुति करता हूॅं ||6||

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ॥७॥

भावार्थ— जो अजन्मा हैं नित्य हैं, कारण के भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं प्रकाशकों के भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रय से विलक्षण हैं, अज्ञान से परे हैं, अनादि और अनन्त हैं, उन परमपावन अद्वैतस्वरूप को मैं प्रणाम करता हूॅं ||7||

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥८॥ 

भावार्थ— हे विश्वमूर्ते ! हे विभो ! आपको नमस्कार है। नमस्कार है हे चिदानन्दमूर्ते ! आपको नमस्कार हैं नमस्कार है। हे तप तथा योगसे प्राप्तव्य प्रभो ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। वेदवेद्य भगवन् ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है ||8||

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शंभो महेश त्रिनेत्र
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ॥९॥

भावार्थ— हे प्रभो ! हे त्रिशूलपाणे ! हे विभो ! हे विश्वनाथ ! हे महादेव ! हे शम्भो ! हे महेश्वर ! हे त्रिनेत्र ! हे पार्वतीप्राणवल्लभ ! हे शान्त ! हे कामारे ! हे त्रपुरारे ! तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, माननीय है और न गणनीय है ||9||

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्
काशीपते करुणया जगदेतदेक-
स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ॥१०॥

भावार्थ— हे शम्भो ! हे महेश्वर ! हे करूणामय ! हे त्रिशूलिन् ! हे गौरीपते ! हे पशुपते ! हे पशुबन्धमोचन ! हे काशीश्वर ! एक तुम्हीं करूणावश इस जगत् की उत्पति, पालत और संहार करते हो; प्रभो ! तुम ही इसके एक मात्र स्वामी हो ||10||


त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन् ॥११॥

भावार्थ— हे देव ! हे शंकर ! हे कन्दर्पदलन ! हे शिव ! हे विश्वनाथ ! हे इश्वर ! हे हर ! हे हर ! हे चराचरजगद्रूप प्रभो ! यह लिंगस्वरूप समस्त जगत् तुम्हीं से उत्पन्न होता है, तुम्हीं में ​स्थित रहता है और तुम्हीं में लय हो जाता है ||11||

।। इति श्रीमच्छकंराचार्यकृतो वेदसारशिवस्तव: सम्पूर्ण:।।


श्री शिव स्तुति 

शीश गंग अर्धांग पार्वती सदा विराजत कैलासी!
नंदी भृंगी नृत्य करत है, गुणभक्त शिव की दासी!!

सीतल मद्सुगंध पवन बहे बैठी हैं शिव अविनाशी!
करत गान गन्धर्व सप्त सुर, राग - रागिनी सब गासी!!

अक्ष रक्ष भैरव जह डोलत बोलत है अनेक वासी!
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत है गुन्जासी!!

कल्प वृक्ष अरु पारिजात लग रहे हैं लक्षासी!
सूर्य कांति सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्ति नव मीमासी!!

छहों ऋतु नित फलत फुलत है पुष्प चढत है वर्षा सी!
देव मुनि जन की भीड़ पडत, निगम रहत जो नितगासी !!

ब्रह्मा विष्णु जाको ध्यान धरत है, कछु शिव हमको परमसी!
ऋद्धि-सिद्धि के दाता शंकर, सदा आनंदित सुखरासी!!

जिनके सुमिरन सेवा करते टूट जाये यम की फांसी!
त्रिशूल फरसा का ध्यान निरंतर, मन लगाये कर जो ध्यासी!!

दूर करे विपदा शिव तिनकी जन्म सफल शिव्पदपासी!
कैलाशी काशी के वासी, अविनाशी सुध मेरी लीज्यो!
सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान दरस दीज्यो!!

तुम तो प्रभु सदा सयाने, अवगुण मेरे सदा ढकियो!
सब अपराध क्षमा कर शंकर किंकर की विनती सुनियो!!


|| वैद्यनाथाष्टकम्||

श्रीरामसौमित्रिजटायुवेद षडाननादित्य कुजार्चिताय |
श्रीनीलकण्ठाय दयामयाय श्रीवैद्यनाथाय नमःशिवाय || १||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

गङ्गाप्रवाहेन्दु जटाधराय त्रिलोचनाय स्मर कालहन्त्रे |
समस्त देवैरभिपूजिताय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || २||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

भक्तःप्रियाय त्रिपुरान्तकाय पिनाकिने दुष्टहराय नित्यम् |
प्रत्यक्षलीलाय मनुष्यलोके श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ३||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

प्रभूतवातादि समस्तरोग प्रनाशकर्त्रे मुनिवन्दिताय |
प्रभाकरेन्द्वग्नि विलोचनाय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ४||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

वाक् श्रोत्र नेत्राङ्घ्रि विहीनजन्तोः वाक्श्रोत्रनेत्रांघ्रिसुखप्रदाय |
कुष्ठादिसर्वोन्नतरोगहन्त्रे श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ५||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

वेदान्तवेद्याय जगन्मयाय योगीश्वरद्येय पदाम्बुजाय |
त्रिमूर्तिरूपाय सहस्रनाम्ने श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ६||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

स्वतीर्थमृद्भस्मभृताङ्गभाजां पिशाचदुःखार्तिभयापहाय |
आत्मस्वरूपाय शरीरभाजां श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ७||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय स्रक्गन्ध भस्माद्यभिशोभिताय |
सुपुत्रदारादि सुभाग्यदाय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ८||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

वालाम्बिकेश वैद्येश भवरोगहरेति च |
जपेन्नामत्रयं नित्यं महारोगनिवारणम् || ९||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||


|| इति श्री वैद्यनाथाष्टकम् ||

       
पं. संतोष तिवारी
6299953415

मारुति स्तोत्र

मारुतिस्तोत्र



भीमरुपी महारुद्रा वज्र हनुमान मारुती ।
वनारी अंजनीसूता रामदूता प्रभंजना ॥१॥
महाबळी प्राणदाता सकळां उठवी बळें ।
सौख्यकारी शोकहर्ता धूर्त वैष्णव गायका ॥२॥
दीनानाथा हरीरुपा सुंदरा जगदंतरा ।
पातालदेवताहंता भव्यसिंदूरलेपना ॥३॥
लोकनाथा जगन्नाथा प्राणनाथा पुरातना ।
पुण्यवंता पुण्यशीळा पावना परितोषका ॥४॥
ध्वजांगे उचली बाहो आवश लोटता पुढे ।
काळाग्नि काळरुद्राग्नि देखतां कांपती भयें ॥५॥
ब्रह्मांडे माइलीं नेणों आंवाळे दंतपंगती ।
नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाळा भृकुटी ताठिल्या बळें ॥६॥
पुच्छ तें मुर्डिलें माथा किरीटी कुंडलें बरीं ।
सुवर्ण कटि कांसोटी घंटा किंकिणि नागरा ॥७॥
ठकारे पर्वता ऐसा नेटका सडपातळू ।
चपळांग पाहतां मोठें महाविद्युल्लतेपरी ॥८॥
कोटिच्या कोटि उड्डाणें झेंपावे उत्तरेकडे ।
मंद्राद्रीसारखा द्रोणू क्रोधे उत्पाटीला बळें ॥९॥
आणिला मागुतीं नेला आला गेला मनोगती ।
मनासी टाकीले मागे गतीसी तुळणा नसे ॥१०॥
अणूपासोनि ब्रह्मांडाएवढा होत जातसे ।
तयासी तुळणा कोठें मेरु मंदार धाकुटे ॥११॥
ब्रह्मांडाभोंवते वेढे वज्रपुच्छें करुं शके ।
तयासी तुळणा कैंची ब्रह्मांडीं पाहतां नसे ॥१२॥
आरक्त देखिले डोळां ग्रासिलें सूर्यमंडळा ।
वाढतां वाढतां वाढे भेदीलें शून्यमंडळा ॥१३॥
धनधान्य पशुवृध्दि पुत्रपौत्र समस्तही ।
पावती रुपविद्यादि स्तोत्रपाठेंकरूनियां ॥१४॥
भूतप्रेतसमंधादि रोगव्याधि समस्तही ।
नासती तुटती चिंता आनंद भीमदर्शनें ॥१५॥
हे धरा पंधराश्लोकी लाभली शोभली बरी ।
दृढदेहो निसंदेहो संख्या चंद्रकळा गुणें ॥१६॥
रामदासी अग्रगण्यू कपिकुळासि मंडणू ।
रामरुपी अंतरात्मा दर्शनें दोष नासती ॥१७॥
॥इति श्रीरामदासकृतसंकटनिरसन मारुतीस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

नवग्रह पूजा

॥ नवग्रह मण्डल - पूजन ॥

सूर्यः - ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च । हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥ जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । तमोऽरिसर्वपापघ्नं सूर्य मावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भू र्भुव : स्व : कलिङ्ग देशोद्भव काश्यप गौत्र रक्तवर्ण भो सुर्य । इहागच्छ , इह तिष्ठ ॐ सूर्याय नमः , श्री सूर्य मावाहयामि , स्थापयामि ।

चन्द्रः - ॐ इमं देवा असपत्न सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठयाय महते जान राज्यायेन्द्र स्येन्द्रियाय ।

इमम मुष्य पुत्रम मुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना राजा ॥

दधि शङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम् । ज्योत्स्नापतिं निशानाथं सोममावहयाम्यहम् ॥

ॐ भू र्भुव : स्व यमुनातीरोद्भव आत्रेय गोत्र शुक्ल वर्ण भो सोम । इहागच्छ , इहतिष्ठ ॐ सोमाय नम :, सोम मावाहयामि , स्थापयामि ।

मंगलः - ॐ अग्निर्मूर्धा दिव : ककुत्पति : पृथिव्या अयम् । अपा रेता सि जिन्वति ॥

धरणी गर्भ सम्भूतं विधुतेजस्समप्रभम् । कुमारं शक्ति हस्तं च भौममावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भू र्भुव : स्व : अवन्तिदेशोद्भव भारद्वाज गौत्र रक्त वर्ण भो भौम । इहागच्छ , इहतिष्ठ ॐ भौमाय नमः भौमामावाहयामि , स्थापयामि ।

बुध :- ॐ उद्‌बुध्यस्वाग्ने , प्रति जागृहि त्वमिष्ठापूर्ते स सृजेथामयं च । अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत् ॥

प्रियड्गुकलिकानासं रूपेणाप्रतिमं बुधम् । सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भू र्भुव : स्व : मगधदेशोद्भव आत्रेय गोत्र पीतवर्ण भो बुध इहागच्छ , इहतिष्ठ ॐ बुधाय नमः बुध मावाहयामि , स्थापयामि ।

बृहस्पतिः - ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् घुमद्विभाति क्रतुमञ्चनेषु । यद्दीदयच्छवस ऋत प्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ।

उपयाम गृहीतोऽसि बृहस्पतये त्वैष ते योनि र्बहस्पतये त्वा ॥

देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चनसंनिभम् । वन्धभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भू र्भुव : स्व : सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरस गौत्र पीत वर्ण भो गुरो । इहाच्छ , इहातिष्ठ ॐ बृहस्पतये नमः , बृहस्पति मावाहयामि , स्थापयामि ।

शुक्रः - ॐ अन्नात्परिस्त्रुसो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पय : सोमं प्रजापति । ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान शुकमन्धस इन्द्रस्येन्द्रिय मिदं पयोऽमृतं मधु ॥

हिमकुन्द मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् । सर्वशास्त्र प्रवक्तारं शुक्रमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भू र्भुव : स्व : भोज कट देशोद्भव भार्गव गौत्र शुक्ल वर्ण भो शुक्र । इहागच्छ , इह तिष्ठ ॐ शुक्राय नम : शुक्रमावहयामि स्थापयामि ।

शनिः - ॐ शं नो देवीर भिष्टय आपो भवन्तु पीतये । शं योरभि स्त्रवन्तु न : ॥

नीलाम्बुज समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् । छाया मार्तण्ड सम्भूतं शनि मावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भू र्भुव : स्व : सौराष्ट्र देशोद्भव काश्यप गौत्र कृष्ण वर्ण भो शनैश्चर । इहागच्छ , इह तिष्ठ ॐ शनैश्चराय नमः , शनैश्चरमावाहयामि , स्थापयामि ।

राहू :- ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूति सदावृध : सखा । कया शचिष्ठया वृता । अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्य विमर्दनम् । सिंहिकागर्भ सम्भूतं राहुमावाहयामि , स्थापयामि ।

ॐ भू र्भुव : स्व : राठिन पुरोद्भव पैठीन सगौत्र कृष्ण - वर्ण भो राहो । इहागच्छ , इहतिष्ठ ॐ राहवे नम : राहुमावाहयामि स्थापयामि ।

केतुः - ॐ केतु कृण्वन्न केतवे पेशो मर्या अपेशसे । समुषद्धिर जायथा : ॥

पलाश धूम्र संङ्काशं तारकाग्रहमस्तकम् । रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतुमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भू र्भुव : स्व : अन्तर्वेदि समुद्भव जैमिनिगौत्र धूम्रवर्ण भो केतो । इहागच्छ इहतिष्ठ ॐ केतवे नमः , केतु मावाहयामि , स्थापयामि ।

प्रतिष्ठाः - ॐ मनो जूति र्जुषतामाज्यस्य बृहस्पति र्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु । विश्वे देवास इह मादयन्तामो ३ प्रतिष्ठ : ॥

अस्मिन् नवग्रह मण्डले आवाहिता : सूर्यादिनवग्रहा देवा : सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।

तदन्तर यजमान षोडशोपचार पूजन करें :---

तत : पादयोपाद्यं समर्पयामि । हस्तयोर्घ्यं समर्पयामि । र्स्वांगे स्नानीयं समर्पयामि । पंचामृत स्नानं समर्पयामि । शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि । मुखे आचमनीय समर्पयामि । पुनराचमन समर्पयामि । वस्त्रोप वस्त्रार्थे समर्पयामि । यज्ञोपवीतं समर्पयामि । पुनराचमनीयं समर्पयामि । गन्द्यं समर्पयामि । गंद्यान्तेऽक्षतान समर्पयामि अबीरं गुलालं हरिद्राचूर्णञ्च समर्पयामि । सौभाग्य द्रव्याणि समर्पयामि । सिन्दूरं समर्पयामि । नाना सुगंधि द्रव्याणि समर्पयामि । पुष्पाणि समर्पयामि । दुर्वाकुंराणि समर्पयामि । धूपमाघ्रापयामि । प्रत्यक्ष दीपं दर्शयामि । करोदुवर्तनार्थे पुनर्गन्धं समर्पयामि । मुखवासनार्थे ताम्बूलं पूंगीफलं समर्पयामि । कृताया : पूजाया : सादगुन्यार्थे यथाशक्ति दक्षिणा समर्पयामि ।

आरती :- ॐ कर्पूर गौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्र हारम् । सदा वसन्तं हृदयार विन्दे भवं भवानी सहितं नमामि । कदली गर्भ सम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् । आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य में वरदो भव ॥

पुष्पाञ्जली :- ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवा स्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् । ते ह नाकं महिमान : सचन्त यत्र पूर्वे साध्या : सन्ति देवा : ॥

नाना सुगन्धि पुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर : ॥

मन्त्र पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि नमः ।

प्रदक्षिणाः - यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च ।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे ॥

प्रार्थनाः - ब्रह्मा मुरारीस्त्रि पुरांतकारी भानुः शशी : भूमि सुतो बुधश्च । गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव : सर्वे ग्रहा : शान्तिकरा : भवन्तु ॥

ॐ ग्रहा उर्जाहुत योव्यन्तो प्रियायमतिम् । तेषां विशि प्रियाणां वोहमिष मूर्ज : समग्रभमुपयाम गृहीतो सीन्द्रायत्वाजुष्ट गृह्यम्येप्रते , योनिरिन्द्रायत्वा जुष्टतमम् ॥१॥

ॐ सम्पृचौस्तथ : संमाभद्रेण पृङ्कक्तं विप्रचौस्थो विमापाभना पृङ्कतम् ग्रहा राज्यं प्रयच्छंति ग्रहाराज्यं हरंति च । ग्रहैस्तु व्यापितं सर्व त्रैलोक्यं स चराचरम् ॥ कल्याणानि दिवामणि : सुललिता कान्ति कलानां निधि । लक्ष्मीक्ष्मातनयो बुधश्च बुधता , जीवश्चिरञ्जीविताम् ॥

साम्राज्यं भृगुजो ऽर्कजो विजयतो , राहुर्बलोत्कर्षतां । केतुर्यच्छतु वांछितफलं , सुख संपदाम् ॥

सूर्य : शौर्यमथेन्दु रूच्च पदवीं सन्मङ्गलं मङ्गल : सद्‌बुद्धि च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्र : सुखं शं शनिः । राहु र्बाहुबलं करोतु सततं केतुं : कुलस्योन्नतिं नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहा : ॥

अनया पूजया सूर्यादिनवग्रहा : देवता : प्रीयन्तां न ममा ॥

                     पं. संतोष तिवारी
                     6299953415

वरुण पूजा

॥ वरुण पूजा ॥

पृथ्वी पर अष्ट कमल बनाकर अक्षत रख कर उस पर वरुण पात्र रखें ।

ॐ महीधौ : पृथ्वी च न ऽइमं यज्ञं मिमिक्षताम् । पिपृतान्नों भरीमभि : ।

कलश के हाथ लगावें या अनामिका से स्पर्श करें ।

ॐ आजिघ्र कलशं मह्मात्वा विशंत्विन्दव : ।

पुनरुर्जा निवर्त्त स्वसान : सहस्त्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशाताद्रयि : ॥

जल में अक्षत छोडें

ॐ तत्त्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भि : । अहेऽमानो वरुणेहवोध्युरूश र्ठ समान आयु : प्रमोषी : ॥

मकर स्थं पाश हस्तमम्भसां पतिमीश्वरम् । आवाहये प्रतीचीशं वरुणं यादसां पतिम् ॥

ॐ भू र्भुवस्व : अस्मिन् कलशे वरुण साङ्गं सपरिवारं सायुधंसशक्तिकम् आवाहयामि स्थापयामि ।

स्नानः - ॐ वरुणस्योत्तंभनमसि वरुणस्य स्कंभ सर्जनीस्थो । वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद ॥

पंचामृतः - ॐ पंचनध : सरस्वती मपियन्ति सस्त्रोतस : । सरस्वती तु पंचधासोदेशे भवत्‌सरित् ॥

गंगाजलः - नमामि गंगे तव पादपंकजं , सुरासुरैर्वदित दिव्य रुपम् । भुक्तिं च मुक्तिं प्रददासि नित्यं , भावानुसारेण सदा नराणाम ॥

वस्त्रम् : - सर्वभूषाधिके शुद्धे लोक लज्जा निवारणे । मयोपपादिते वस्त्रे गृहाण परमेश्वर : ॥

मोलीबांधेः - ॐ सुजातो ज्योतिषा सहशर्म वरुथ मा सदत्स्व : । वासो अग्नेविश्वरूपर्ठ संव्ययस्व विभावसो ॥

गंधम् : - गंधद्दारां दुराधर्षां नित्यं पुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥

ॐ त्वा गंधर्वा अखनंस्त्वामिन्द्र - स्त्वाम् बृहस्पतिः । त्वामोषधे सोमोराजा विद्वान यक्ष्मादमुच्यत ॥

अक्षतः - अक्षत धवला : शुभ्रा : कुंकुमेन विराजिता : । मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर : ॥

पुष्पः - पत्रं पुष्पं फलं तौयं रत्नानि विविधानि च । गृहाणार्घ्यं मयादत्तं देहिमे वाछितं फलम् ॥

धूपं : - वनस्पतिरसोद्भूतो गंधाढयं सुमनो हर : । आघ्रेय : सर्वं देवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥

दीपं : - ॐ चन्द्रमा अप्सन्तरा सुपर्णो धावते दिवि । रयिम्पिशङ्कम्बहुलं पुरुस्पृह र्ठ हरिरेति कनिक्रदत् ॥

साज्यं च वर्ति संयुक्तं वह्विना योजितं मया । दीपं ग्रहाण देवेश त्रेलोक्य तिमिरापह ॥

सुगन्धितद्रव्यं : - ॐ अ र्ठ शुनाते अ र्ठ शुःपृच्यताभ्यरूषापरू : । गंधस्ते सोममवतु मदाय रसोऽअच्युतः ॥

नैवेधं : - शर्करा खण्ड खाधानि दधिक्षीर घृतानि च । आहारं भक्ष्यभोज्यञ्च नैवेधं प्रतिगृह्मताम् ॥

आचमनीयम् : - शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम् । आचम्यतां सुरेश्रेष्ठ मयादत्तं च भक्तित : ॥

ताम्बूल सम० : - नागवल्लीदलं चैव पूगीफलं समन्वितम् । कर्पूरेण समायुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥

पूंगीफलं : - समुद्रतीर सम्भूतं नानारोग निवारणम् । पूंगीफलं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरम् ॥

दक्षिणा सम० : - हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो । अनन्तपुण्यफलदमत : शांतिं प्रयच्छ में ॥

विशेष आवाहन : - गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धो कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥

ब्रह्माण्डोदर तीर्थानि करै : स्पृष्टानि ते रवे । तेन सत्येन मे देव तीर्थ देहि दिवाकर ॥

पूर्वे ऋग्वेदाय नमः , दक्षिणे यजुर्वेदाय नम :, पश्चिमे सामवेदाय नमः , उत्तरे अथर्वण वेदाय नमः ।

पुष्पाञ्जलि मादायः - नमो नमस्ते स्फटिक प्रभाय , सुश्वेत हाराय सुमंगलाय । सुपाशहस्ताय झषासनाय , जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ॥

पाश पाणि नमस्तुभ्यं पधनी जीवनायकम् । यावत्कर्म समापयेत् तावत् त्वं स्थिरो भव : ॥

इसके बाद जल से पूजा सामग्री का प्रोक्षण करें ।

ॐ आपोहिष्ठा मयोभुवस्तान ऊर्जेदधातन । महेरणाय चक्षसे । योव : शिव तमोरसस्तस्य भाजयतेहनः । उशतीरिवमातर : ॥

इसके बाद भूमि पर जल छोडें ।

तस्मा अरङ्गमामवो यस्य क्षमाय जिन्वथ । ( पुन : प्रोक्षण ) आपोजन यथाचनः ॥


गणेश स्तोत्र संग्रह 2


।। श्री गणपती स्तोत्र ॥ मराठी

।। श्री गणपती स्तोत्र ॥



साष्टांग नमन हे माझे गौरीपुत्रा विनायका

भक्तीने स्मरतां नित्य आयुःकामार्थ साधती ।.१ ।।



प्रथम नाव वक्रतुंड दुसरे एकदंत ते ।

तिसरे कृष्णपिंगाक्ष चवथे गजवक्र ते ।।२।।



पांचवे श्रीलंबोदर सहावें विकट नांव तें ।

सातवे विघ्नराजेंद्र आठवे धुम्रवर्ण ते ।।३।।



नवयें श्री भालचंद्र दहावें श्रीविनायक ।।

अकरायें गणपति बारावें श्रीगजानन ।।४।।



देवनार्वे अशी बारा तीन संध्या म्हणे नर

विघ्नभीति तसे त्याला प्रभो । तू; सर्वसिद्धि दे ।।५।।



विद्यार्थ्याला मिळे विद्या धनाथ्र्याला मिळे धन

पुत्रार्थ्याला मिळे पुत्र मोक्षार्थ्याला मिळे गि ।।६।।



जपतागणपती स्तोत्र सहा मासांत हे फळ ।

एक वर्ष पूर्ण होता मिळे सिद्धि न संशय ।।७।।



नारदांनी रचिलेले झाले संपुर्ण स्तोत्र हैं।

श्रीधराने मराठीत पठण्या अनुवादिले ।।८।।



नमामि श्री गणराज दयाल,

करत हो भक्तन का प्रतिपाल,

नमामि श्री गणराज दयाल।



निशिदिन ध्यान धरे जो प्राणी,

हरे सकल भव जाल,

जन्म-मरन से होत निराला,

नहीं लगती कर माल,

॥ नमामि श्री गणराज दयाल...॥



लंबोदर गज-वदन मनोहर,

गले फूलों की माल,

ऋद्धि-सिद्धि चमाल धूलावें,

शोभत से दूर हार,

॥ नमामि श्री गणराज दयाल...॥



मूषक वाहन त्रिशूल परेशुधार,

चंदन झलक विशाल,

ब्रह्मादिक सब ध्यावत तुम को,

अर्जी तुकरया बाल,

॥ नमामि श्री गणराज दयाल...॥



नमामि श्री गणराज दयाल,

करत हो भक्तन का प्रतिपाल,

नमामि श्री गणराज दयाल।



गणेश स्तुती - 1

॥ गजानन्द महाराज पधारो ॥



॥ श्लोक ॥

प्रथम मनाये गणेश के, ध्याऊ शारदा मात,

मात पिता गुरु प्रभु चरण मे, नित्य नमाऊ माथ ॥



गजानंद महाराज पधारो, कीर्तन की तैयारी है,

आओ आओ बेगा आओ, चाव दरस को भारी है ॥



थे आवो ज़द काम बणेला, था पर म्हारी बाजी है,

रणत भंवर गढ़ वाला सुणलो, चिन्ता म्हाने लागि है,

देर करो मत ना तरसाओ, चरणा अरज ये म्हारी है,

॥ गजानन्द महाराज पधारो ॥



रीद्धी सिद्धी संग आओ विनायक, देवों दरस थारा भगता ने ।

भोग लगावा ढोक लगावा, पुष्प चढ़ावा चरणा मे ।

गजानंद थारा हाथा मे, अब तो लाज हमारी है ।

॥ गजानन्द महाराज पधारो ॥



भगता की तो विनती सुनली, शिव सूत प्यारो आयो है ।

जय जयकार करो गणपति की, म्हारो मन हर्शायो है ।

बरसेंगा अब रस कीर्तन में, भगतौ महिमा भारी है ।

॥ गजानन्द महाराज पधारो ॥



गजानंद महाराज पधारो, कीर्तन की तैयारी है ।

आओ आओ बेगा आओ, चाव दरस को भारी है ॥





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गणेश स्तुती - 2



श्री गणेश - शेंदुर लाल चढ़ायो



शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको । दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको।

हाथ लिए गुडलद्दु सांई सुरवरको । महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ॥



जय देव जय देव, जय जय श्री गणराज

विद्या सुखदाता धन्य तुम्हारा दर्शन 

मेरा मन रमता, जय देव जय देव ॥



अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि । विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी ।

कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी । गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि

॥ जय देव जय देव ॥



भावभगत से कोई शरणागत आवे । संतत संपत सबही भरपूर पावे ।

ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे । गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ॥



जय देव जय देव, जय जय श्री गणराज, विद्या सुखदाता, हो स्वामी सुखदाता

धन्य तुम्हारा दर्शन, मेरा मन रमता, जय देव जय देव ॥



ध्यानम् - दन्ताभये चक्रवरौ दधानं कराग्रगं स्वर्ण घटं त्रिनेत्रम् । धृताब्जयालिंगितमब्धिपुत्र्या लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे ॐ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने । दुष्टारिष्ट विनाशाय पराय परमात्मने ॥ लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञाय शोभितम् । अर्धचन्द्रधरं देवं विघ्न व्यूह विनाशनम् ॥ ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हेरम्बाय नमो नमः । सर्वसिद्धिप्रदो सित्वं सिद्धिबुद्धिप्रदोभव ॥ चिन्तितार्थ प्रदस्त्व हि सततं मोदकप्रियः । सिन्दुरारुणत्रस्त्रेश्च पूजितो वरदायकः ॥ इदं गणपतिस्तोत्रं यः पठेद् भक्तिमान् नरः । तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मुञ्चति ॥



सरागिलोकदुर्लभं विरागिलोकपूजितं सुरासुरैर्नमस्कृतं जरापमृत्युनाशकम् । गिरा गुरुं श्रिया हरिं जयन्ति यत्पदार्चकाः नमामि तं गणाधिपं कृपापयः पयोनिधिम् ॥ 1॥ गिरीन्द्रजामुखाम्बुज प्रमोददान भास्करं रीन्द्रवक्त्रमानताघसङ्घवारणोद्यतम् । सरीसृपेश बद्धकुक्षिमाश्रयामि सन्ततं शरीरकान्ति निर्जिताब्जबन्धुबालसन्ततिम् ॥ 2॥ शुकादिमौनिवन्दितं गकारवाच्यमक्षरं प्रकाममिष्टदायिनं सकामनम्रपङ्क्तये । चकासतं चतुर्भुजैः विकासिपद्मपूजितं प्रकाशितात्मतत्वकं नमाम्यहं गणाधिपम् ॥ 3॥ नराधिपत्वदायकं स्वरादिलोकनायकं ज्वरादिरोगवारकं निराकृतासुरव्रजम् । कराम्बुजोल्लसत्सृणिं विकारशून्यमानसैः हृदासदाविभावितं मुदा नमामि विघ्नपम् ॥ 4॥ श्रमापनोदनक्षमं समाहितान्तरात्मनां सुमादिभिः सदार्चितं क्षमानिधिं गणाधिपम् । रमाधवादिपूजितं यमान्तकात्मसम्भवं शमादिषड्गुणप्रदं नमामि तं विभूतये ॥ 5॥ गणाधिपस्य पञ्चकं नृणामभीष्टदायकं प्रणामपूर्वकं जनाः पठन्ति ये मुदायुताः । भवन्ति ते विदां पुरः प्रगीतवैभवाजवात् चिरायुषोऽधिकः श्रियस्सुसूनवो न संशयः ॥ 6


प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्
भक्तावासं स्मरेनित्यम आयुष्कामार्थ सिध्दये ॥१॥

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्
तृतीयं कृष्णपिङगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम ॥२॥

लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धुम्रवर्णं तथाषष्टम ॥३॥

नवमं भालचंद्रं च दशमं तु विनायकम्
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥४॥

द्वादशेतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर:
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिध्दीकर प्रभो ॥५॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम ॥६॥

जपेद्गणपतिस्तोत्रं षडभिर्मासे फलं लभेत्
संवत्सरेण सिध्दीं च लभते नात्र संशय: ॥७॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ॥८॥

इति श्रीनारदपुराणे संकटनाशनं नाम श्रीगणपतिस्तोत्रं संपूर्णम ||

गणपती स्तोत्र ( मराठी अनुवाद )
साष्टांग नमन हे माझे गौरीपुत्र विनायका |
भक्तिने स्मरतां नित्य आयु:कामार्थ साधती ||१||

प्रथम नाव वक्रतुंड दुसरे एकदंत तें |
तीसरेकृष्णपिंगाक्ष चवथे गजवक्त्र तें ||२||

पाचवेश्रीलंबोदर सहावे विकट नाव तें |
सातवेविघ्नाराजेंद्र आठवे धुम्रवर्ण तें ||३||

नववेश्रीभालाचंद्र दहावे श्रीविनायक |
अकरावेगणपति बारावे श्रीगजानन ||४||

देवनावे अशीबारा तीनसंध्या म्हणे नर |
विघ्नाभिती नसेत्याला प्रभो ! तू सर्वसिद्धिद ||५||

विद्यार्थ्यालामिळे विद्या धनार्थ्याला मिळे धन |
पुत्रर्थ्यालामिळे पुत्र मोक्षर्थ्याला मिळे गति ||६||

जपतागणपति गणपतिस्तोत्र सहामासात हे फळ|
एकवर्ष पूर्ण होता मिळे सिद्धि न संशय ||७||

नारदांनी रचिलेले झाले संपूर्ण स्तोत्र हे |
श्रीधाराने मराठीत पठान्या अनुवादिले ||८||

Friday, July 12, 2019

संस्कृत शब्दावली

 भव - हो जाना
धावति - दौड़ता है
भ्रष्ट - गिरा हुआ
शिष्यः - पढ़नेवाला
दासः - नौकर
भानुः - सूर्य
गुरुः - पढ़ानेवाला
बन्धुः - सम्बन्धी
तवते - तेरा
मम - मेरा
तस्य - उसका
कृपा - दया
मार्गः - रास्ता
कुत्र - कहां
यत्र - जहां
अत्र - यहां
तत्र - वहां
सर्वत्र - सब स्थान पर
किम् - क्या
सः - वह
अहम् - मैं
त्वम् - तू
न - नहीं
अस्ति - है
कः - कौन
नास्ति - नहीं है
यदा - जब
कदा - तब
सदा - हमेशा
तदा - तब
यदि - अगर
तर्हि - तो
यथा - जैसे
तथा - वैसे
कथम् - कैसे
श्वः - कल (आगामी दिन )
हृाः - कल (बिता दिन )
अद्य - आज
दिवा - दिन में
मध्याह्रे - दोपहर में
अपि - भी
च - और
एकम् - एक
अन्यः - दूसरा
कर्म - कार्य
पात्रम् - वर्तन
मुखम् - मुँह
नेत्रम् - आँख

द्वारम् - दरवाजा
वातायनम् - खिड़की
इन्द्रः - राजा, प्रमुख
ग्रामः - गावँ
मूषकः - चूहा
वासः - रहने का स्थान
स्वरः - आवाजा
रक्षकः - पहरेदार
जनः - लोक
सर्पः - साँप
दैत्यः - राक्षसा
अर्थः - धन
कर्णः - काना
पान्थः - मुसाफिर
करः - हाथ
चन्द्रः - चाँद
सूर्यः - सूरज
मृगः - हिरण
यत्नः - प्रयत्न
पश्चात् - बाद में
किमर्थम् - किसलिए
सत्वरम् - जल्दी
पूर्वम् - पहले
अपराधः - कसूर
ज्वरः - बुखार
उपायः - उपाय
पर्वतः - पहाड़
सम्मानः - आदर
मनोरथः - इच्छा
विनयः - नम्रता
विहगः - पक्षी
लोभः - लालच
याचकः - माँगनेवाले
वायसः - कौवा
कपोतः - कबूतर
तापः - गर्मी
शुकः - तोता
मेघः - बादल
शृगालः - गीदड़
कपिः - बन्दर
गिरिः - पहाड़
सह - साथ
हिमगिरिं - हिमालय
पिपासा - प्यास
कृश - दुर्बल
मित्रम् - दोस्त
संघात - समूह
स्पष्टम् - साफ

अग्निः - अग्नि
अतिथिः - अतिथि
अन्तः - अन्दर
प्रसादः - अटारी
विनिमयः - अदल-बदल
काष्ठमञ्जूषा - आलमारी
मुद्रिका - अँगूठी
प्रवातः - आँधी
प्राङ्गणम् - आँगन
आगन्तुकः - आगन्तुक
आपन्नः - आपत्तिग्रस्त
आकाशम् - आकाश
हलवाहः - हलवाहा
ईषा - हरिस
आदेशः - आज्ञा
आयः - आमदनी
जनमार्गः - आमरास्ता
इन्द्रधनुः - इन्द्रधनुष
कटाहः - कड़ाह
कटाही - कड़ाही
कंकणम् - कंगन
वृहत्चकः - कटोरा
लघुचकः - कटोरी
उष्णपेय पात्रम् - कप
कम्बलः - कम्बल
प्रसाधनी - कंधी
सुधा - कलई
कलिका - कली
कृषकः - किसान
इच्छुकः - इच्छुक
आयातः - इम्पोर्ट
आयकरः - इनकम टैक्स
इष्टिका - ईट
क्षुरम् - उस्तरा
ऋणम् - उधार
अवरोहः - उतार
उर्वरा - उपजाऊ
उदीची - उत्तर दिशा
उपयोगः - उपयोग
पातोत्पातः - उत्थान- पतन
अनुर्वरः - ऊसर
अभिकर्त्ता - एजेन्ट
निर्यातः - एक्सपोर्ट
एकैकशः - एक एक करके
अभिकरणम् - एजेन्सी
करकः - ओला
कक्षः - कमरा
मसी-निर्झरिणी - कलम
ऋणदाता - कर्ज देनेवाला
ऋणग्रहीता - कर्जा लेनेवाला
लिपिकः - क्लर्क
काचः - काँच
सञ्जिका - कापी
कर्गलः - कागज
व्यंग्यचित्रम् - कार्टून
कज्जलम् - काजल
नागदन्तः - खूटा
खल्वाटः - गंजा
भारवाहः - कुली
कुटिया - कुटीरः
कुब्जः - कुबड़ा
आसन्दी - कुर्सी
स्तम्भः - खम्भा
खट्वा - खाट
गवाक्षः - खिड़की
कपाटम् - किवाड़
पंकः - कीचड़
चन्द्रिका - चाँदनी
चुल्लिः - चूल्हा
काचवलयम् - चूड़ी
चतुष्पथः - चौराहा
गृहपृष्ठः - छत
वलभी - छ्ज्जा
छत्रम् - छाता
अवकाशः - छुट्टी
जनयात्रा - जुलूस
जलयानम् - जहाज
आपणः - दुकार
आपतः - धूप
वेष्टनम् - बस्ता
श्रमिकः - मजदूर
फलकम् - मेज
दर्पणः - ऐनक
वीथिका - गली
ग्राहकः - ग्राहक
पानपात्रम् - गिलास
कन्दूकः - गेंद
गोमयम् - गोबर
चत्वरम् - चबूतरा
चपेटः - चपत
उष्णपेयपत्रम् - चाय
प्रावरणम् - जिल्द
कारागारम् - जेल
दोला - झूला
वञ्चकः - ठग
दस्यु - डाकू
शिविका - डोली
गोदकः - डोरा
तुला - तराजू
मसिपात्रम् - दवात
आपणिकः - दुकानदार
मद्यपः - शराबी
काचम् - शीशा
शरावः - शकोरा
मसिशोषकः - सोखता
अयोधनः - हथोड़ी
महाकक्षः - हॉल

मंजूषा - आलमारी
निरीक्षकः - इंस्पेक्टर
इम्तिहान - परीक्षा
सतीर्थ्यः - एक जगह
पठितः - पढ़ा हुआ
लिपिकः - क्लर्क
संचिकाः - कापी
पुस्तकम् - किताब
अनुपस्थितिः - गैरहाजिरी
प्रावरणम् - जिल्द
मार्जकः - डस्टर
परीक्षकः - परीक्षा लेनेवाला
उपस्करः - फर्नीचर
कृष्णपट्टः - ब्लैकबोर्ड
काष्ठासनम् - बेंच
घर्षकः - रबर
मसि - रोशनाई
अश्मवर्तिका - स्लेट-पेन्सिल
सहपाठी - साथ पढ़नेवाला
लेखनी - कलम
महाविद्यालयः - कॉलेज
कन्दूकः - गेंद
अवकाशः - छूट्टी
उपनिरीक्षकः - डिप्टी इंस्पेक्टर
परीक्षार्थी - परीक्षा देनेवाला
तूलिका - पेन्सिल
पत्रसंचयनी - फाइल
मसिशोषः - ब्लाउटिंग पेपर
वेस्टनम् - बस्ता
फलकम् - मेज
पञ्जिका - रजिस्टर
आश्मपट्टिका - स्लेट
मंजूषा - सन्दूक
उपस्थिति - हाजिरी

अँगुष्ठः - अँगूठा
लोचनम् - आँख
अश्रु - आँसू
अंगुली - ऊँगली
ओष्ठः - अोठ
स्कन्धः - कन्धा
श्रोत्रम् - कान
त्वचा - खाल
रक्तम् - खून
कण्ठः - गला
ग्रीवा - गर्दन
कपोलः - गाल
वक्षः - छाती
कनिष्ठिका - छोटी ऊँगली
जानु - जाँघ
रसना - जीभ
करः - हाथं
उरः - ह्रदय
कूर्चम् - दाढ़ी
रदनः - दाँत
मस्तिष्कम् - दिमाग
घ्राणेन्द्रिय - नाक
नखः - नाखून
पक्ष्मः - पलक
स्वेदः - पसीना
उदरः - पेट
पादः - पैर
मनस् - मन
मस्तकम् - सिर
मांसम् - मांस
ललाटम् - कपाल
आस्यम् - मुँह
श्मश्रुः - मूँछ
शरीरम् - शरीर
पलितम् - सफेद बाल
अस्थि - हड़्डी

माता - माता
पिता - पिता
पितृव्यः - चाचा
पितृव्यः-पुत्रः - चचेरा भाई
पितृव्यपत्नी - चाची
अनुजः - छोटा भाई
जामाता - दामाद
देवृ - देव
पितामही - दादी
ननादृ - ननद
नप्तृ - नाती
पौत्रः - पोता
पौत्री - नतिनी
मातामहः - नाना
पतिः - पति
प्रमातामहः - परनाना
प्रपितामहः - परदादा
मातृष्वसृपतिः - मौसा
श्वसुरः - ससुर
सहोदरः - सगा भाई
श्यालः - साला
श्वश्रूः - सास
प्रपितामही - परदादी
आत्मजः - पुत्र
आत्मजा - पुत्री
पुत्रवधूः - पुत्र की पत्नी
स्नुषा - पुत्रवधू
पितृष्वसृपतिः - फूफा
पितृष्वस्त्रीयः - फुफेरा भाई
अग्रजः - बड़ा भाई
अग्रजा - बड़ी बहन
स्वसृ - बहन
स्वसृपतिः - बहनोई
पितृष्वसा - बुआ (फुआ)
पितामहः - बाबा
भ्रातृजः - भतीजा
भ्रातृजा - भतीजी
भ्राता - भाई
भ्रातृजाया - भाभी
भागिनेयः - भानजा
मातुलः - मामा
मातुली - मामी
मातुल पुत्रः - मामा का पुत्र
स्वामी - मालिक
मित्रम् - मित्र

अंगप्रोक्षणम् - अँगोछा
वृहतिका - अोवरकोट
शंकवम् - ऊनी
वस्त्रम् - कपड़ा
कम्बलः - कम्बल
कंचुकः - कुर्त्ता
प्रावरः - कोट
तूलस्तरः - गद्दा
जघन वस्त्रम् - जाँघिया
शिरस्त्राणम् - टोपी
उपधानम् - तकिया
गात्रमार्जनी - तौलिया
उत्तरीय वस्त्रम् - दुपट्टा
अधोवस्त्रम् - धोती
पायदामः - पाजामा
आप्रपदीनम् - पैंट
अन्तरीयम् - पेटीकोट
कंचुलिका - ब्लाउज
करवस्त्रम् - रुमाल
तूलिका - रजाई
कौशेयम् - रेशमी
कौपीनम् - लँगोटी
उष्णीषम् - पगड़ी
शाटिका - साड़ी
कार्पासम् - सूती
प्रावारकम् - शेरवानी
अन्नम् - अन्न
आढकी - अरहर
चूर्णम् - आटा
माषः - उड़द
गोधूमः - गेहूँ
चणकः - चना
तण्डुलः - चावल
यवः - जौ
तिल - तिलः
द्धिदलम् - दाल
धान्यम् - धान
प्रियंगुः - बाजरा
कलायः - मटर
मसूरः - मसूर
मुद्गः - मूँग
मुद्गफली - मूँगफली
चणकचूर्णम् - वेसन
सर्षपः - सरसों
श्यामाकः - साँवाँ चावल
यन्त्रविद् - इंजिनीयर
कुलालः - कुम्हार
भारवाहः - कुली
शाकविक्रेता - कुँजड़ा
खनकः - खोदनेवाला
चाण्डालः - चण्डाल
चित्रकारः - चितेरा
तस्करः - चोर
जातिः - जाति
मायाकरः - जादूगर
तन्तुवायः - जुलाहा
ग्रन्थिभेदकः - जेबकतरा
कांस्यकारः - ठठेरा
पाटच्चरः - डाकू
चिकित्सकः - डॉक्टर
ताम्बूलविक्रेता - तमोली
तैलकारः - तेली
सुचिकारः - दर्जी
रजकः - धोबी
शस्त्रमार्जः - धार देनेवाला
नापितः - नाई
भृत्यः - नौकर
फलविक्रेता - फल बेचनेवाला
वस्त्र विक्रेता - बजाज
शाकुनिकः - बहेलिया
तक्षकः - बधाई
ब्राह्मणः - ब्राह्मण
पुस्तकविक्रेता - पुस्तक बेचनेवाला
मालाकारः - माली
सम्मार्जकः - मेहतर
प्रासादकारः - राजमिस्त्री
लुण्ठकः - लुटेरा
लोहकारः - लुहार
विधिज्ञः - वकील
स्वर्णकारः - सुनार
मद्यविक्रेता - शराब विक्रेता
शूद्रः - शूद्र
कारुः - शिल्पी
कान्दविकः - हलवाई
आम्रम् - आम
अर्क - आक
तमाल - आबनूस
आमलकी - आँवला
कदम्बः - कबम्ब
पनसः - कटहल
कर्णिकारः - कनेर
कुन्दम् - कुन्द
केतकी - केवड़ा
खदिरः - खैर
पाटलम् - गुलाब
चम्पकः - चम्पा
मालती - चमेली
अपामार्गः - चिरचिरी
बकुलः - मोलसरी
फानिलः - रीठा
वटः - बरगद
सालः - साल का वृक्ष
भद्रदारु - चीड़
जम्बुः - जामुन
यूथिका - जूही
तालः - ताड़
देवदारुः - देवदार
धत्तूरः - धतूरा
नीम्बः - नीम
नवमालिक - नेवारी
किंशुकः - ढाक
पर्कटीवृक्षः - पाकड़
अश्वत्थः - पीपल
वृक्षः - पेड़
कोकरः - बबूल
बिल्वः - बेल
मल्लिका - बेला
मधूकः - महुआ
शिंशपा - शीशम
शेफालिका - हरसिंगार
दाडिमम् - आनर
अक्षोटम् - अखरोट
आग्रलम् - अमरुद
आम्रम् - आम
मृद्धीका - अंगूर
कर्कटिका - ककड़ी
काजवम् - काजू
जम्बीरम् - कागजी नींबू
कदलीफलम् - केला
शुष्कद्राक्षा - किशमिश
खर्बुजम् - खरबूजा
खर्जुरम् - खजूर
उदुम्बरम् - गूलर
मधुकर्कटी - चकोतरा
प्रियालम् - चिरौंजी
जम्बु - जामुन
कालिदन्दम् - तरबूज
बीजधान्यम् - धनिया
अमृतफलम् - नासपाती
नारड्गम् - नारंगी
नारिकेलम् - नारियल
जम्बीरम् - नींबू
अकोलम् - पिश्ता
पौष्टिकम् - पोस्ता
वातादम् - बादाम
कर्कन्धु - बंर
मधुरिका - मुनक्का
सेवम् - सेव
कृष्णः - काला
पिण्याकः - केसरिया
पाटलः - ताम्रवर्ण
नीलः - नीला
पीतः - पीला
वर्णः - रंग
रक्तः - लाल
श्वेतः - सफेद
हरितः - हरा
उलूकः - उल्लू
कपोतः - कबूतर
कपोती - कबूतरी
काकः - कौआ
कोकिलः - कोयल
खञ्जनः - खञ्जन
गृधः - गिद्ध
चक्रवाकः - चकवा
टीट्टिभः - टिटहरी
शुकः - तोता
चटकः - नर चिड़िया
वर्तकः - नर बत्तक
वरटः - नर वरैया
वकः - बगुला
श्येनः - बाज
चटकः - नर गोरैया
चातकः - पपीहा
शलभः - पतंगा
चटका - मादा गोरैया
वर्तिका - मादा बत्तख
वरटा - मादा वरैया
सारिका - मैना
मयूरी - मोरनी
मयूरः - मोर
सारसः - सारस
मरालः - हंस
आलुकः - आलू
अलाबु - कद्दू
गोजिह्वा - गोभी
शाकः - तरकारी
पटोलः - परवल
वृन्ताकः - बैगन
मूलिका - मूली
शृंगाटकः - सिंघाड़ा
शीतशिवा - सीवा
शिम्बी - सेम
गुञ्जनम् - सलगम
कलायः - मटर
पालकः - पालक
कोशातकी - तरोई
रक्ताङ्गकः - टमाटर
गुञ्जनम् - गाजर
कारवेल्लः - करैला
सूरणः - ओला
कोषफलम् - कोंहड़ा
आर्द्रकम् - अदरख
एला - इलायची छोटी
चिञ्चा - इमली
खदिरः - कत्था
जीरम् - जीरा
जम्बीरम् - निम्बू
आम्रचूर्णम् - अमचूर
महेला - बड़ी इलायची
कर्पूरः - कपूर
सर्षपः - सरसों
शतपुष्पा - सौंफ
मरीचम् - गोलमिर्च
धान्यकम् - धनिया
पलाण्डुः - प्याज
पिप्पलि - पीपल
रक्तमरीचम् - मिर्च
लशुनम् - लहसुन
कृष्णजीरकः - श्यामजीरा
शुष्ठः - सोठ
हरिद्रा - हल्दी
पुदिनः - पोदिना
उपस्करः - मसाला
अंगुलीयकम् - अंगूठी
कर्णपूरः - कर्णफूल
कुण्डलम् - कुण्डल
किंकिणि - घुँघरू
अलंकारः - जेवर
ग्रैवेयकम् - हँसुली
कण्ठाभरणम् - कण्ठा
नूपुरः - कड़ा
कंकणम् - कंगन
वलयम् - चूड़ी
मुक्तावली - मोतीमाला
नासापुष्पम् - नाक की कील
केयूरः - बाजूबन्द
मुकुटम् - मुकुट
पादाभरणम् - लच्छा
मेखला - करधनी
नासाभरणम् - नथिया
कटकः - पहुँची
नूपुरः - बिछुआ
हारः - हार
वलयः - कड़ा
उद्वर्तनम् - उबटन
दन्तपिष्टम् - टूथपेस्ट
ललाटिका - बिन्दी
रक्तगर्भा - मेंहदी
फेनिलम् - साबुन
अंजनम् - सुरमा
कज्जलम् - काजल
नखरंजनम् - नखपालिश
आलक्तकम् - ओष्ठरंजनम्
सिंदूरः - सिन्दूर
1 - एकम्
2 - द्वे
3 - त्रीणि्
4 - चत्वारि
5 - पञ्च्
6 - षट्
7 - सप्त
8 - अष्ट
9 - नव्
10 - दश
11 - एकादश्
12 - द्वादश
13 - त्रयोदश्
14 - चतुर्दश
15 - पञ्चदश्
16 - षोडशे
17 - सप्तदश्
18 - अष्टादश
19 - नवदश्
20 - विंशतिः
21 - एकविंशतिः
22 - द्वाविंशतिः
23 - त्रयोविंशतिः
24 - चतुर्विंशतिः
25 - पञ्चविंशतिः
26 - षड्विंशतिः
27 - सप्तविंशतिः
28 - अष्टाविंशतिः
29 - नवविंशतिः
30 - त्रिंशत्
31 - एकत्रिंशत्
32 - द्वात्रिंशत्
33 - त्रयस्त्रिंशत्
34 - चतुस्त्रिंशत्
35 - पञ्चत्रिंशत्
36 - षट्त्रिंशत्
37 - सप्तत्रिंशत्
38 - अष्टत्रिंशत्
39 - नवत्रिंशत्
40 - चत्वारिंशत्
41 - एकचत्वारिंशत्
42 - द्विचत्वारिंशत्
43 - त्रिचत्वारिंशत्
44 - चतुश्चत्वारिंशत्
45 - पञ्चचत्वारिंशत्
46 - षट्चत्वारिंशत्
47 - सप्तचत्वारिंशत्
48 - अष्टचत्वारिंशत्
49 - नवचत्वारिंशत्
50 - पञ्चाशत्
51 - एकपञ्चाशत्
52 - द्विपञ्चाशत्
53 - त्रिपञ्चाशत्
54 - चतुःपञ्चाशत्
55 - पञ्चपञ्चाशत्
56 - षट्पञ्चाशत्
57 - सप्तपञ्चाशत्
58 - अष्टपञ्चाशत्
59 - नवपञ्चाशत्
60 - षष्टिः
61 - एकषष्टिः
62 - द्विषष्टिः
63 - त्रिषष्टिः
64 - चतुःषष्टिः
65 - पञ्चषष्टिः
66 - षट्षष्टिः
67 - सप्तषष्टिः
68 - अष्टषष्टिः
69 - नवषष्टिः
70 - सप्ततिः
71 - एकसप्ततिः
72 - द्विसप्ततिः
73 - त्रिसप्ततिः
74 - चतुःसप्ततिः
75 - पञ्चसप्ततिः
76 - षट्सप्ततिः
77 - सप्तसप्ततिः
78 - अष्टसप्ततिः
79 - नवसप्ततिः
80 - अशीतिः
81 - एकाशीतिः
82 - द्व्यशीतिः
83 - त्र्यशीतिः
84 - चतुरशीतिः
85 - पञ्चाशीतिः
86 - षडशीतिः
87 - सप्ताशीतिः
88 - अष्टाशीतिः
89 - नवाशीतिः
90 - नवतिः
91 - एकनवतिः
92 - द्विनवतिः
93 - त्रिनवतिः
94 - चतुर्नवतिः
95 - पञ्चनवतिः
96 - षण्णवतिः
97 - सप्तनवतिः
98 - अष्टनवतिः
99 - नवनवतिः
100 - शतम्

गणेश स्तोत्र संग्रह

Ganesha stotra

 गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे । अपारकरुणापूरतरङ्गितदृशे नमः ॥

 भावार्थ :
विघ्नरूप अन्धकार का नाश करनेवाले, अथाह करुणारूप जलराशि से तरंगति नेत्रों वाले गणेश नामक ज्योतिपुंज को नमस्कार है ।

पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुद्रा । मायाविनां दुर्विभावयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

 भावार्थ :
जो पुराणपुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की क्रीडाएँ करते हैं ; जो माया के स्वामी हैं तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाव्य है, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुगमम् उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् ॥

 भावार्थ :
जो इन्द्र आदि देवेश्वरों के समूह से वन्दनीय हैं, अनाथों के बन्धु हैं, जिनके युगल कपोल सिन्दूर राशि से अनुरञ्जित हैं, जो प्रवल विघ्नों का खण्डन करने के लिए प्रचण्ड दण्डस्वरूप हैं, उन श्रीगणेश जी का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ ।

आवाहये तं गणराजदेवं रक्तोत्पलाभासमशेषवन्द्दम् । विध्नान्तकं विध्नहरं गणेशं भजामि रौद्रं सहितं च सिद्धया ॥

 भावार्थ :
जो देवताओं के गण के राजा हैं, लाल कमल के समान जिनके देह की आभा है, जो सबके वन्दनीय हैं, विघ्न के काल हैं, विघ्नों को हरनेवाले हैं, शिवजी के पुत्र हैं, उन गणेशजी का मैं सिद्धि के साथ आवाहन और भजन करता हूँ ।

परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् । गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

 भावार्थ :
जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार, सबके हृदय में अंतर्यामी रूप से स्थित, गुणातीत एवं गुणमय हैं, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

तमोयोगिनं रुद्ररूपं त्रिनेत्रं जगद्धारकं तारकं ज्ञानहेतुम् । अनेकागमैः स्वं जनं बोधयन्तं सदा सर्वरूपं गणेशं नमामः ॥

 भावार्थ :
जो तमो गुण के सम्पर्क से रुद्ररूप धारण करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो जगत् के हर्ता, तारक और ज्ञान के हेतु हैं तथा जो अनेक आगमोक्त वचनों द्धारा अपने भक्तजनों को सदा तत्त्वज्ञानोपदेश देते रहते हैं, उन सर्वरूप गणेश को हम नमस्कार करते हैं ।

सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया । सर्वविध्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

 भावार्थ :
जो स्वेच्छा से संसार की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन सर्वविघ्नहारी देवता मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् । सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

 भावार्थ :
जो सर्वशक्तिमय, सर्वरूपधारी, सर्वव्यापक और सम्पूर्ण विद्याओं के प्रवक्ता हैं, उन भगवान् मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् । भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

 भावार्थ :
जो पार्वती जी को पुत्र रूप से आनन्द प्रदान करते और भगवान् शंकर का भी आनन्द बढ़ाते हैं, उन भक्तानन्दवर्धन मयूरेश गणेश को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ ।

तमः स्तोमहारनं जनाज्ञानहारं त्रयीवेदसारं परब्रह्मसारम् । मुनिज्ञानकारं विदूरेविकारं सदा ब्रह्मरुपं गणेशं नमामः ॥

 भावार्थ :
जो अज्ञानान्धकार राशि के नाशक, भक्तजनों के अज्ञान के निवारक, तीनों वेदों के सारस्वरूप, परब्रह्मसार, मुनियों को ज्ञान देनेवाले तथा मनोविकारों से सदा दूर रहनेवाले हैं । उन ब्रह्मरूप गणेश को हम नमस्कार करते हैं ।

सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् । सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

 भावार्थ :
जो समस्त वस्तुविषयक अज्ञान के निवारक, सम्पूर्ण ज्ञान के उद्घावक, पवित्र, सत्य-ज्ञानस्वरूप तथा सत्यनामधारी हैं, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

अनेककोटिब्रह्याण्डनायकं जगदीश्वरम् । अनन्तविभवं विष्णु मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

 भावार्थ :
जो अनेक कोटि ब्रह्माण्ड के नायक, जगदीश्वर, अनन्त वैभवसम्पन्न तथा सर्वव्यापी विष्णुरूप हैं, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

गजाननाय पूर्णाय साङ्ख्यरूपमयाय ते । विदेहेन च सर्वत्र संस्थिताय नमो नमः ॥

 भावार्थ :
हे गणेश्वर ! आप गज के समान मुख धारण करने वाले, पूर्ण परमात्मा और ज्ञानस्वरूप हैं । आप निराकार रूप से सर्वत्र विद्यमान हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है ।

अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते । मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥

 भावार्थ :
हे हेरम्ब ! आपको किन्ही प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करने वाले हैं, आपका वाहन मूषक है । आप विश्वेश्वर को बारम्बार नमस्कार है ।

अनन्तविभायैव परेषां पररुपिणे । शिवपुत्राय देवाय गुहाग्रजाय ते नमः ॥

 भावार्थ :
आपका वैभव अनन्त है, आप परात्पर हैं, भगवान् शिव के पुत्र तथा स्कन्द के बड़े भाई हैं, आप देव को नमस्कार है ।

पार्वतीनन्दनायैव देवानां पालकाय ते । सर्वेषां पूज्यदेहाय गणेशाय नमो नमः ॥

 भावार्थ :
जो देवी पार्वती को आनन्दित करने वाले, देवताओं के रक्षक हैं और जिनका श्रीविग्रह सबके लिए पूजनीय है, उन आप गणेशजी को बारम्बार नमस्कार है ।

स्वनन्दवासिने तुभ्यं शिवस्य कुलदैवत । विष्णवादीनां विशेषेण कुलदेवताय ते नमः ॥

 भावार्थ :
भगवान शिव के कुलदेवता आप अपने स्वरूपभूत स्वानन्द-धाम मे निवास करनेवाले हैं। विष्णु आदी देवताओं के तो आप विशेषरूप से कुलदेवता हैं । आपको नमस्कार है ।

योगाकाराय सर्वेषां योगशान्तिप्रदाय च । ब्रह्मेशाय नमस्तुभ्यं ब्रह्मभूतप्रदाय ते ॥

 भावार्थ :
आप योगस्वरूप एवं सबको योगजनित शांति प्रदान करने वाले हैं । ब्रह्म भाव की प्राप्ति करानेवाले आप ब्रह्मेश्वर को नमस्कार है ।

ऊँ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने । दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने ॥

 भावार्थ :
सम्पूर्ण सौख्य प्रदान करनेवाले सच्चिदानन्दस्वरूप विघ्नराज गणेशको नमस्कार है । जो दुष्ट अरिष्ट ग्रहोंका नाश करनेवाले परात्परा परमात्मा हैं, उन गणपति को नमस्कार है ।

सिद्धिबुद्धि पते नाथ सिद्धिबुद्धिप्रदायिने । मायिन मायिकेभ्यश्च मोहदाय नमो नमः ॥

 भावार्थ :
नाथ ! आप सिद्धि और बुद्धि के पति हैं तथा सिद्धि और बुद्धि प्रदान करने वाले हैं । माया के अधिपति तथा मायावियों को मोह मे डालने वाले हैं । आपको बारम्बार नमस्कार है ।

लम्बोदराय वै तुभ्यं सर्वोदरगताय च । अमायिने च मायाया आधाराय नमो नमः ॥

 भावार्थ :
आप लंबोदर हैं, जठरानल रूप मे सबके उदर मे निवास करते हैं, आप पर किसी की माया नही चलती और आप ही माया के आधार हैं । आपको बार-बार नमस्कार है ।

त्रिलोकेश गुणातीत गुणक्षोम नमो नमः त्रैलोक्यपालन विभो विश्वव्यापिन् नमो नमः ॥

 भावार्थ :
हे त्रैलोक्य के स्वामी ! हे गुणातीत ! हे गुणक्षोभक ! आपको बार-बार नमस्कार है । हे त्रिभुवनपालक ! हे विश्वव्यापिन् विभो ! आपको बार-बार नमस्कार है ।

मायातीताय भक्तानां कामपूराय ते नमः । सोमसूर्याग्निनेत्राय नमो विश्वम्भराय ते ॥

 भावार्थ :
मायातीत और भक्तों की कामना-पूर्ति करनेवाले आपको नमस्कार है । चन्द्र, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं और जो विश्व का भरण करनेवाले हैं, उन आपको नमस्कार है ।

जय विघ्नकृतामाद्या भक्तनिर्विघ्नकारक । अविघ्न विघ्नशमन महाविध्नैकविघ्नकृत् ॥

 भावार्थ :
हे विघ्नकर्ताओं के कारण ! हे भक्तों के निर्विघ्न-कारक, विघ्नहीन, विघ्नविनाशन, महाविघ्नों के मुख्य विघ्न करनेवाले ! आपकी जय हो ।

नमस्ते गणनाथाय गणानां पतये नमः । भक्तिप्रियाय देवेश भक्तेभ्यः सुखदायक ॥

 भावार्थ :
भक्तों की सुख देनेवाले हे देवेश्वर ! आप भक्तिप्रिय हैं तथा गणों के अधिपति है । आप गणनाथ को नमस्कार है ।

एकदन्तं महाकायं तप्तकाञ्चनसन्निभम् लम्बोदरं विशालाक्षं वन्देऽहं गणनायकम् ॥

 भावार्थ :
एक दाँतवाले, महान् शरीरवाले, तपाये गये सुवर्ण के समान कान्तिवाले, लम्बे पेटवाले और बड़ी-बड़ी आँखोंवाले गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।

मात्रे पित्रे च सर्वेषां हेरम्बाय नमो नमः । अनादये च विघ्नेश विघ्नकर्त्रे नमो नमः ॥


 भावार्थ :
सबके माता और पिता हेरम्ब को बारम्बार नमस्कार है । हे विघ्नेश्वर ! आप अनादि और विघ्नों के भी जनक हैं , आपको बार-बार नमस्कार है ।

लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपशोभितम् । अर्धचन्द्रधरं देवं विघ्नव्यूहविनाशनम् ॥

 भावार्थ :
जो महापराक्रमी, लम्बोदर, सर्पमय यज्ञोपवीत से सुशोभित, अर्धचन्द्रधारी और विघ्न-समूह का विनाश करनेवाले हैं, उन गणपतिदेव की मैं वन्दना करता हूँ ।

गुरुदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय । गोप्याय गोपिताशेषभुवनाय चिदात्मने ॥

 भावार्थ :
जो भारी पेटवाले, गुरु, गोप्ता (रक्षक), गूढ़स्वरुप तथा सब ओर से गौर हैं, जिनका स्वरूप और तत्त्व गोपनीय हैं तथा जो समस्त भुवनों के रक्षक हैं, उन चिदात्मा आप गणपति को नमस्कार है ।

विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते । नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुणिडने ॥

 भावार्थ :
जो विश्व के मूल कारण, कल्याणस्वरूप, संसार की सृष्टि करनेवाले, सत्यरूप, सत्यपूर्ण तथा शुण्डधारी हैं, उन आप गणेश को बारम्बार नमस्कार है ।

वेदान्तवेद्यं जगतामधीशं देवादिवन्द्यं सुकृतैकगम्यम् । स्तम्बेरमास्यं नवचन्द्रचूडं विनायकं तं शरणं प्रपद्ये ॥

 भावार्थ :
मैं उन भगवान् विनायक की शरण ग्रहण करता हूँ, जो वेदान्त में वर्णित परब्रह्म हैं, त्रिभुवन के अधिपति हैं, देवता-सिद्धादि से पूजित हैं, एकमात्र पुण्य से ही प्राप्त होते हैं और जिन गजानन के भालपर द्धितीया की चन्द्ररेखा सुशोभित रहती है ।

नमामि देवं द्धिरदाननं तं यः सर्वविघ्नं हरते जनानाम् । धर्मार्थकामांस्तनुतेऽखिलानां तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ॥

 भावार्थ :
मैं उन गजाननदेव को नमस्कार करता हूँ, जो लोगों के समस्त विघ्नों का अपहरण करते हैं । जो सबके लिए धर्म, अर्थ और कामका विस्तार करते हैं, उन विघ्नविनाशन गणेश को नमस्कार है ।

द्धिरदवदन विषमरद वरद जयेशान शान्तवरसदन । सदनवसादन सादनमन्तरायस्य रायस्य ॥

 भावार्थ :
हाथी के मुख वाले, एकदन्त, वरदायी, ईशान, परमशान्ति एवं समृद्धि के आश्रय, सज्जनों के क्लेशहर्ता और विघ्नविनाशक हे गणपति ! आपकी जय हो ।

सर्वविघ्नहरं देवं सर्वविघ्नविवर्जितमम् सर्वसिद्धिप्रदातारं वन्देऽहं गणनायकम् ॥

 भावार्थ :
सभी प्रकार के विघ्नों का हरण करनेवाले, सभी प्रकार के विघ्नों से रहित तथा सभी प्रकार की सिद्धियों को देनेवाले भगवान् गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।

विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते । नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ॥

 भावार्थ :
जो विश्व के मूल कारण, कल्याणस्वरूप संसार की सृष्टि करनेवाले, सत्यरूप, सत्यपूर्ण तथा शुण्डधारी हैं, उन आप गणेश्वर को बारम्बार नमस्कार है ।

एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः । प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥

 भावार्थ :
जिनके एक दाँत और सुन्दर मुख है, जो शरणागत भक्तजनों के रक्षक तथा प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करनेवाले हैं, उन शुद्धस्वरूप आप गणपति को बारम्बार नमस्कार है ।

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् । भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये ॥

 भावार्थ :
भक्तके हृदयमें वास करनेवाले गौरी पुत्र विनायक को वंदन करने के पश्चात , दीर्घायु , सुख -समृद्धि एवं सर्व इच्छा पूर्ति हेतु उनका अखंड स्मरण करना चाहिए !

नमस्ते योगरूपाय सम्प्रज्ञातशरीरिणे । असम्प्रज्ञातमूर्ध्ने ते तयोर्योगमयाय च ॥

 भावार्थ :
हे गणेश्वर ! सम्प्रज्ञात समाधि आपका शरीर तथा असम्प्रज्ञात समाधि आपका मस्तक है । आप दोनों के योगमय होने के कारण योगस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ।

वामाङ्गे भ्रान्तिरूपा ते सिद्धिः सर्वप्रदा प्रभो । भ्रान्तिधारकरूपा वै बुद्धिस्ते दक्षिणाङ्गके ॥

 भावार्थ :
प्रभो ! आपके वामांग में भ्रान्तिरूपा सिद्धि विराजमान हैं, जो सब कुछ देनेवाली हैं तथा आपके दाहिने अंग में भ्रान्तिधारक रूपवाली बुद्धि देवी स्थित हैं ।



मायासिद्धिस्तथा देवो मायिको बुद्धिसंज्ञितः । तयोर्योगे गणेशान त्वं स्थितोऽसि नमोऽस्तु ते ॥

 भावार्थ :
भ्रान्ति अथवा माया सिद्धि है और उसे धारण करनेवाले गणेशदेव मायिक हैं । बुद्धि संज्ञा भी उन्ही की है । हे गणेश्वर ! आप सिद्धि और बुद्धि दोनों के योग में स्थित हैं । आपको बारम्बार नमस्कार है ।

जगद्रूपो गकारश्च णकारो ब्रह्मवाचकः । तयोर्योगे गणेशाय नाम तुभ्यं नमो नमः ॥

 भावार्थ :
गकार जगत्स्वरूप है और णकार ब्रह्मका वाचक है । उन दोनों के योग में विद्यमान आप गणेश-देवता को बारम्बार नमस्कार है ।

चौरवद्भोगकर्ता त्वं तेन ते वाहनं परम् । मूषको मूषकारूढो हेरम्बाय नमो नमः ॥



 भावार्थ :
आप चौर की भाँति भोगकर्ता हैं, इसलिए आपका उत्कृष्ट वाहन मूषक है । आप मूषक पर आरूढ़ हैं । आप हेरम्ब को बारम्बार नमस्कार है ।

किं स्तौमि त्वां गणाधीश योगशान्तिधरं परम् । वेदादयो ययुः शान्तिमतो देवं नमाम्यहम्॥

 भावार्थ :
गणाधीश ! आप योगशान्तिधारी उत्कृष्ट देवता हैं, मैं आपको क्या स्तुति कर सकता हूँ ! आपकी स्तुति करने में तो वेद आदि भी शान्ति धारण कर लेते हैं अतः मैं आप गणेश देवता को नमस्कार करता हूँ ।

ब्रह्मभ्यो ब्रह्मदात्रे च गजानन नमोऽस्तु ते । आदिपूज्याय ज्येष्ठाय ज्येष्ठराजाय ते नमः ॥

 भावार्थ :
आप ब्राह्मणों को ब्रह्म देते हैं, हे गजानन ! आपको नमस्कार है । आप प्रथम पूजनीय, ज्येष्ठ और ज्येष्ठराज हैं, आपको नमस्कार है ।

अनामयाय सर्वाय सर्वपूज्याय ते नमः । सगुणाय नमस्तुभ्यं ब्रह्मणे निर्गुणाय च ॥

 भावार्थ :
आप रोगरहित, सर्वस्वरूप और सबके पूजनीय हैं आपको नमस्कार है । आप ही सगुन और निर्गुण ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है ।

गजवक्त्रं सुरश्रेष्ठं कर्णचामरभूषितम् । पाशाङ्कुशधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥

 भावार्थ :
हाथी के मुख वाले देवताओं में श्रेष्ठ, कर्णरूपी चामरों से विभूषित तथा पाश एवं अंकुश को धारण करनेवाले भगवान् गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।

मौञ्जीकृष्णाजिनधरं नागयज्ञोपवीतिनम् । बालेन्दुशकलं मौलौ वन्देऽहं गणनायकम् ॥

 भावार्थ :
मुंजकी मेखला एवं कृष्णमृगचर्म को धारण करनेवाले तथा नाग का यज्ञोपवीत पहननेवाले और सिरपर बालचन्द्रकला को धारण करनेवाले गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।

चित्ररत्नविचित्राङ्गं चित्रमालाविभूषितम् । कायरूपधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥

 भावार्थ :
विचित्ररत्नों से चित्रित अंगोंवाले, विचित्र मालाओं से विभूषित तथा शरीररूप धारण करनेवाले उन भगवान् गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।

मूषिकोत्तममारुह्य देवासुरमहाहवे । योद्धुकामं महावीर्यं वन्देऽहं गणनायकम् ॥

 भावार्थ :
श्रेष्ठ मूषक पर सवार होकर देवासुरमहासंग्राम में युद्ध की इच्छा करनेवाले महान् बलशाली गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।

अम्बिकाहृदयानन्दं मातृभिः परिवेष्टितम् । भक्तिप्रियं मदोन्मत्तं वन्देऽहं गणनायकम् ॥

 भावार्थ :
भगवती पार्वती के हृदय को आनन्द देनेवाले, मातृकाओं से अनावृत, भक्तों के प्रिय, मद से उन्मत्त की तरह बने हुए गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।

 जय सिद्धिपते महामते जय बुद्धीश जडार्तसद्गते ।
 जय योगिसमूहसद्गुरो जय सेवारत कल्पनातरो ॥

 भावार्थ :
हे सिद्धिपते ! हे महापते ! आपकी जय हो । हे बुद्धिस्वामिन् ! हे जड़मति तथा दुःखियों के सद्गति-स्वरूप ! आपकी जय हो ! हे योगियों के सद्गुरु ! आपकी जय हो । हे सेवापरायणजनों के लिये कल्पवृक्षस्वरूप ! आपकी जय हो !

जननीजनकसुखप्रदो निखलानिष्ठहरोऽखिलेष्टदः । गणनायक एव मामवेद्रदपाशाङ्कुमोदकान् दधत् ॥

 भावार्थ :
माता-पिता को सुख देनेवाले, सम्पूर्ण विघ्न दूर करनेवाले, सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण करनेवाले एवं दन्त-पाश-अंकुश-मोदक धारण करनेवाले गणनायक मेरी रक्षा करें ।

गजराजमुखाय ते नमो मृगराजोत्तमवाहनाय ते । द्विजराजकलाभृते नमो गणराजाय सदा नमोऽस्तु ते ॥

 भावार्थ :
गजराज के समान मुखवाले आपको नमस्कार है, मृगराज से भी उत्तम वहनवाले आपको नमस्कार है, चन्द्रकलाधारी आपको नमस्कार है और गणों के स्वामी आपको सदा नमस्कार है ।

गणनाथ गणेश विघ्नराट् शिवसूनो जगदेकसद्गुरो । सुरमानुषगीतमद्यशः प्रणतं मामव संसृतेर्भयात् ॥

 भावार्थ :
हे गणनाथ ! हे गणेश ! हे विघ्नराज ! हे शिवपुत्र ! हे जगत् के एकमात्र सद्गुरु ! देवताओं तथा मनुष्यों के द्धारा किये गये उत्तम यशोगानवाले आप सांसारिक भय से मुझ शरणागत की रक्षा कीजिये ।

पं. संतोष तिवारी
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