Tuesday, July 16, 2019

शिव स्तोत्र संग्रह

।। चन्द्रशेखराष्टकं ।।

चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहिमाम् ।
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ १॥

रत्नसानुशरासनं रजतादिशृङ्गनिकेतनं
सिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युताननसायकम् ।
क्षिप्रदघपुरत्रयं त्रिदिवालयैभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ २॥

पञ्चपादपपुष्पगन्धपदाम्बुजदूयशोभितं
भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रह।म् ।
भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशनं भवमव्ययं
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ३॥

मत्त्वारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीमनोहरं
पङ्कजासनपद्मलोचनपुजिताङ्घ्रिसरोरुहम् ।
देवसिन्धुतरङ्गसीकर सिक्तशुभ्रजटाधरं
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ४॥

यक्षराजसखं भगाक्षहरं भुजङ्गविभूषणं
शैलराजसुता परिष्कृत चारुवामकलेवरम् ।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ५॥

कुण्डलीकृतकुण्डलेश्वरकुण्डलं वृषवाहनं
नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम् ।
अन्धकान्धकामा श्रिता मरपादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ६॥

भषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं
दक्षयज्ञर्विनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम् ।
भुक्तिमुक्तफलप्रदं सकलाघसङ्घनिवर्हनं 
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ७॥

भक्त वत्सलमचिञ्तं निधिमक्षयं हरिदम्वरं
सर्वभूतपतिं परात्पर प्रमेयमनुत्तमम् ।
सोमवारिज भूहुताशनसोमपानिलखाकृतिं 
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥ ८॥

विश्वसृष्टिविधालिनं पुनरेव पालनतत्परं
संहरन्तमपि प्रपञ्चम शेषलोकनिवासिनम् ।
क्रिडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथ समन्वितं
चन्द्रशेखर चन्द्रशेकर चन्द्रशेकर रक्षमाम् ॥ ९॥

।। इति चन्द्रशेखराष्टकं सम्पूर्णम् ।।

॥ शम्भुस्तुति॥

नमामि शम्भो नमामि शम्भो 
नमामि शम्भो नमामि शम्भो

नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं नमामि सर्वज्ञमपारभावम् ।
नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥१॥

नमामि देवं परमव्ययंतं उमापतिं लोकगुरुं नमामि ।
नमामि दारिद्रविदारणं तं नमामि रोगापहरं नमामि ॥२॥

नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् ।
नमामि विश्वस्थितिकारणं तं नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥

नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं नमामि नित्यं क्षरमक्षरं तम् ।
नमामि चिद्रूपममेयभावं त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥

नमामि कारुण्यकरं भवस्या भयंकरं वापि सदा नमामि ।
नमामि दातारमभीप्सितानां नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥

नमामि वेदत्रयलोचनं तं नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् ।
नमामि पुण्यं सदसद्व्यतीतं नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥

नमामि विश्वस्य हिते रतं तं नमामि रूपाणि बहूनि धत्ते ।
यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥

यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं तथागतिं लोकसदाशिवो यः ।
आराधितो यश्च ददाति सर्वं नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥

नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं उमापतिं तं विजयं नमामि ।
नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥

नमामि देवं भवदुःखशोकविनाशनं चन्द्रधरं नमामि ।
नमामि गंगाधरमीशमीड्यम् उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥

नमाम्यजादीशपुरन्दरादिसुरासुरैरर्चितपादपद्मम ।
नमामि देवीमुखवादनाना मिक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत ॥११॥

पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैर्विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः ।
अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥

।। इति शम्भुस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

॥ श्रीबदरीनाथाष्टकम् ॥

भू-वैकुण्ठ-कृतं वासं देवदेवं जगत्पतिम्।
चतुर्वर्ग-प्रदातारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ १॥

तापत्रय-हरं साक्षात् शान्ति-पुष्टि-बल-प्रदम्।
परमानन्द-दातारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ २॥

सद्यः पापक्षयकरं सद्यः कैवल्य-दायकम्।
लोकत्रय-विधातारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ३॥

भक्त-वाञ्छा-कल्पतरुं करुणारस-विग्रहम्।
भवाब्धि-पार-कर्तारं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ४॥

सर्वदेव-स्तुतं सश्वत् सर्व-तीर्थास्पदं विभुम्।
लीलयोपात्त-वपुषं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ५॥

अनादिनिधनं कालकालं भीमयमच्युतम्।
सर्वाश्चर्यमयं देवं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ६॥

गन्दमादन-कूटस्थं नर-नारायणात्मकम्।
बदरीखण्ड-मध्यस्थं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ७॥

शत्रूदासीन-मित्राणां सर्वज्ञं समदर्शिनम्।
ब्रह्मानन्द-चिदाभासं श्रीबदरीशं नमाम्यहम् ॥ ८॥

श्रीबद्रीशाष्टकमिदं यः पटेत् प्रयतः शुचिः।
सर्व-पाप-विनिर्मुक्तः स शान्तिं लभते पराम् ॥ ९॥

       ॥ ॐ तत्सत्॥

॥ वेदसार शिवस्तव:॥

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ॥१॥

भावार्थ— जो सम्पूर्ण प्राणियों के रक्षक हैं, पापका ध्वंस करने वाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराजका चर्म पहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूटमें श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजी का मैं स्मरण करता हुॅं ||1||

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ॥२॥

भावार्थ— चन्द्र,सूर्य और अग्नि— तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देवदु:खदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूतिभूषण, नित्यानन्दस्वरूप, पंचमुख भगवान् महादेवकी मैं स्तुति करता हूॅं ||2||

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ॥३॥

भावार्थ— जो कैलासनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ हैं, बैलपर चढ़े हुए हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसारक आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीर में भस्म लगाये हुए हैं और श्री पार्वतीजी जिनकी अद्र्धागिंनी हैं, अन पंचमुख महादेवजी को मैं भजता हुॅं ||3||

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले
महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ॥४॥

भावार्थ— हे पार्वतीवल्लभ महादेव ! हे चन्द्रशेखर ! हे महेश्वर ! हे त्रिशूलिन ! हे जटाजूटधरिन्! हे विश्वरूप ! एकमात्र आप ही जगत् में व्यापक हैं। हे पूर्णरूप प्रभो ! प्रसन्न् होइये, प्रसन्न् होइये ||4||

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ॥५॥

भावार्थ— जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत् के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्राणवद्वारा जाननेयोग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभुको मैं भजता हूॅ ||5||

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु-
र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो
न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ॥६॥

भावार्थ— जो ज पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश है; न तन्द्रा हैं, निन्द्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है, उन मूर्तिहीन त्रिमूर्ति की मैं स्तुति करता हूॅं ||6||

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ॥७॥

भावार्थ— जो अजन्मा हैं नित्य हैं, कारण के भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं प्रकाशकों के भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रय से विलक्षण हैं, अज्ञान से परे हैं, अनादि और अनन्त हैं, उन परमपावन अद्वैतस्वरूप को मैं प्रणाम करता हूॅं ||7||

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥८॥ 

भावार्थ— हे विश्वमूर्ते ! हे विभो ! आपको नमस्कार है। नमस्कार है हे चिदानन्दमूर्ते ! आपको नमस्कार हैं नमस्कार है। हे तप तथा योगसे प्राप्तव्य प्रभो ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। वेदवेद्य भगवन् ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है ||8||

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शंभो महेश त्रिनेत्र
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ॥९॥

भावार्थ— हे प्रभो ! हे त्रिशूलपाणे ! हे विभो ! हे विश्वनाथ ! हे महादेव ! हे शम्भो ! हे महेश्वर ! हे त्रिनेत्र ! हे पार्वतीप्राणवल्लभ ! हे शान्त ! हे कामारे ! हे त्रपुरारे ! तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, माननीय है और न गणनीय है ||9||

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्
काशीपते करुणया जगदेतदेक-
स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ॥१०॥

भावार्थ— हे शम्भो ! हे महेश्वर ! हे करूणामय ! हे त्रिशूलिन् ! हे गौरीपते ! हे पशुपते ! हे पशुबन्धमोचन ! हे काशीश्वर ! एक तुम्हीं करूणावश इस जगत् की उत्पति, पालत और संहार करते हो; प्रभो ! तुम ही इसके एक मात्र स्वामी हो ||10||


त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन् ॥११॥

भावार्थ— हे देव ! हे शंकर ! हे कन्दर्पदलन ! हे शिव ! हे विश्वनाथ ! हे इश्वर ! हे हर ! हे हर ! हे चराचरजगद्रूप प्रभो ! यह लिंगस्वरूप समस्त जगत् तुम्हीं से उत्पन्न होता है, तुम्हीं में ​स्थित रहता है और तुम्हीं में लय हो जाता है ||11||

।। इति श्रीमच्छकंराचार्यकृतो वेदसारशिवस्तव: सम्पूर्ण:।।


श्री शिव स्तुति 

शीश गंग अर्धांग पार्वती सदा विराजत कैलासी!
नंदी भृंगी नृत्य करत है, गुणभक्त शिव की दासी!!

सीतल मद्सुगंध पवन बहे बैठी हैं शिव अविनाशी!
करत गान गन्धर्व सप्त सुर, राग - रागिनी सब गासी!!

अक्ष रक्ष भैरव जह डोलत बोलत है अनेक वासी!
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत है गुन्जासी!!

कल्प वृक्ष अरु पारिजात लग रहे हैं लक्षासी!
सूर्य कांति सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्ति नव मीमासी!!

छहों ऋतु नित फलत फुलत है पुष्प चढत है वर्षा सी!
देव मुनि जन की भीड़ पडत, निगम रहत जो नितगासी !!

ब्रह्मा विष्णु जाको ध्यान धरत है, कछु शिव हमको परमसी!
ऋद्धि-सिद्धि के दाता शंकर, सदा आनंदित सुखरासी!!

जिनके सुमिरन सेवा करते टूट जाये यम की फांसी!
त्रिशूल फरसा का ध्यान निरंतर, मन लगाये कर जो ध्यासी!!

दूर करे विपदा शिव तिनकी जन्म सफल शिव्पदपासी!
कैलाशी काशी के वासी, अविनाशी सुध मेरी लीज्यो!
सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान दरस दीज्यो!!

तुम तो प्रभु सदा सयाने, अवगुण मेरे सदा ढकियो!
सब अपराध क्षमा कर शंकर किंकर की विनती सुनियो!!


|| वैद्यनाथाष्टकम्||

श्रीरामसौमित्रिजटायुवेद षडाननादित्य कुजार्चिताय |
श्रीनीलकण्ठाय दयामयाय श्रीवैद्यनाथाय नमःशिवाय || १||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

गङ्गाप्रवाहेन्दु जटाधराय त्रिलोचनाय स्मर कालहन्त्रे |
समस्त देवैरभिपूजिताय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || २||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

भक्तःप्रियाय त्रिपुरान्तकाय पिनाकिने दुष्टहराय नित्यम् |
प्रत्यक्षलीलाय मनुष्यलोके श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ३||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

प्रभूतवातादि समस्तरोग प्रनाशकर्त्रे मुनिवन्दिताय |
प्रभाकरेन्द्वग्नि विलोचनाय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ४||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

वाक् श्रोत्र नेत्राङ्घ्रि विहीनजन्तोः वाक्श्रोत्रनेत्रांघ्रिसुखप्रदाय |
कुष्ठादिसर्वोन्नतरोगहन्त्रे श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ५||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

वेदान्तवेद्याय जगन्मयाय योगीश्वरद्येय पदाम्बुजाय |
त्रिमूर्तिरूपाय सहस्रनाम्ने श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ६||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

स्वतीर्थमृद्भस्मभृताङ्गभाजां पिशाचदुःखार्तिभयापहाय |
आत्मस्वरूपाय शरीरभाजां श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ७||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय स्रक्गन्ध भस्माद्यभिशोभिताय |
सुपुत्रदारादि सुभाग्यदाय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय || ८||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||

वालाम्बिकेश वैद्येश भवरोगहरेति च |
जपेन्नामत्रयं नित्यं महारोगनिवारणम् || ९||

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव |
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ||


|| इति श्री वैद्यनाथाष्टकम् ||

       
पं. संतोष तिवारी
6299953415

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