भारतीय ज्योतिष में षोडश वर्गों के अन्तर्गत नवांश वर्ग का विशेष महत्त्व है| राशि या लग्न वर्ग के पश्चात् फल विचार में नवांश वर्ग को ही प्रमुख स्थान प्राप्त है, इसलिए नवांश वर्ग को लग्न रूपी शरीर की आत्मा कहा जाता है|
विंशोपक बल विचार में लग्न को जहॉं ३० प्रतिशत भार मिलता है, वहीं जन्म लग्न के पश्चात् नवांश वर्ग को २५ प्रतिशत भार प्राप्त होता है|
कई ज्योतिर्विदों ने नवांश वर्ग को जन्म वर्ग के समान ही फलदायी बताया है| षोडश वर्गों में सर्वाधिक रूप से विचारणीय वर्ग यही है| नवांश वर्ग द्वारा जन्मकुण्डली के बल में संशोधन सम्बन्धी बल भी जातक शास्त्रों में कहे गए हैं, यथा :
1. यदि जन्मकुण्डली निर्बल है और नवांश वर्ग बली है, तो नवांश वर्ग लग्न कुण्डली की निर्बलता को दूर कर देती है|
2. यदि जन्मकुण्डली बली हो और नवांश कुण्डली निर्बल हो, तो व्यक्ति को जन्मकुण्डली के शुभ फल निम्न मात्रा में प्राप्त होते हैं|
3. यदि जन्मकुण्डली एवं नवांश कुण्डली समान बली हैं, तो व्यक्ति को जन्मकुण्डली के ही फल प्राप्त होंगे|
विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों में नवांश के आधार पर पृथक् से फल कथन की भी परम्परा है, जैसे : ग्रह का वर्गोत्तमी होना, नवांश द्वारा ग्रह के उच्चत्व, नीचत्व का निर्धारण आदि|
उपर्युक्त तथ्यों से ज्ञात होता है कि नवांश वर्ग का महत्त्व व्यक्ति के जीवन से सम्बन्धित सभी पहलुओं के फल कथन से है| कार्यक्षेत्र विचार में भी नवांश वर्ग का विशेष महत्त्व है|
वराहमिहिर ने बृहज्जातक ग्रन्थ के ‘कर्मजीवाध्याय’ में नवांश वृत्ति से आजीविका सम्बन्धी योगों का विचार कर यह तथ्य सिद्ध करने का प्रयास किया है, कि आजीविका विचार में लग्न एवं चन्द्र कुण्डलियों के अतिरिक्त नवांश वर्ग का भी अत्यधिक महत्त्व है| वराहमिहिर ने वर्गोत्तमी लग्न अर्थात् जब लग्न और नवांश कुण्डली के प्रथम भाव में एक ही राशि हो, तो वह वर्गोत्तमी लग्न कहलाएगा| यह वर्गोत्तमी लग्न स्थिति अपने आप में राजयोगकारी होती है| इसी प्रकार चन्द्रमा का वर्गोत्तमी होना भी शुभ माना जाता है|
सामान्य रूप से ग्रह का फल भावस्थ राशि सापेक्ष होता है| एक राशि का विस्तार 30 अंश तक होता है| जन्म के समय किसी भी राशि में ग्रह की स्थिति किसी भी अंश पर हो सकती है| एक ही राशि में 2 अंश, 21 अंश अथवा 28 अंश पर स्थित ग्रह समान रूप से फल नहीं दे सकता है|
लग्न कुण्डली से ग्रह का स्थूल बल ही ज्ञात हो पाता है| ग्रह के फल का सूक्ष्मता से विचार करने के लिए एक राशि को कई प्रकार के सूक्ष्म विभागों में विभाजित किया जाता है| एक राशि को जितने अधिक से अधिक विभागों में बॉंटा जाता है, ग्रह का फल उतना ही सूक्ष्म एवं स्पष्ट होता जाता है| महर्षि पराशर ने एक राशि को सोलह मापकों पर विभाजित किया है| इन सभी सोलह विभागों को मिलाकर षोडश वर्ग की संज्ञा दी गई है| इन वर्गों में सबसे बड़ा वर्ग लग्न तथा सबसे छोटा वर्ग षष्ठ्यंश वर्ग होता है| इन वर्गों का उद्देश्य मानव जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का अध्ययन करना होता है|
इन सभी षोडश वर्गों में नवांश वर्ग का महत्त्व स्पष्ट है| नवांश वर्ग से मुख्य रूप से वैवाहिक जीवन, जीवनसाथी के चरित्र, विवाह का समय, वैवाहिक जीवन में खुशहाली एवं अरिष्ट के आकलन का विचार किया जाता है|
बृहज्जातक में वराहमिहिर ने सर्वप्रथम नवांश वर्ग से आजीविका विचार को स्पष्ट किया| उत्तरोत्तर यही विचार मन्त्रेश्वर, कल्याण वर्मा, वैद्यनाथ आदि प्रसिद्ध ज्योतिर्विदों ने भी प्रतिपादित किया|
नवांश वर्ग में आजीविका सम्बन्धी योगों का विचार करते समय निम्नलिखित तथ्यों का ज्ञान होना भी आवश्यक है:
1. दशमेश की नवांश राशि का स्वामी बलवान् हो, तो व्यक्ति को बिना अधिक प्रयासों के ही धन की प्राप्ति हो जाती है| इसके विपरीत नवांशेश निर्बल अथवा नीच राशि या नवांश में हो, तो सफलता प्राप्ति में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है|
2. यदि दशमेश की नवांश राशि का स्वामी चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) में हो, तो अपने निवास से दूर रहकर धन एवं सुख प्राप्त होता है| यदि उक्त नवांशेश स्थिर राशि (वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ) या नवांश में हो, तो जन्म स्थान के निकट रहकर ही धनार्जन होता है| द्विस्वभाव (मिथुन, कन्या, धनु, मीन) राशि में उक्त नवांशेश होने पर कहीं पर भी रहकर धन प्राप्त किया जा सकता है|
3. धनप्राप्ति अर्थात् व्यवसाय की दिशा दशम भाव की राशि या दशमेश की नवांश राशि के आधार पर निर्धारित होती है|
4. लग्न अथवा चन्द्रमा में से जो बली हो, उससे दशम भाव में स्थित राशि का स्वामी नवांश वर्ग में जिस राशि में स्थित हो, उस नवांश राशि का स्वामी ही जातक के कार्यक्षेत्र का मुख्य कारक ग्रह होता है|
उपर्युक्त सभी सिद्धान्तों के अतिरिक्त कार्यक्षेत्र से सम्बन्धित अन्य योगों तथा अनुकूल ग्रहों के बलाबल का विचार भी नवांश वर्ग में करना चाहिए|
जो राजयोग अथवा राजभङ्ग योग कार्यक्षेत्र को प्रभावित करते हैं, उन योगों को निर्मित करने वाले ग्रहों का बलाबल विचार भी नवांश वर्ग से अवश्य करना चाहिए| इस प्रकार नवांश वर्ग का महत्त्व कार्यक्षेत्र में निश्चित रूप से विचारणीय है|
नवांश वर्ग के समान ही कार्यक्षेत्र में आजीविका विचार के लिए दशमांश वर्ग का विचार करना चाहिए| दशमांश वर्ग का अध्ययन व्यवसाय, व्यवसाय में सफलता, भाग्य निर्धारण, सम्मान तथा जीवन में सफलता प्राप्ति हेतु किया जाता है| कार्यक्षेत्र सम्बन्धी नवांशेश ग्रह दशमांश वर्ग में बली हो, उच्च राशि का हो, शुभ भावों में स्थित हो, तो व्यक्ति को धनार्जन में किसी प्रकार की समस्या नहीं होती| वे ग्रह दशमांश वर्ग में बली होकर लाभ, लग्न, द्वितीय अथवा भाग्य भाव में स्थित हों, तो व्यक्ति को निश्चित रूप से कई कार्यों से धनागम होता है|
विंशोपक बल विचार में लग्न को जहॉं ३० प्रतिशत भार मिलता है, वहीं जन्म लग्न के पश्चात् नवांश वर्ग को २५ प्रतिशत भार प्राप्त होता है|
कई ज्योतिर्विदों ने नवांश वर्ग को जन्म वर्ग के समान ही फलदायी बताया है| षोडश वर्गों में सर्वाधिक रूप से विचारणीय वर्ग यही है| नवांश वर्ग द्वारा जन्मकुण्डली के बल में संशोधन सम्बन्धी बल भी जातक शास्त्रों में कहे गए हैं, यथा :
1. यदि जन्मकुण्डली निर्बल है और नवांश वर्ग बली है, तो नवांश वर्ग लग्न कुण्डली की निर्बलता को दूर कर देती है|
2. यदि जन्मकुण्डली बली हो और नवांश कुण्डली निर्बल हो, तो व्यक्ति को जन्मकुण्डली के शुभ फल निम्न मात्रा में प्राप्त होते हैं|
3. यदि जन्मकुण्डली एवं नवांश कुण्डली समान बली हैं, तो व्यक्ति को जन्मकुण्डली के ही फल प्राप्त होंगे|
विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों में नवांश के आधार पर पृथक् से फल कथन की भी परम्परा है, जैसे : ग्रह का वर्गोत्तमी होना, नवांश द्वारा ग्रह के उच्चत्व, नीचत्व का निर्धारण आदि|
उपर्युक्त तथ्यों से ज्ञात होता है कि नवांश वर्ग का महत्त्व व्यक्ति के जीवन से सम्बन्धित सभी पहलुओं के फल कथन से है| कार्यक्षेत्र विचार में भी नवांश वर्ग का विशेष महत्त्व है|
वराहमिहिर ने बृहज्जातक ग्रन्थ के ‘कर्मजीवाध्याय’ में नवांश वृत्ति से आजीविका सम्बन्धी योगों का विचार कर यह तथ्य सिद्ध करने का प्रयास किया है, कि आजीविका विचार में लग्न एवं चन्द्र कुण्डलियों के अतिरिक्त नवांश वर्ग का भी अत्यधिक महत्त्व है| वराहमिहिर ने वर्गोत्तमी लग्न अर्थात् जब लग्न और नवांश कुण्डली के प्रथम भाव में एक ही राशि हो, तो वह वर्गोत्तमी लग्न कहलाएगा| यह वर्गोत्तमी लग्न स्थिति अपने आप में राजयोगकारी होती है| इसी प्रकार चन्द्रमा का वर्गोत्तमी होना भी शुभ माना जाता है|
सामान्य रूप से ग्रह का फल भावस्थ राशि सापेक्ष होता है| एक राशि का विस्तार 30 अंश तक होता है| जन्म के समय किसी भी राशि में ग्रह की स्थिति किसी भी अंश पर हो सकती है| एक ही राशि में 2 अंश, 21 अंश अथवा 28 अंश पर स्थित ग्रह समान रूप से फल नहीं दे सकता है|
लग्न कुण्डली से ग्रह का स्थूल बल ही ज्ञात हो पाता है| ग्रह के फल का सूक्ष्मता से विचार करने के लिए एक राशि को कई प्रकार के सूक्ष्म विभागों में विभाजित किया जाता है| एक राशि को जितने अधिक से अधिक विभागों में बॉंटा जाता है, ग्रह का फल उतना ही सूक्ष्म एवं स्पष्ट होता जाता है| महर्षि पराशर ने एक राशि को सोलह मापकों पर विभाजित किया है| इन सभी सोलह विभागों को मिलाकर षोडश वर्ग की संज्ञा दी गई है| इन वर्गों में सबसे बड़ा वर्ग लग्न तथा सबसे छोटा वर्ग षष्ठ्यंश वर्ग होता है| इन वर्गों का उद्देश्य मानव जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का अध्ययन करना होता है|
इन सभी षोडश वर्गों में नवांश वर्ग का महत्त्व स्पष्ट है| नवांश वर्ग से मुख्य रूप से वैवाहिक जीवन, जीवनसाथी के चरित्र, विवाह का समय, वैवाहिक जीवन में खुशहाली एवं अरिष्ट के आकलन का विचार किया जाता है|
बृहज्जातक में वराहमिहिर ने सर्वप्रथम नवांश वर्ग से आजीविका विचार को स्पष्ट किया| उत्तरोत्तर यही विचार मन्त्रेश्वर, कल्याण वर्मा, वैद्यनाथ आदि प्रसिद्ध ज्योतिर्विदों ने भी प्रतिपादित किया|
नवांश वर्ग में आजीविका सम्बन्धी योगों का विचार करते समय निम्नलिखित तथ्यों का ज्ञान होना भी आवश्यक है:
1. दशमेश की नवांश राशि का स्वामी बलवान् हो, तो व्यक्ति को बिना अधिक प्रयासों के ही धन की प्राप्ति हो जाती है| इसके विपरीत नवांशेश निर्बल अथवा नीच राशि या नवांश में हो, तो सफलता प्राप्ति में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है|
2. यदि दशमेश की नवांश राशि का स्वामी चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) में हो, तो अपने निवास से दूर रहकर धन एवं सुख प्राप्त होता है| यदि उक्त नवांशेश स्थिर राशि (वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ) या नवांश में हो, तो जन्म स्थान के निकट रहकर ही धनार्जन होता है| द्विस्वभाव (मिथुन, कन्या, धनु, मीन) राशि में उक्त नवांशेश होने पर कहीं पर भी रहकर धन प्राप्त किया जा सकता है|
3. धनप्राप्ति अर्थात् व्यवसाय की दिशा दशम भाव की राशि या दशमेश की नवांश राशि के आधार पर निर्धारित होती है|
4. लग्न अथवा चन्द्रमा में से जो बली हो, उससे दशम भाव में स्थित राशि का स्वामी नवांश वर्ग में जिस राशि में स्थित हो, उस नवांश राशि का स्वामी ही जातक के कार्यक्षेत्र का मुख्य कारक ग्रह होता है|
उपर्युक्त सभी सिद्धान्तों के अतिरिक्त कार्यक्षेत्र से सम्बन्धित अन्य योगों तथा अनुकूल ग्रहों के बलाबल का विचार भी नवांश वर्ग में करना चाहिए|
जो राजयोग अथवा राजभङ्ग योग कार्यक्षेत्र को प्रभावित करते हैं, उन योगों को निर्मित करने वाले ग्रहों का बलाबल विचार भी नवांश वर्ग से अवश्य करना चाहिए| इस प्रकार नवांश वर्ग का महत्त्व कार्यक्षेत्र में निश्चित रूप से विचारणीय है|
नवांश वर्ग के समान ही कार्यक्षेत्र में आजीविका विचार के लिए दशमांश वर्ग का विचार करना चाहिए| दशमांश वर्ग का अध्ययन व्यवसाय, व्यवसाय में सफलता, भाग्य निर्धारण, सम्मान तथा जीवन में सफलता प्राप्ति हेतु किया जाता है| कार्यक्षेत्र सम्बन्धी नवांशेश ग्रह दशमांश वर्ग में बली हो, उच्च राशि का हो, शुभ भावों में स्थित हो, तो व्यक्ति को धनार्जन में किसी प्रकार की समस्या नहीं होती| वे ग्रह दशमांश वर्ग में बली होकर लाभ, लग्न, द्वितीय अथवा भाग्य भाव में स्थित हों, तो व्यक्ति को निश्चित रूप से कई कार्यों से धनागम होता है|
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