Thursday, June 6, 2019

आयुर्वेद १

इसका सत बनाने के लिए , इसके रस में दो गुना पानी मिलाकर एक बर्तन में 24 घंटों के लिए रख दें . इसके बाद ऊपर का पानी निथारकर फेंक दें और नीचे बचे हुए residue को किसी चौड़े बर्तन में फैलाकर छाया में सुखा लें . तीन चार दिन बाद यह सूखकर पावडर बन जाएगा . इसे द्रोणपुष्पी का सत कहते हैं . इसे प्रतिदिन आधा ग्राम की मात्र में लेने से सब प्रकार की व्याधियां समाप्त हो जाती हैं . और अगर कोई व्याधि नहीं है तब भी यह लेने से व्याधियों से बचे रहते हैं , प्रदूषणजन्य बीमारियों से भी बचाव होता है .

1 : खुजली :- द्रोणपुष्पी के ताजा रस को खुजली वाली जगह पर मलने से राहत मिलती है।खाज-खुजली होने पर द्रोणपुष्पी का रस जहां पर खुजली हो वहां पर लगाने से लाभ होता है।

2 : सर्पविष : – द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में 2 कालीमिर्च पीसकर मिलाएं। इसकी एक मात्रा दिन में 3-4 बार रोगी को पिलायें या रोगी की आंखों में इसके पत्तों का रस 2-3 बूंद रोजाना 4-5 बार डालें। इससे जहर का असर खत्म हो जाता है।

3 : शोथ (सूजन) :- द्रोणपुष्पी और नीम के पत्ते के छोटे से भाग को पीसकर सूजन पर गर्म-गर्म लेप लगाने से आराम मिलता है।

4 : खांसी :- द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में आधा चम्मच बहेड़े का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है।

5 : संधिवात :- द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में इतना ही पीपल का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम लेने से संधिवात में लाभ मिलता है।

6 : सिरदर्द :- द्रोणपुष्पी का रस 2-2 बूंद की मात्रा में नाक के नथुनों में टपकाने से और इसमें 1-2 कालीमिर्च पीसकर माथे पर लेप करने से दर्द में आराम मिलता है।

7 : पीलिया ;- द्रोणपुष्पी के पत्तों का 2-2 बूंद रस आंखों में हर रोज सुबह-शाम कुछ समय तक लगातार डालते रहने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।

8 : सर्दी :- द्रोणपुष्पी का रस नाक में 2-2 बूंद डालने से और उसका रस नाक से सूंघने से सर्दी दूर हो जाती है।

9 : बुखार :- 2 चम्मच द्रोणपुष्पी के रस के साथ 5 कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से ज्वर (बुखार) के रोग में आराम पहुंचता है।

10 : श्वास, दमा :- द्रोणपुष्पी के सूखे फूल और धतूरे के फूल का छोटा सा भाग मिलाकर धूम्रपान करने से दमे का दौरा रुक जाता है।

11 : यकृत (जिगर) वृद्धि :- द्रोणपुष्पी की जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में 1 ग्राम पीपल के चूर्ण के साथ सुबह-शाम कुछ हफ्ते तक सेवन करने से जिगर बढ़ने का रोग दूर हो जाता है।

12 : दांतों का दर्द : :- द्रोणपुष्पी का रस, समुद्रफेन, शहद तथा तिल के तेल को मिलाकर कान में डालने से दांतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं तथा दांतों का दर्द ठीक होता है।

13 : खांसी :- 3 ग्राम द्रोणपुष्पी के रस में 3 ग्राम बहेड़े के छिलके का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से खांसी का रोग ठीक हो जाता है।

14. विषम -ज्वर – गुम्मा या द्रोणपुष्पी के टहनी या पट्टी को पीस कर पुटली बनाले और उसे बाए हाथ के नाड़ी पर कपड़ा के सहयोग से बाँध दे । इसे रोगी का ज्वर बहुत ही जल्द ठीक हो जाता है ।

15. सुखा रोग में – सुखा रोग ख़ास कर छोटे बच्चों को होता है । गुम्मा के टहनी या पत्ते को पिस कर शुद्ध घी में आग पर पक्का ले और ठंडा होने के बाद इस घी से बच्चे के शरीर पर मालिश करे ।इस सुखा रोग बहुत ही जल्द दूर हो जाता है ।

साँप के काटने पर :- किसी भी व्यक्ति को कितना भी जहरीला साँप क्यों न काटा हो उसे द्रोणपुष्पी के पत्ते या टहनी को खिलाना चाहिए या इसके 10 से 15 बून्द रस पिला देना चाहिए ।अगर वयक्ति बेहोश हो गया हो तो गुम्मा (द्रोणपुष्पी ) के रस निकाल कर उसके कान , मुँह और नाक के रास्ते टपका दे ।इसे व्यक्ति अगर मरा नही हो तो निश्चित ही ठीक हो जाएगा ।ठीक होने के बाद उसे कुछ घण्टे तक सोन न दे ।

हानिकारक प्रभाव : ठण्डी प्रकृति वालों के लिए द्रोणपुष्पी का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।

मात्रा : द्रोणपुष्पी के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल तथा फल) का चूर्ण 5 से 10 ग्राम। रस 10 से 20 मिलीलीटर।


    अतिसार-जो लोग अतिसार रोग ग्रस्त हैं, उन्हें सहदेवी पौधे की जड़ के सात टुकड़ों को एक लाल धागे के सहारे कमर में बाॅध लेने से अतिसार रोग ठीक हो जाता है।
धनवृद्धि-सहदेवी की जड़ को अभिमंत्रित करके एक लाल वस्त्र में लपेटकर घर की तिजोरी या व्यापार के गल्ले में रख देने से धीरे-धीरे धन की वृद्धि होने लगती है।

कार्य अनिच्छा
यदि किसी जातक का किसी कार्य में मन नहीं लगता हो तो सहदेवी की जड़ को पुष्य नक्षत्र में अभिमंत्रित करके अपने पास रखने से कार्य में मन लगने लगता है।


जो बच्चे कण्ठमाला के रोग से ग्रस्त है...
कण्ठमाला रोग-जो बच्चे कण्ठमाला के रोग से ग्रस्त है, वे सहदेवी की जड़ को अभिमंत्रित करके गले में धारण करने से रोग का शमन होता है।
सामाजिक सम्मान हेतु-अगर आप चाहते है कि समाज में आपका मान-सम्मान बढ़े तो सहदेवी के पौधे को पीसकर नित्य माथे पर तिलक लगायें व गणेश स्त्रोत का पाठ करें।


यदि आपके घर में किसी भी प्रकार का वास्तु दोष है तो ...
वास्तुदोष निवारण हेतु-यदि आपके घर में किसी भी प्रकार का वास्तु दोष है, जिसके कारण आपके परिवार की प्रगति नहीं हो पा रही है तो घर के पूर्व या उत्तर दिशा में एक सहदेवी का पौधा लगायें और उसकी नियमित धूप-दीप देकर पूजा करने से घर के वास्तुदोष का शमन होकर समृद्धि व खुशहाली आती है।
प्रसव वेदना-यदि कोई स्त्री प्रसव वेदना से व्याकुल है हो तो सहदेवी की जड़ को लाल धागे के सहारे उसकी कमर में बाॅध देने से स्त्री शीघ्र ही पीड़ा से मुक्त हो जाती है।

 
महिला को सन्तान की प्राप्ति होती है........
सन्तान लाभ-सहदेवी का समूचा पौधा सुखाकर फिर उसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को गाय के घी के साथ मासिकधर्म के पाॅच दिन पूर्व से और पाॅच दिन बाद तक स्त्री को नियमित रूप से सेंवन करना से महिला को सन्तान की प्राप्ति होती है।
शत्रु समपर्ण-सहदेवी और अपामार्ग के रस को लोहे के पात्र में रखकर अच्छी तरह घोंटकर फिर उसका तिलक लगाकर शत्रु के सामने जाने पर शत्रु आपके समक्ष आत्म समर्पित हो जाता है।
      औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

प्रदर-1 ग्राम सहदेवी (Sahdevi) मूल कल्क को बकरी के दूध के साथ सेवन करने से प्रदर रोग का शमन होता है।
श्लीपद-सहदेवी मूल कल्क में हरताल मिलाकर लेप करने से चिरकालीन तथा दुर्निवार्य श्लीपद रोग का शमन हो जाता है।
रक्तचंदन तथा सहदेवी को पीसकर लेप करने से श्लीपद में लाभ होता है।
सहदेवी के पत्र-स्वरस को तैल में उबालकर लेप करने से श्लीपद रोग में लाभ होता है।
विस्फोटक-सहदेवी (Sahdevi) के कल्क को घी में सेंककर विस्फोट पर बाँधने से विस्फोटकों का शमन होता है।
पिडका-चावल के धोवन में सहदेवी मूल को घिसकर पिडका पर लेप करने से लाभ होता है।
शत्रक्षत-शत्रजन्य क्षत में सहदेवी स्वरस भरकर ऊपर से शरपुंखा स्वरस डालकर वत्र की पट्टी बाँध देने से शीघ्र व्रण का रोपण होता है।
अपची-सहदेवी मूल (Sahdevi) को पुष्य-नक्षत्र में उखाड़कर बांधने से अपची रोग में लाभ होता है।
विसर्प-सहदेवी (Sahdevi) पत्र-स्वरस का लेप करने से विसर्प एवं पामा में लाभ होता है।
ज्वर-सहदेवीस्वरस से सिद्ध किया गया तैल ज्वरनाशक है।
सहदेवी की मूल को सिर में बांधने से विषम ज्वर का शमन होता है तथा नींद अच्छी आती है।
सहदेवी मूल से सिद्ध किए हुए जल से बालक को स्नान कराकर, गुग्गुलु, हींग, मोरपंख, वन तथा नीम पत्र से धूपन करने से रोगों तथा ग्रहादि दोषों से बालक की रक्षा होती है।
प्रयोज्याङ्ग : पञ्चाङ्ग।

मात्रा : कल्क 1 ग्राम या चिकित्सक के परामर्शानुसार।



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