Thursday, June 27, 2019

चावल के टोटके

शिव को अर्पित करें चावल : प्रति सोमवार शिवलिंग पूजन में बैठने से पूर्व अपने पास करीब आधा किलो या एक किलो चावल का ढेर लेकर बैठें। फिर शिवलिंग का विधिवत पूजन करें। पूजा पूर्ण होने के बाद चावल के ढेर से एक मुट्ठी चावल लेकर शिवलिंग पर अर्पित करें।

इसके बाद बचे हुए चावल को मंदिर में दान कर दें या किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दे दें। ऐसा हर सोमवार को करें। कम से कम पांच सोमवार करें। इस उपाय को अपनाने से धन संबंधी समस्या दूर हो जाएगी।




लक्ष्मी पूजन में चावल : यह उपाय किसी भी शुभ मुहूर्त, होली के दिन या किसी भी पूर्णिमा के दिन कर सकते हैं। इसके लिए सुबह जल्दी उठें और सभी नित्य कर्मों से निवृत्त होने के बाद लाल रंग का कोई रेशमी कपड़ा लें।

इस लाल कपड़े में पीले चावल के 21 अखंडित दानें रखें। यानि कोई टूटा हुआ दाना न रखें। चावल को पीला करने के लिए हल्दी का प्रयोग करें। उन दानों को कपड़े में बांध लें। अब माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक चौकी बनाएं और उस पर यह लाल कपड़े में बंधे चावल भी रखें। इसके बाद उनकी नियमपूर्वक पूजा करें। पूजन के बाद यह लाल कपड़े में बंधे चावल अपने पर्स में छिपाकर रख लें। ऐसा करने पर महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और धन संबंधी मामलों में चल रही रुकावटें दूर हो जाती हैं।

ध्यान रखें कि पर्स में किसी भी प्रकार की अधार्मिक वस्तु कतई न रखें। इसके अलावा पर्स में चाबियां नहीं रखनी चाहिए। सिक्के और नोट अलग-अलग व्यस्थित ढंग से रखे होने चाहिए। नोट के साथ बिल या अन्य पेपर न रखें। किसी भी प्रकार की अनावश्यक वस्तु पर्स में न रखें। यदि पर्स में पीले चावल रखेंगे तो महालक्ष्मी की कृपा भी आप बनी रहेगी।



चावल का सेवन : चावल का सेवन किस तरह करना चाहिए यह जानना जरूरी है। इस उपाय से भी धन और अच्छी सेहत की प्राप्ति होती है। यदि आप चावल का इस्तेमाल प्रतिदिन के भोजन में कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि चावल कभी भी सूर्यास्त के बाद न खाएं।

रात के भोजन में चावल, दही जैसी चीजों से बचना चाहिए। कहते हैं ऐसे में लक्ष्मी जी का अपमान होता है। चावल को भोजन की थाली में दाहिने ओर रखना चाहिए। चावल को थाली में कभी जूठा नहीं छोड़ना चाहिए।



शत्रु परेशानी हटाने के लिए : साबुत उड़द की काली दाल के 38 और चावल के 40 दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और ऊपर से नीबू निचोड़ दें। नीबू निचोड़ते समय शत्रु का नाम लेते रहें, उसका शमन होगा और वह आपके विरुद्ध कोई कदम नहीं उठा पाएगा।




चावल हवन : चावल को तिल और दूध के साथ मिलाकर उससे माता का हवन करने से श्रीप्राप्ति होती है और दरिद्रता दूर भागती है। यह हवन किसी शुभ मुहूर्त में करें और विधिपूर्वक करें।




सुयोग्य वर हेतु : किसी भी माह की शुक्लपक्ष की चतुर्थी से चांदी की छोटी कटोरी में गाय का दूध लेकर उसमें शक्कर एवं उबले हुए चावल मिलाकर चंद्रोदय के समय चंद्रमा को तुलसी की पत्ती डालकर यह नेवैद्य बताएं व प्रदक्षिणा करें। इस प्रकार यह नियम 45 दिनों तक करें। 45 दिन पूर्ण होने पर एक कन्या को भोजन करवाकर वस्त्र और मेंहदी दान करें। ऐसा करने से सुयोग्य वर की प्राप्ति होकर शीघ्र मांगलिक कार्य संपन्न होगा।



धन प्राप्ति हेतु : नवरात्रि के तीसरे दिन कन्याओं को केशरिया चावल का दान करें। उन्हें चावली की खीर बनाकर भी खिला सकते हैं।

चंद्र देगा शुभ फल : यदि आपकी कुंडली में चंद्र अशुभ फल दे रहा है तो आ अपनी माता से एक मुट्ठीभर चावल विधिपूर्वक दान ले लें।



नौकरी संबंधी परेशानी का निदान : यदि आपको नौकरी संबंधी कोई परेशानी है तो आप कुछ दिनों तक मीठे चावल कौओं को खिलाएं। इससे आपकी समस्या का निदान हो जाएगा।



पितृदोष दूर करने हेतु : अमावस्या के दिन चावल की खीर बनाकर उसमें रोटी चूर लें और यह कौओं के लिए घर की छत पर रख दें। इस उपाय से आपके घर में रहने वाले सदस्यों पर पितृ देवताओं की विशेष कृपा होगी। पितर देवता की कृपा से ही धन संबंधी कार्यों में भी विशेष सफलता प्राप्त होती है।

पितरों को खीस बहुत पसंद होती है। इसलिए प्रत्येक माह की अमावस्या को खीर बनाकर ब्राह्मण को भोजन के साथ खिलाने पर महान पुण्य की प्राप्ति होती है। जीवन से अस्थिरताएं दूर होती है। इस दिन संध्या के समय पितरों के निमित्त थोड़ी खीर पीपल के नीचे भी रखनी चाहिए।


मनोकामना पूर्ण होगी : किसी शुक्रवार की रात 10 बजे के बाद अपने सामने चौकी पर एक कलश रखें। कलश के ऊपर शुद्ध केसर से स्वस्तिक का चिह्न बनाकर उसमें पानी भर दें। इसके बाद उसमें चावल, दूर्वा और एक रूपया डाल दें। फिर एक छोटी सी प्लेट में चावल भरकर उसे कलश के ऊपर रखें। उसके ऊपर श्रीयंत्र स्थापित कर दें। इसके बाद उसके निकट चौमुखी दीपक जलाकर उसका कुंकुम और चावल से पूजन करें। इसके बाद 10 मिनट तक लक्ष्मी का ध्यान करें। आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।
राशि का निरीक्षण और निशानों को जांच परखकर कुंडली बनाई है और दूसरे प्रकार में प्रचलित ज्योतिष शास्त्र की पद्धति द्वारा बनी हुई कुंडली को परिवर्तित करके नई कुंडली बनाई जाती है।



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