तीन और तेरह क्यों?
सरयू पारीण ब्राह्मणों में भी तीन प्रकार की श्रेणियाँ हैं।जो कि तीन,तेरह और सोलह कुल के नाम से जानी जाती है।
सर्वप्रथम गर्ग ऋषि के आश्रम में शुक्ल यजुर्वेद के पठन-पाठन की प्रक्रिया आरम्भ हुयी,इसके बाद गौतम ऋषि के आश्रम में यजुर्वेद और इनके बाद शान्डिल्य ऋषि के आश्रम में सामवेद के अध्ययन की परम्परा प्रारम्भ हुई।ये तीन आश्रम उस समय में परम्परा के वाहक बने,इसलिये इन तीन गोत्र गर्ग,गौतम और शान्डिल्य को और इन गोत्री को प्रथम श्रेणी का ब्राह्मण माना जाता है।
कुछ समय के बाद तेरह ऋषियों के आश्रम में भी वेदों के पठन-पाठन की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई,इसलिये इनको द्वितीय श्रेणी के ब्राह्मण की संज्ञा से जाना जाता है।इन तेरह ऋषियों में पराशर,सावर्ण्य,कश्यप,भार्गव,भारद्वाज,वत्स,कौशिक,कात्यायन,अत्रि,सांकृत,जमदग्नि आदि हैं।
और इन्हीं तीन और तेरह गोत्र अर्थात कुल 16 आश्रम या घर सरयूपारीण ब्राह्मणों के भेद है।
जयतु परशुराम: जयन्तु विप्रा: ।।
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