Tuesday, June 18, 2019

ब्राह्मण का महत्व

 *ब्राह्मण क्यों देवता ?*

*नोट--*_कुछ आदरणीय मित्रगण कभी -कभी मजाक में या
कभी जिज्ञासा में,
कभी गंभीरता से
एक प्रश्न करते है कि_
 *ब्राम्हण को इतना सम्मान क्यों दिया जाय या दिया जाता है ?*

 




 

                *शास्त्रीय मत*

_पृथिव्यां यानी तीर्थानि तानी तीर्थानि सागरे ।_
_सागरे सर्वतीर्थानि पादे विप्रस्य दक्षिणे ।।__चैत्रमाहात्मये तीर्थानि दक्षिणे पादे वेदास्तन्मुखमाश्रिताः ।_
_सर्वांगेष्वाश्रिता देवाः पूजितास्ते तदर्चया ।।_
_अव्यक्त रूपिणो विष्णोः स्वरूपं ब्राह्मणा भुवि ।_
_नावमान्या नो विरोधा कदाचिच्छुभमिच्छता ।।_

*•अर्थात पृथ्वी में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी समुद्र में मिलते हैं और समुद्र में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी ब्राह्मण के दक्षिण पैर में है । चार वेद उसके मुख में हैं अंग में सभी देवता आश्रय करके रहते हैं इसवास्ते ब्राह्मण को पूजा करने से सब देवों का पूजा होती है । पृथ्वी में ब्राह्मण जो है विष्णु रूप है इसलिए जिसको कल्याण की इच्छा हो वह ब्राह्मणों का अपमान तथा द्वेष नहीं करना चाहिए ।*

_•देवाधीनाजगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवता: ।_
_ते मन्त्रा: ब्राह्मणाधीना:तस्माद् ब्राह्मण देवता ।_

*•अर्थात् सारा संसार देवताओं के अधीन है तथा देवता मन्त्रों के अधीन हैं और मन्त्र ब्राह्मण के अधीन हैं इस कारण ब्राह्मण देवता हैं ।*   

_ऊँ जन्मना ब्राम्हणो, ज्ञेय:संस्कारैर्द्विज उच्चते।_
_विद्यया याति विप्रत्वं, त्रिभि:श्रोत्रिय लक्षणम्।।_

*ब्राम्हण के बालक को जन्म से ही ब्राम्हण समझना चाहिए।*
*संस्कारों से "द्विज" संज्ञा होती है तथा विद्याध्ययन से "विप्र" नाम धारण करता है।*

*जो वेद,मन्त्र तथा पुराणों से शुद्ध होकर तीर्थस्नानादि के कारण और भी पवित्र हो गया है,वह ब्राम्हण परम पूजनीय माना गया है।*

ऊँ पुराणकथको नित्यं, धर्माख्यानस्य सन्तति:।_
_अस्यैव दर्शनान्नित्यं ,अश्वमेधादिजं फलम्।।_

*जिसके हृदय में गुरु,देवता,माता-पिता और अतिथि के प्रति भक्ति है। जो दूसरों को भी भक्तिमार्ग पर अग्रसर करता है,जो सदा पुराणों की कथा करता और धर्म का प्रचार करता है ऐसे ब्राम्हण के दर्शन से ही अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होता है।*

पितामह भीष्म जी ने पुलस्त्य जी से पूछा--
*गुरुवर!मनुष्य को देवत्व, सुख, राज्य, धन, यश, विजय, भोग, आरोग्य, आयु, विद्या, लक्ष्मी, पुत्र, बन्धुवर्ग एवं सब प्रकार के मंगल की प्राप्ति कैसे हो सकती है?*
यह बताने की कृपा करें।*

*पुलस्त्यजी ने कहा--*
राजन!इस पृथ्वी पर ब्राम्हण सदा ही विद्या आदि गुणों से युक्त और श्रीसम्पन्न होता है।
तीनों लोकों और प्रत्येक युग में विप्रदेव नित्य पवित्र माने गये हैं।
ब्राम्हण देवताओं का भी देवता है।
संसार में उसके समान कोई दूसरा नहीं है।
वह साक्षात धर्म की मूर्ति है और सबको मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाला है।

ब्राम्हण सब लोगों का गुरु,पूज्य और तीर्थस्वरुप मनुष्य है।

*पूर्वकाल में नारदजी ने ब्रम्हाजी से पूछा था--*
ब्रम्हन्!किसकी पूजा करने पर भगवान लक्ष्मीपति प्रसन्न होते हैं?"

ब्रम्हाजी बोले--जिस पर ब्राम्हण प्रसन्न होते हैं,उसपर भगवान विष्णुजी भी प्रसन्न हो जाते हैं।
अत: ब्राम्हण की सेवा करने वाला मनुष्य निश्चित ही परब्रम्ह परमात्मा को प्राप्त होता है।
*ब्राम्हण के शरीर में सदा ही श्रीविष्णु का निवास है।*

_जो दान,मान और सेवा आदि के द्वारा प्रतिदिन ब्राम्हणों की पूजा करते हैं,उसके द्वारा मानों शास्त्रीय पद्धति से उत्तम दक्षिणा युक्त सौ अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान हो जाता है।_

*जिसके घरपर आया हुआ ब्राम्हण निराश नही लौटता,उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है।*
_पवित्र देशकाल में सुपात्र ब्राम्हण को जो धन दान किया जाता है वह अक्षय होता है।_
*वह जन्म जन्मान्तरों में फल देता है,उनकी पूजा करने वाला कभी दरिद्र, दुखी और रोगी नहीं होता है।जिस घर के आँगन में ब्राम्हणों की चरणधूलि पडने से वह पवित्र होते हैं वह तीर्थों के समान हैं।*

_ऊँ विप्रपादोदककर्दमानि,_
_न वेदशास्त्रप्रतिघोषितानि!_
_स्वाहास्नधास्वस्तिविवर्जितानि,_
_श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।_

*जहाँ ब्राम्हणों का चरणोदक नहीं गिरता,जहाँ वेद शास्त्र की गर्जना नहीं होती,जहाँ स्वाहा,स्वधा,स्वस्ति और मंगल शब्दों का उच्चारण नहीं होता है। वह चाहे स्वर्ग के समान भवन भी हो तब भी वह श्मशान के समान है।*

_भीष्मजी!पूर्वकाल में विष्णु भगवान के मुख से ब्राम्हण, बाहुओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और चरणों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।_

पितृयज्ञ(श्राद्ध-तर्पण), विवाह, अग्निहोत्र, शान्तिकर्म और समस्त मांगलिक कार्यों में सदा उत्तम माने गये हैं।

*ब्राम्हण के मुख से देवता हव्य और पितर कव्य का उपभोग करते हैं। ब्राम्हण के बिना दान,होम तर्पण आदि सब निष्फल होते हैं।*

_जहाँ ब्राम्हणों को भोजन नहीं दिया जाता,वहाँ असुर,प्रेत,दैत्य और राक्षस भोजन करते हैं।_

*ब्राम्हण को देखकर श्रद्धापूर्वक उसको प्रणाम करना चाहिए।*

_उनके आशीर्वाद से मनुष्य की आयु बढती है,वह चिरंजीवी होता है।ब्राम्हणों को देखकर भी प्रणाम न करने से,उनसे द्वेष रखने से तथा उनके प्रति अश्रद्धा रखने से मनुष्यों की आयु क्षीण होती है,धन ऐश्वर्य का नाश होता है तथा परलोक में भी उसकी दुर्गति होती है।_

*चौ- पूजिय विप्र सकल गुनहीना।*
      *शूद्र न गुनगन ग्यान प्रवीणा।।*

*कवच अभेद्य विप्र गुरु पूजा।*
*एहिसम विजयउपाय न दूजा।।*

       *------ रामचरित मानस......*

ऊँ नमो ब्रम्हण्यदेवाय,
       गोब्राम्हणहिताय च।
जगद्धिताय कृष्णाय,
        गोविन्दाय नमोनमः।।

*जगत के पालनहार गौ,ब्राम्हणों के रक्षक भगवान श्रीकृष्ण जी कोटिशःवन्दना करते हैं।*

_जिनके चरणारविन्दों को परमेश्वर अपने वक्षस्थल पर धारण करते हैं,उन ब्राम्हणों के पावन चरणों में हमारा कोटि-कोटि प्रणाम है।।_
*ब्राह्मण जप से पैदा हुई शक्ति का नाम है,*
*ब्राह्मण त्याग से जन्मी भक्ति का धाम है।*

*ब्राह्मण ज्ञान के दीप जलाने का नाम है,*
*ब्राह्मण विद्या का प्रकाश फैलाने का काम है।*

*ब्राह्मण स्वाभिमान से जीने का ढंग है,*
*ब्राह्मण सृष्टि का अनुपम अमिट अंग है।*

*ब्राह्मण विकराल हलाहल पीने की कला है,*
*ब्राह्मण कठिन संघर्षों को जीकर ही पला है।*

*ब्राह्मण ज्ञान, भक्ति, त्याग, परमार्थ का प्रकाश है,*
*ब्राह्मण शक्ति, कौशल, पुरुषार्थ का आकाश है।*

*ब्राह्मण न धर्म, न जाति में बंधा इंसान है,*
*ब्राह्मण मनुष्य के रूप में साक्षात भगवान है।*

*ब्राह्मण कंठ में शारदा लिए ज्ञान का संवाहक है,*
*ब्राह्मण हाथ में शस्त्र लिए आतंक का संहारक है।*

*ब्राह्मण सिर्फ मंदिर में पूजा करता हुआ पुजारी नहीं है,*
*ब्राह्मण घर-घर भीख मांगता भिखारी नहीं है।*

*ब्राह्मण गरीबी में सुदामा-सा सरल है,*
*ब्राह्मण त्याग में दधीचि-सा विरल है।*

*ब्राह्मण विषधरों के शहर में शंकर के समान है,*
*ब्राह्मण के हस्त में शत्रुओं के लिए बेद कीर्तिवान है।*

*ब्राह्मण सूखते रिश्तों को संवेदनाओं से सजाता है,*
*ब्राह्मण निषिद्ध गलियों में सहमे सत्य को बचाता है।*

*ब्राह्मण संकुचित विचारधारों से परे एक नाम है,*
*ब्राह्मण सबके अंत:स्थल में बसा अविरल राम है।

   

ब्राह्मण (आचार्य, विप्र, द्विज, द्विजोत्तम) यह हिन्दू वर्ण व्‍यवस्‍था का एक वर्ण है। यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार, ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: अर्थात् ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है "ईश्वर का ज्ञाता"।

इतिहास
संपादित करें
ब्राह्मण समाज का इतिहास निषाद समाज के इतिहास के बाद भारत के वैदिक धर्म से आरंभ होता है। वास्तव में ब्राह्मण कोई जाति विशेष ना होकर एक वर्ण है, इस वर्ण में सभी जातियों के लोग ब्राह्मण होते थे, सर्वप्रथम निषाद जाति के लोग ब्राह्मण हुए दक्षिण भारत में द्रविड़ ब्राह्मण निषाद वंश को ही कहा जाता है| भारत का मुख्य आधार ही ब्राह्मणो से शुरू होता है। ब्राह्मण नरम व्यवहार के होते है | ब्राह्मण व्यवहार का मुख्य स्रोत वेद हैं। ब्राह्मण समय के अनुसार अपने आप को बदलने में सक्षयम होते है। ब्राह्मणो का भारत की आज़ादी में भी बहुत योगदान रहा है जो इतिहास में गढा गया है। ब्राह्मणो के सभी सम्प्रदाय वेदों से प्रेरणा लेते हैं। पारंपरिक तौर पर यह विश्वास है कि वेद अपौरुषेय (किसी मानव/देवता ने नहीं लिखे) तथा अनादि हैं, बल्कि अनादि सत्य का प्राकट्य है जिनकी वैधता शाश्वत है। वेदों को श्रुति माना जाता है (श्रवण हेतु, जो मौखिक परंपरा का द्योतक है)।

धार्मिक व सांस्कॄतिक रीतियों एवं व्यवहार में विवधताओं के कारण और विभिन्न वैदिक विद्यालयों के उनके संबन्ध के चलते, आचार्य हीं ब्राह्मण हैं | सूत्र काल में प्रतिष्ठित विद्वानों के नेतॄत्व में, एक ही वेद की विभिन्न नामों की पृथक-पृथक शाखाएं बनने लगीं। इन प्रतिष्ठित ऋषियों की शिक्षाओं को सूत्र कहा जाता है। प्रत्येक वेद का अपना सूत्र है। सामाजिक, नैतिक तथा शास्त्रानुकूल नियमों वाले सूत्रों को धर्म सूत्र कहते हैं, आनुष्ठानिक वालों को श्रौत सूत्र तथा घरेलू विधिशास्त्रों की व्याख्या करने वालों को गॄह् सूत्र कहा जाता है। सूत्र सामान्यतः पद्य या मिश्रित गद्य-पद्य में लिखे हुए हैं।

ब्राह्मण शास्त्रज्ञों में प्रमुख हैं अग्निरस, अपस्तम्भ, अत्रि, बॄहस्पति, बौधायन, दक्ष, गौतम, वत्स,हरित, कात्यायन, लिखित, पाराशर, समवर्त, शंख, शत्तप, ऊषानस, वशिष्ठ, विष्णु, व्यास, यज्ञवल्क्य तथा यम। ये इक्कीस ऋषि स्मॄतियों के रचयिता थे। स्मॄतियों में सबसे प्राचीन हैं अपस्तम्भ, बौधायन, गौतम तथा वशिष्ठि। अपस्तम्भ और बौधायन दोनों ही निषाद है, गौतम द्रविड़ निषाद तो वशिष्ठ आर्य हैं

ब्राह्मण निर्धारण - जन्म या कर्म से
संपादित करें
ब्राह्मण का निर्धारण माता-पिता की जाती के आधार पर ही होने लगा है। स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को यज्ञोपवीत के आध्यात्मिक अर्थ में बताया गया है,

जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते।
शापानुग्रहसामर्थ्यं तथा क्रोधः प्रसन्नता।
अतः आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद्र के समान ही होता है।

ब्राह्मण का व्यवहार
संपादित करें

ब्राह्मण
ब्राह्मण मांस शराब का सेवन जो धर्म के विरुद्ध हो वो काम नहीं करते हैं। ब्राह्मण सनातन धर्म के नियमों का पालन करते हैं। जैसे वेदों का आज्ञापालन, यह विश्वास कि मोक्ष तथा अन्तिम सत्य की प्राप्ति के अनेक माध्यम हैं, यह कि ईश्वर एक है किन्तु उनके गुणगान तथा पूजन हेतु अनगिनत नाम तथा स्वरूप हैं जिनका कारण है हमारे अनुभव, संस्कॄति तथा भाषाओं में विविधताएं। ब्राह्मण सर्वेजनासुखिनो भवन्तु (सभी जन सुखी तथा समॄद्ध हों) एवं वसुधैव कुटुम्बकम (सारी वसुधा एक परिवार है) में विश्वास रखते हैं। सामान्यत: ब्राह्मण केवल शाकाहारी होते हैं (बंगाली, उड़ीया तथा कुछ अन्य ब्राह्मण तथा कश्मीरी पन्डित इसके अपवाद हैं)।

दिनचर्या
संपादित करें
हिन्दू ब्राह्मण अपनी धारणाओं से अधिक धर्माचरण को महत्व देते हैं। यह धार्मिक पन्थों की विशेषता है। धर्माचरण में मुख्यतः है यज्ञ करना। दिनचर्या इस प्रकार है - स्नान, सन्ध्यावन्दनम्, जप, उपासना, तथा अग्निहोत्र। अन्तिम दो यज्ञ अब केवल कुछ ही परिवारों में होते हैं। ब्रह्मचारी अग्निहोत्र यज्ञ के स्थान पर अग्निकार्यम् करते हैं। अन्य रीतियां हैं अमावस्य तर्पण तथा श्राद्ध।

देखें : नित्य कर्म तथा काम्य कर्म



ब्राह्मण अपने जीवनकाल में सोलह प्रमुख संस्कार करते हैं। जन्म से पूर्व गर्भधारण, पुन्सवन (गर्भ में नर बालक को ईश्वर को समर्पित करना), सीमन्तोन्नयन संस्कार। बाल्यकाल में जातकर्म (जन्मानुष्ठान), नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्ण, कर्णवेध। बालक के शिक्षण-काल में विद्यारम्भ, उपनयन अर्थात यज्ञोपवीत्, वेदारम्भ, केशान्त अथवा गोदान, तथा समवर्तनम् या स्नान (शिक्षा-काल का अन्त)। वयस्क होने पर विवाह तथा मृत्यु पश्चात अन्त्येष्टि प्रमुख संस्कार हैं।

सम्प्रदाय
संपादित करें
दक्षिण भारत में ब्राह्मणों के तीन सम्प्रदाय हैं -स्मार्त सम्प्रदाय, श्रीवैष्णव सम्प्रदाय तथा माधव सम्प्रदाय।

ब्राह्मणों की श्रेणियां
संपादित करें
ब्राह्मणों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न उपनामों से जाना जाता है, जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में दीक्षित, शुक्ल, त्रिवेदी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के कुछ भागों में खाण्डल विप्र, ऋषीश्वर, वशिष्ठ, कौशिक, भारद्वाज, सनाढ्य ब्राह्मण, राय ब्राह्मण, त्यागी , अवध (मध्य उत्तर प्रदेश) तथा मध्यप्रदेश के बुन्देलखंड से निकले जिझौतिया ब्राह्मण,रम पाल, राजस्थान, मध्यप्रदेश व अन्य राज्यों में वैष्णव(बैरागी)ब्राह्मण, बाजपेयी, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश ,बंगाल व नेपाल में भूमिहार, जम्मू कश्मीर, पंजाब व हरियाणा के कुछ भागों में महियाल, मध्य प्रदेश व राजस्थान में गालव, गुजरात में श्रीखण्ड,भातखण्डे अनाविल, महाराष्ट्र के महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण, मुख्य रूप से देशस्थ, कोंकणस्थ , दैवदन्या, देवरुखे और करहाड़े है. ब्राह्मणमें चितपावन एवं कार्वे, कर्नाटक में अयंगर एवं हेगडे, केरल में नम्बूदरीपाद, तमिलनाडु में अयंगर एवं अय्यर, आंध्र प्रदेश में नियोगी एवं राव, उड़ीसा में दास एवं मिश्र आदि तथा राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बिहार में शाकद्वीपीय (मग)कहीं उत्तर प्रदेश में जोशी जाति भी पायी जाती है। [1] आदि।


ब्राह्मणों के जाति वर्गीकरण के आधार पर ब्राह्मण जाति चार्ट
ब्राह्मणों में कई जातियां है।इससे मूल कार्य व स्थान का पता चलता है

सामवेदी: ये सामवेद गायन करने वाले लोग थे।
अग्निहोत्री: अग्नि में आहुति देने वाला।
त्रिवेदी: वे लोग जिन्हें तीन वेदों का था ज्ञान वे त्रिवेदी है
चतुर्वेदी: जिन्हें चारों वेदों का ज्ञान था।वेलोग चतुर्वेदी हुए।
वेदी: जिन्हें वेदी बनाने का ज्ञान था वे वेदी हुए।
ब्राह्मणों की वर्तमान स्थिति
संपादित करें
आधुनिक भारत के निर्माण के विभिन्न क्षेत्रों जैसे साहित्य, विज्ञान एवं प्रौद्यौगिकी, राजनीति, संस्कृति, पाण्डित्य, धर्म में ब्राह्मणों का अपरिमित योगदान है। प्रमुख क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों मे बाल गंगाधर तिलक, चंद्रशेखर आजाद इत्यादि हैं। लेखकों और विद्वानों में रबीन्द्रनाथ ठाकुर हैं।

No comments:

Post a Comment