Thursday, December 30, 2021

देशभक्त को हम भूल गये।

 क्यो झूठ बोलते हो साहेब चरखे से आजादी आयी है


जलती रही जोहर में नारियां

 भेड़िये फ़िर भी मौन थे।

 हमें पढाया गया अकबर महान,

तो फिर महाराणा प्रताप कौन थे।


सड़ती रही लाशें सड़को पर

 गांधी फिर भी मौन थे,

हमें पढ़ाया गांधी के चरखे से आजादी आयी,

तो फांसी चढ़ने वाले 25-25 साल के वो जवान कौन थे


वो रस्सी आज भी संग्रहालय में है

जिस्से गांधीजी बकरी बांधा करते थे

किन्तु वो रस्सी कहां है

जिस पे भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु हसते हुए झूले थे


जाने कितने झूले थे फाँसी पर, कितनो ने

गोली खाई थी |

क्यो झूठ बोलते हो साहब, कि चरखे से

आजादी आई थी ||

चरखा हरदम खामोश रहा, और अंत देश

को बांट दिया |

लाखों बेघर,लाखो मर गए, जब गाँधी ने

बंदरबाँट किया ||

जिन्ना के हिस्से पाक गया , नेहरू को

हिन्दुस्तान मिला |

जो जान लुटा गए भारत पर, उन्हे ढंग

का न सम्मान मिला |

इन्ही सियासी लोगों ने, शेखर को भी

आतंकी बतलाया था |

रोया अलफ्रेड पार्क था उस दिन, एक

एक पत्ता थर्राया था ||

जो देश के लिए जिये मरे और फाँसी के

फंदे पर झूल गए |

हमें नेहरु गांधी तो याद रहे, पर अमर

पुरोधा हम भूल गए ||


कैसे मै सम्मान करु गाँधी वाली

सीखो का...!! . .

मै तो कर्जदार हूँ भगत_सिंह

की चीखो का..

दुश्मन की गोलियों का सामना हम करेंगे ,

हम आजाद है आजाद ही रहेंगे ।

🙏🌹शत शत नमन🌹🙏

Thursday, December 2, 2021

तुंगनाथ मंदिर, रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

 


*🛕तुंगनाथ मंदिर, रुद्रप्रयाग(उत्तराखंड)*


*♦️तुंगनाथ उत्तराखण्ड के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक पर्वत है। तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है तुंगनाथ मंदिर, जो 3460 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है और पंच केदारों में सबसे ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर १,००० वर्ष पुराना माना जाता है और यहाँ भगवान शिव की पंच केदारों में से एक के रूप में पूजा होती है।*


*♦️इस मंदिर को पाण्‍डवों ने भगवान शिव को प्रसन्‍न करने के लिए स्‍थापित किया था। इसके पीछे कथा मिलती है कि कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार से भोलेनाथ पाण्‍डवो से रुष्‍ट थे तभी उन्‍हें प्रसन्‍न करने के लिए ही इस मंदिर का निर्माण किया गया था।*


*♦️तुंगनाथ का शाब्दिक अर्थ 'पीक के भगवान' है। इस मंदिर में भगवन शिव के हाथ कि पूजा की जाती है, जो कि वास्तुकला के उत्तर भारतीय शैली का प्रतिनिधित्व करती है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर नंदी भगवान की मूर्ति है, जो भगवान शिव का आरोह है।*


*♦️काला भैरव और व्यास के रूप में लोकप्रिय हिंदू संतों की मूर्तियों भी पांडवों की छवियों के साथ मंदिर में निहित हैं। इसके अलावा, विभिन्न देवी देवताओं के छोटे छोटे मंदिरों को इस मंदिर के आसपास देखा जा सकता है। भारी बर्फबारी की वजह से यह मंदिर नवंबर और मार्च के बीच में बंद रहता है।*

Sunday, November 21, 2021

ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर राजस्थान

 *🛕ब्रह्म मन्दिर, पुष्कर(राजस्थान)*


*🕉️पुष्कर राजस्थान में विख्यात तीर्थस्थान है। यह राजस्थान के अजमेर जिले में है। मंदिर मूल रूप से 14वीं सदी में बनाया गया था। यह मंदिर ब्रह्मा का एकमात्र मन्दिर है। पुष्कर अजमेर शहर से 14 की.मी दूरी पर स्थित है। मंदिर पुष्कर झील के किनारे पर स्थित है।*


*🕉️पुष्कर के उद्धव का वर्णन प्रद्मपुराण में मिलता है। मान्यता है कि ब्रह्मों ने यहां आकार यज्ञ किया था। महाभारत के वन पर्व के अनुसार श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था।* 


*🕉️ब्रह्मा के मंदिर के अरिक्ति यहां सावित्री, बदरीनारायण, वाराह और शिव आत्मेश्वर के मंदिर है। यहां के प्राचीन मंदिरों को मुगल आक्रांता औंरगजेब ने नष्टभ्रष्ट कर दिया था। पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है।*

मिस्र में मिला सूर्य मंदिर

 


*🔊मिस्र में एक 4,500 वर्ष पुराना सूर्य मंदिर जमीन से निकाला गया है। माना जाता है कि प्राचीन मिस्र में वहां के पिरामिड काल के राजाओं ने सूर्य की उपासना को प्रचलित करने के उद्देश्य से अनेक सूर्य मंदिर बनवाए थे।* 


*🔰पुरातत्वविदों ने ऐसे लगभग 6 सूर्य मंदिरों की खोज की है, लेकिन अभी तक एक मंदिर के अवशेष खुदाई से प्राप्त हुए हैं।*


*🔰लेकिन इससे यह तो तय है कि प्राचीन काल में मिस्र के लोग सूर्य देव और सनातन संस्कृति की उपासना करते थे।*


 *सनातन संस्कृति 🙏🧡🚩*

Friday, November 19, 2021

अपने सनातन संस्कृति को बचाओं

  

ये पाँच करोड़़ी बाँह मरोड़ी, बंगलादेशी किसने जोड़ी। 

बंगाल असम बिहार हजम, आबाद आबादी किसने तोडी़। 


और पाँच लाख कश्मीरी हिंदू, दर दर भटकें ये हाल किया। 

वोटबैंक बस सधा रहे, रत्ती का नहीं मलाल किया। 


कश्मीर बनाया कैराना, धूलागढ माल्दा झाँकी है। 

कुन्नूर केरला का कहता, चड्ढी लंगोट तो बाकी है। 


गोरी गजनी अकबर महान, औरंगजेब तो दयावान। 

बीर मराठे चोर उच्चके, सिख गुरूओं का कौन मान। 


एेसा ही इतिहास लिखाया, चोल अहोम का नाम मिटाया। 

ताजमहल को माथ धरे, अजंता एलोरा को झुठलाया। 


आर्यभट्ट बाराह मिहिर, तुम पर कर देते घना तिमिर। 

कम्पुटर की भाषा संस्कृत, करती तुमको अतिशय बिचलित। 


तुम कालिदास के काल बने,शेक्सपियर के ढाल बने। 

छोड़ ब्यास बाल्मिकी बिदुर, इकबाली सुरताल बने। 


देश बंटे और हिंदू घटे, नक्सलवादी आकाश चढ़े। 

सिख जैन लिंगायत तक, तेरी करनी का भेंट चढ़े। 


                               

शाकाहारी बनो

 कंद-मूल खाने वालों से मांसाहारी डरते थे।

पोरस जैसे शूर-वीर को नमन सिकंदर करते थे॥


चौदह वर्षों तक खूंखारी वन में जिसका धाम था।

राक्षसों का वध करने वाला शाकाहारी राम था॥


चक्र सुदर्शन धारी थे हर दुर्जन पर भारी थे।

वैदिक धर्म पालन करने वाले कृष्ण शाकाहारी थे॥


शाकाहार के मन्त्र को महाराणा ने मन में ध्याया था।

जंगल जाकर प्रताप ने घास की रोटी को खाया था॥


सपने जिसने देखे थे वैदिक धर्म के प्रचार के।

दयानंद जैसे महामानव थे वाचक शाकाहार के॥


उठो जरा तुम पढ़ कर देखो अपने गौरवमयी इतिहास को।

क्यों तुमने अपना लिया ईसा मूसा के खाने खास को ?


दया की आँखे खोल कर देखो निरीह पशु के करुण क्रंदन को।

इंसानों का जिस्म बना है शाकाहारी भोजन को॥


अंग लाश के खा जाए क्या फ़िर भी वो इंसान है?

पेट तुम्हारा मुर्दाघर है या कोई कब्रिस्तान है?


आँखे कितना रोती हैं जब उंगली अपनी जलती है।

सोचो उस तड़पन की हद जब जिस्म पे आरी चलती है॥


बेबसता तुम पशु की देखो बचने के आसार नही।

जीते जी तन काटा जाए उस पीडा का पार नही॥


खाने से पहले बिरयानी चीख जीव की सुन लेते।

करुणा के वश होकर तुम भी गिरी गिरनार को चुन लेते॥


मांसाहार त्यागो ... शाकाहारी बनो !

Friday, November 12, 2021

भोग नन्दीश्वर मंदिर, कर्नाटक

 


*🛕भोग नन्दीश्वर मंदिर,*

 *चिकबलापुरा,(कर्नाटक)🛕*


*🔶भगवान शिव को समर्पित यह विशाल व अद्भुत मंदिर कर्नाटक राज्य के बैंगलोर शहर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर चिकबलापुरा शहर में नंदी की पहाड़ियों पर स्थित है।*


*🔶यह मंदिर 9वीं शताब्दी में बना कर्नाटक राज्य के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है जो भगवान शिव को समर्पित है। इसका निर्माण नोलाम्बा के शासकों द्वारा करवाया गया था। बाद में समय- समय पर विभिन्न राजाओं द्वारा इसके निर्माण को आगे बढ़ाया गया जिसमे बाना, गंगा, चोला व विजयवाड़ा के राजवंश प्रमुख थे।*


*🔶 यह मंदिर प्राचीन सभ्यता में बने उत्कृष्ट कला का एक जीवंत उदहारण है जिसे पहाड़ियों के बीच बनाया गया है। इसकी सुंदरता का अनुमान आप इसी बात से ही लगा सकते है कि यह मंदिर चारो ओर से 5 पहाड़ियों ब्रह्मगिरी, विष्णुगिरी, स्कंदगिरी, दिव्यगिरी व नंदी दुर्गा से घिरा हुआ है जो इसे और भी अद्भुत बनाती है।*


*🔶 "अरुणाचलेश्वर" और शिव के "भोग नंदेश्वर" रूपों का प्रतिनिधित्व हिंदू कथा के अनुसार, भगवान शिव के जीवन में दो चरण हैं: बचपन और युवा। "उमा-महेश्वरा" मंदिर में तीसरे चरण में शिव पार्वती देवी के विवाह का चित्रण है।*

श्री कालभैरवेश्वर स्वामी मंदिर, कर्नाटक


 *🛕श्री कालभैरवेश्वर स्वामी मंदिर, अदीचूंचनागिरी(कर्नाटक)*


*♦️यह पुराने मंदिरों में से एक है जिसका इतिहास लगभग 2000 वर्षों पुराना है। मंदिर, मांड्या जिले कर्नाटक के अदिचुनगनागिरी पहाड़ियों में 3,300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।*


*♦️आदिरूद्र ने यह मंदिर कुछ योगों के अनुसार सिद्ध योगी को दिया था। अब वर्तमान प्रमुख श्री श्री श्री निर्मलानंदनाथ स्वामीजी हैं, जो इस मन्दिर के 72 वें गुरु हैं। यहां आध्यात्मिकता के लिए व्याख्या प्राकृतिक अनुनाद के साथ-साथ सभी यज्ञ और प्रार्थनाएं की जाती हैं।*


*♦️यह घने जंगल से घिरा हुआ है जहाँ मुक्त घूमते हुए मोर देख सकते हैं। इसे मयूरवन भी कहा जाता है। यहाँ पूजे जाने वाले भगवान गंगाधरेश्वर हैं।*


*♦️श्री कालभैरवेश्वरस्वामी मंदिर: ये वैभवशाली तथा राजसी मंदिर श्रीक्षेत्र आदिचुंचनगिरि में बनाया गया है जहाँ सभी पारंपरिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती है। यह प्राचीन मठ का मुख्यालय मूल रूप से भगवान गणेश और भगवान सुब्रह्मण्य के साथ कालभैरव, अष्टभैरव, अष्टाध्यायविग्रह की जीवंत छवियों के साथ एक गतिशील मन्दिर परिसर है।*

जय बाबा केदारनाथ

 


बाबा केदारनाथ और भीमशिला आज दोनों एक दूसरे के तारणहार हो चुके हैं....

भीमशिला ने जहां 2013 के त्रासदी में बाबा केदारनाथ धाम ज्योतिर्लिंग मन्दिर की महाप्रलय से रक्षा की, तो वहीं इस सेवाभाव के बदले बाबा ने भीमशिला को पूजनीय बनाकर अमर कर दिया...!! 


आज भारतीय पुरातत्व विभाग आश्चर्यचकित है कि बाबा केदारनाथ मंदिर के चौड़ाई के ही बराबर का ये भीमशिला आखिर प्रकट कहाँ से हुआ...?


 आज पूरी दुनियां का हिन्दू समाज व अन्य धर्मों के लोग भी इस चमत्कार को नमस्कार कर रहे हैं.... 


तो आइये आप सब भी दर्शन कीजिये मन्दिर के पीछे स्थित भीमशिला का, जो 2013 में आई आपदा के समय हिंदुओं के महादेव का रखवाला बन केदारनाथ मंदिर के पीछे अपना गदा गाड़कर पूरे प्रलय का अभिमान चकनाचूर कर मन्दिर को लेशमात्र भी क्षति नही होने दिया...!! 


बाद में पूरी बाढ़ के पानी तथा उसके साथ आने वाले बड़े-बड़े पत्थरों को इसी शिला ने रोक कर केदारनाथ मंदिर की रक्षा की थी। भीमशिला की चौड़ाई मन्दिर की चौड़ाई के बिलकुल बराबर है...!! 


भोले बाबा की महिमा वही जानें...हम बाबा केदारनाथ की जय जयकार कर उनका गुणगान करें. ..!! 


हर हर महादेव 🔱

उंदावली की गुफा, आंध्रप्रदेश

 

*🛕उंदावली की गुफा,*

*विजयवाड़ा(आंध्र प्रदेश)🛕*

*____________________________*

*⚜️विजयवाड़ा आंध्र प्रदेश के पूर्व-मध्य में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। दो हज़ार वर्ष पुराना यह शहर बैजवाड़ा के नाम से भी जाना जाता है। यह नाम देवी कनकदुर्गा के नाम पर है, जिन्हें स्थानीय लोग विजया कहते हैं। यहाँ की गुफाओं में उंद्रावल्ली की प्रमुख गुफा है, जो सातवीं सदी में बनाई गई थी।*

*⚜️ शयन करते भगवान विष्णु की एक शिला से निर्मित मूर्ति यहाँ की कला का श्रेष्ठ नमूना है। विजयवाड़ा के दक्षिण में 12 किलोमीटर दूर मंगलगिरि की पहाड़ी पर विष्णु के अवतार भगवान नरसिंह का विख्यात मंदिर है।*

*⚜️इसे ग्रेनाइट चट्टान के सिर्फ एक खंड से बनाया गया है। इस स्थान पर दूसरे भगवान को समर्पित और भी कई गुफाएं हैं। बरसात के समय में साधू इसका उपयोग आराम के लिए करते हैं। गुफा का सामने वाला हिस्सा कृष्णा नदी की ओर है।*

*⚜️ गुफा में उकेरे गए चित्र बहुत सटीक और महीन है। निचले हिस्से की दीवारों पर भगवान विष्णु के अवतारों को उकेरा गया है। लगता है जैसे मशीन से बनाए गए हैं। कौन कह सकता है कि गुफाएं 7वी सदी से पहले की बनी हुई है।*

शिव लिंग का वैज्ञानिक स्वरूप


 #शिवलिंग कोई साधारण (मूर्ती) नहीं है पूरा विज्ञान है !


शिवलिंग में विराजते हैं तीनों देव:---

सबसे निचला हिस्सा जो नीचे टिका होता है वह ब्रह्म है, दूसरा बीच का हिस्सा वह भगवान विष्णु का प्रतिरूप और तीसरा शीर्ष सबसे ऊपर जिसकी पूजा की जाती है वह देवा दी देव महादेव का प्रतीक है, शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है तथा अन्य मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग का निचला नाली नुमा भाग माता पार्वती को समर्पित तथा प्रतीक के रूप में पूजनीय है....अर्थात शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है। अन्य मान्यता के अनुसार, शिवलिंग का निचला हिस्सा स्त्री और ऊपरी हिस्सा पुरुष का प्रतीक होता है। अर्थता इसमें शिव और शक्ति, एक साथ में वास करते हैं।


▪️ #शिवलिंग_का_अर्थ: 

शास्त्रों के अनुसार 'लिंगम' शब्द 'लिया' और 'गम्य' से मिलकर बना है, जिसका अर्थ 'शुरुआत' व 'अंत' होता है। तमाम हिंदू धर्म के ग्रंथों में इस बात का वर्णन किया गया है कि शिव जी से ही ब्रह्मांड का प्राकट्य हुआ है और एक दिन सब उन्हीं में ही मिल जाएगा।


▪️ #शिवलिंग_में_विराजते_त्रिदेव: 

हम में लगभग लोग यही जानते हैं कि शिवलिंग में शिव जी का वास है। परंतु क्या आप जानते हैं इसमें तीनों देवताओं का वास है। कहा जाता है शिवलिंग को तीन भागों में बांटा जा सकता है। सबसे निचला हिस्सा जो नीचे टिका होता है, दूसरा बीच का हिस्सा और तीसरा शीर्ष सबसे ऊपर जिसकी पूजा की जाती है।


निचला हिस्सा ब्रह्मा जी ( सृष्टि के रचयिता ), मध्य भाग विष्णु ( सृष्टि के पालनहार ) और ऊपरी भाग भगवान शिव ( सृष्टि के विनाशक ) हैं। अर्थात शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है। तो वहीं अन्य मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग का निचला हिस्सा स्त्री और ऊपरी हिस्सा पुरुष का प्रतीक होता है। अर्थता इसमें शिव-शक्ति, एक साथ वास करते हैं।


▪️ #शिवलिंग_की_अंडाकार_संरचना

कहा जाता है शिवलिंग के अंडाकार के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक, दोनों कारण है। अगर आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो शिव ब्रह्मांड के निर्माण की जड़ हैं। अर्थात शिव ही वो बीज हैं, जिससे पूरा संसार उपजा है। इसलिए कहा जाता है यही कारण है कि शिवलिंग का आकार अंडे जैसा है। वहीं अगर वैज्ञानिक दृष्टि से बात करें तो 'बिग बैंग थ्योरी' कहती है कि ब्रह्मांड का निमार्ण अंडे जैसे छोटे कण से हुआ है। शिवलिंग के आकार को इसी अंडे के साथ जोड़कर देखा जाता है।


🚩🚩🔱🔱🔱 ॐ नम:शिवाय: 🔱🔱🔱🚩🚩

दिल को छुने वाले कविता

 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

🌷 *सत्य सनातन धर्म की जय हो, अधर्मियों का नाश हो* 🌷

                  🚩 🕉🔴🕉 🚩

            *वीर शिवाजी की शमशीरें,*

            *जयसिंह ने ही रोकी थी।*

            *पृथ्वीराज की पीठ में बरछी,*

            *जयचंदों नें भोंकी थी।।*


            *हल्दीघाटी में बहा लहू,*

            *शर्मिंदा करता पानी को।*

            *राणा प्रताप सिर काट काट,*

            *करता था भेंट भवानी को।।*


            *राणा रण में उन्मत्त हुआ,*

            *अकबर की ओर चला चढ़ के।*

            *अकबर के प्राण बचाने को,*

            *तब मान सिंह आया बढ़ के।।*


            *इक राजपूत के कारण ही,*

            *तब वंश मुगलिया जिंदा था।* 

            *एक हिन्दू की गद्दारी से*

            *चित्तौड़ हुआ शर्मिंदा था।।*


            *जब रणभेरी थी दक्खिन में,*

            *और मृत्यु फिरे मतवाली सी।*

            *और वीर शिवा की तलवारें,*

            *भरती थीं खप्पर काली सी।।*


            *किस म्लेच्छ में रहा जोर,*

            *जो छत्रपती को झुका पाया।*

            *ये जयसिंह का ही रहा द्रोह,*

            *जो वीर शिवा को पकड़ लाया।।* 


            *गैरों को हम क्योंकर कोसें,*

            *अपने ही विष बोते हैं।*

            *कुत्तों की गद्दारी से,*

            *मृगराज पराजित होते हैं।।*


            *गांधी के मौन से हमने,* 

            *भगत सिंह को खोया है।*

            *धीरे हॉर्न बजा पगले,*

            *देश का हिन्दू सोया है।।*

    🌻⚔🚩 *जय महाकाल*🚩⚔ 🌻

     🌞🍁🚩 *शुभप्रभात*🚩🍁🌞

    💥🏹🚩 *जय श्रीराम*🚩🏹💥

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Tuesday, November 2, 2021

जाखू मन्दिर, शिमला

 


*👆🏻🛕अपने सामर्थ्य को पहचानो🛕👇🏻*


*🛕जाखू मंदिर, शिमला🛕*



*🔶शिमला के जाखू में स्थित हनुमान मंदिर एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर है जहां देश-विदेश से लोग दर्शन करने आते हैं।* 


*🔶शिमला से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर यह सुंदर मंदिर स्थित है। जाखू मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति देश की सबसे ऊंची मूर्तियों में से एक है जो (108 फीट) ऊंची है। इस मूर्ति के सामने आस-पास लगे बड़े-बड़े पेड़ भी छोटे लगते हैं।*


*🔶इस मंदिर को हनुमान जी के पैरों के निशान के पास बनाया गया है। इस मंदिर को रामायण काल के समय का बताया जाता है। जाखू मंदिर में हनुमान जी की एक बड़ी मूर्ति है जो शिमला के अधिकांश हिस्सों से दिखाई देती है।*


*🔊सनातन की सभ्यता,कला, ज्ञान,सामर्थ्य आदि के कारण भारत विश्व गुरु था किन्तु हिन्दुओ के अहंकार,जातिवाद, लालच एंव कायरता के चलते ना केवल हजार साल ग़ुलाम रहा अपितु पुनः अब विनाश की और अग्रसर हो रहा है*


*🔊समय की मांग पहचान समय रहते जातिवाद, मत/भाषा/क्षेत्र का भेद ,स्वार्थ एवं कायरता छोड़ जागो हिन्दुओ*

*अन्यथा ना राष्ट्र,धर्म का अस्तित्व बचेगा ना तुम्हारे प्राण ना बहन बेटियों की आन*

Thursday, October 28, 2021

दीपावली स्पेशल


 राष्ट्रहित का गला घोंटकर,

                     छेद न करना थाली में...

मिट्टी वाले दीये जलाना,

                    अबकी बार दीवाली में...

देश के धन को देश में रखना,

                      नहीं बहाना नाली में..

मिट्टी वाले दीये जलाना,

                   अबकी बार दीवाली में...

बने जो अपनी मिट्टी से, 

                  वो दिये बिकें बाज़ारों में...

छुपी है वैज्ञानिकता अपने,

                     सभी तीज़-त्यौहारों में...

चायनिज़ झालर से आकर्षित,

                     कीट-पतंगे आते हैं...

जबकि दीये में जलकर,

                बरसाती कीड़े मर जाते हैं...

कार्तिक दीप-दान से बदले,

                   पितृ-दोष खुशहाली में...

मिट्टी वाले दीये जलाना...

                  अबकी बार दीवाली में...

मिट्टी वाले दीये जलाना...

                  अब की बार दिवाली मे ...       

कार्तिक की अमावस वाली, 

                 रात न अबकी काली हो...

दीये बनाने वालों की भी,

                खुशियों भरी दीवाली हो...

अपने देश का पैसा जाये,

                अपने भाई की झोली में...

गया जो दुश्मन देश में पैसा,

                लगेगा रायफ़ल गोली में...

देश की सीमा रहे सुरक्षित,

               चूक न हो रखवाली में...

मिट्टी वाले दीये जलाना...

               अबकी बार दीवाली में...

मिट्टी वाले दीये जलाना..

             अबकी बार दीवाली में... 



--- राष्ट्रहित

Tuesday, October 26, 2021

सनातन संस्कृति


 *👆🏻🛕अपने सामर्थ्य को पहचानो🛕👇🏻*


*🛕क्रुबेरा गुफा, अबखाजिया (जॉर्जिया)🛕*


*🔶पृथ्वी पर दूसरी सबसे गहरी ज्ञात गुफा। इसकी गहराई 2197 मीटर (7208 फीट) है। क्रूबेरा गुफा अबखज़िया में काला सागर के तट पर स्थित है।* 


*🔶इस गुफा के अंदर बहुत प्राचीन शिव लिंग पाए गए हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि शिव शाखा प्राचीन काल से अस्तित्व में हैं।*


*🔶शिवलिंग पर नाग प्रतिमा द्वारा जलाभिषेक लगातार हो रहा है यह अति प्राचीन सनातन संस्कृति का भाग है। जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि बहुत पुराने समय से ही शिव संप्रदाय अस्तित्व में था।* 

                 

*🔊सनातन की सभ्यता,कला, ज्ञान,सामर्थ्य आदि के कारण भारत विश्व गुरु था किन्तु हिन्दुओ के अहंकार,जातिवाद, लालच एंव कायरता के चलते ना केवल हजार साल ग़ुलाम रहा अपितु पुनः अब विनाश की और अग्रसर हो रहा है*


*🔊समय की मांग पहचान समय रहते जातिवाद, मत/भाषा/क्षेत्र का भेद ,स्वार्थ एवं कायरता छोड़ जागो हिन्दुओ*

*अन्यथा ना राष्ट्र,धर्म का अस्तित्व बचेगा ना तुम्हारे प्राण ना बहन बेटियों की आन*

Friday, October 22, 2021

पेट्रोल डीजल

 

*_22 Oct 2021, 07:48 AM IST_*


*_🌸🌾न्ई दिल्ली सरकारी तेल कंपनियों ने शुक्रवार के लिए पेट्रोल-डीजल के नए रेट जारी कर दिए हैं। आज भी (22 अक्टूबर, 2021) तेल कंपनियों ने आम आदमी को झटका देते हुए तेल की कीमतें बढ़ा दी है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें हर रोज नया रिकॉर्ड बना रही हैं। बीते एक साल में पेट्रोल-डीजल 26 रुपये प्रति लीटर से अधिक महंगा हो गया है। आज डीजल के दाम 33 से 37 पैसे तो वहीं पेट्रोल के दाम 31 से 35 पैसे बढ़े हैं। राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 106.89 रुपए प्रति लीटर हो गया है। वहीं, डीजल 95.62 रुपए प्रति लीटर की दर से बिक रहा है।_*


*_🌾जानिए महानगरों के लेटेस्ट भाव,_*


_🥀महानगरों में तेल के कीमतों की बात करे तो आज दिल्ली में पेट्रोल का दाम 106.89 रुपए जबकि डीजल 95.64 रुपए प्रति लीटर मिल रहा है। वहीं मुंबई की बात करें तो यहां पेट्रोल की कीमत 112.78 रुपए व डीजल की कीमत 103.63 रुपए प्रति लीटर है। चेन्नई में पेट्रोल 103.92 रुपए प्रति लीटर है और डीजल 99.92 रुपए प्रति लीटर में बिक रहा है। कोलकाता में पेट्रोल 107.44 रुपए प्रति लीटर है और डीजल 98.73 रुपए प्रति लीटर है।_


*_🌾शहर का नाम पेट्रोल रुपए/लीटर डीजल रुपए/लीटर:_*


_🥀नई दिल्‍ली 106.89 95.62 मुंबई 112.78 103.63 कोलकाता 107.44 98.73 चेन्‍नई 103.92 99.92 नोएडा 104.08 96.26 बेंगलुरु 110.61 101.49 हैदराबाद 111.18 104.32 पटना 110.44 102.21 लखनऊ 103.86 96.07 जयपुर 114.11 105.34_


*_🌾11 राज्यों में डीजल 100 के पार:_*


_🥀बीते दिन डीजल 34 से 37 पैसे तो वहीं पेट्रोल 31 से 35 पैसे महंगा हुआ। वहीं बुधवार को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया था। एक दिन मंगलवार को भी तेल कंपनियों ने पेट्रोल—डीजल की कीमतों में कोई इजाफा नहीं किया था। एक दिन पहले सोमवार को पेट्रोल के दाम 29 पैसे तो वहीं डीजल के दाम में 35 पैसे बढ़ाए थे। देश 11 राज्यों में डीजल 100 रुपए से ज्यादा में बिक रहा है। केरल, कर्नाटक, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार और लेह में डीजल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर को पार कर गई है।_

 

*_🌾इन शहरों में 100 रुपए के पार है पेट्रोल:_*


_🥀अब तक कई शहरों में पेट्रोल का दाम 100 रुपए प्रति लीटर के पार जा चुका है। सबसे महंगा पेट्रोल और डीजल राजस्‍थान के गंगानगर में है। रत्‍नागिरी, प्रभनीद, औरंगाबाद, जैसलमेर, गंगानगर, लेह, बंसवाड़ा, इंदौर, जयपुर, दिल्ली, गुजरात, कोलकाता, पटना, चेन्‍नई, भोपाल, ग्‍वालियर, गुंटुर, ककिनाडा, चिकमंगलुर, शिवमोग्‍गा और लेह भी शामिल है। इसके अलावा महानगरों में मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरु में पेट्रोल पहले ही 100 रुपए प्रति लीटर के आंकड़े को पार कर चुका है।_


*_🌾हर रोज सुबह 6 बजे तय होते हैं रेट:_*


_🥀सभी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों IOC, BPCL और HPCL के पेट्रोल-डीजल की कीमत हर दिन घटती-बढ़ती रहती हैं। पेट्रोल-डीजल का नया दाम रोजाना सुबह 6 बजे अपडेट होता है। सुबह छह बजे से नई दरें लागू हो जाती हैं। जिसमें एक्साइज ड्यूटी, डीलर कमीशन और अन्य चीजें जोड़कर पेट्रोल डीजल का दाम लगभग दोगुना हो जाता है।_

 

*_🌾ऐसे जानें अपने शहर में पेट्रोल-डीजल के दाम:_*


_🥀आप घर बैठे SMS के जरिए ही अपने नजदीकी पेट्रोल पंप पर पेट्रोल-डीजल की कीमत का पता लगा सकते है। इंडियन ऑयल के कस्‍टमर अपने मोबाइल से RSP के साथ शहर का कोड डालकर 9224992249 पर मैसेज भेजना होगा। इसी प्रकार BPCL के ग्राहक अपने मोबाइल से RSP टाइप कर 9223112222 SMS भेज सकते हैं। HPCL के ग्राहक HPPrice लिखकर 9222201122 लिखकर SMS भेज सकते हैं।_


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Thursday, October 21, 2021

वीरनारायण मन्दिर, गडग(कर्नाटक)

 *👆🏻🛕अपने सामर्थ्य को पहचानो🛕👇🏻*



*🛕वीर नारायण मंदिर, गडग(कर्नाटक)*


*🔶 11 वीं सदी में निर्मित, वीरनारायण मंदिर गडग में स्थित सबसे प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह महा विष्णु भगवान को समर्पित है, मंदिर में उपस्थित मूर्ति देवता के योद्धा प्रपत्र को प्रदर्शित करता है।*


*🔶प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को सूर्य इस मंदिर के बीचोबीच आता है। 23 मार्च को सूर्य की स्थिति को ध्यान में रखकर इस मंदिर को बनाना अपने आप में एक हैरान करने वाली वास्तुकला है ।*


*🔶शीशे की तरह चमकता यह स्तंभ आज की टेक्नोलॉजी के साथ बनाना संभव है क्या? यह स्तंभ अतीत के एक चमकते इतिहास को परावर्तित कर रहा है बस देखने वालों की नजर "वामपंथी" नहीं होनी चाहिए।*

भारतीय मसाला

 भारतीय मसालों की सूची

 

 

ध्यान रखें

 

भारत कई प्रकार के मसालों का उत्पादन करता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के इन मसालों का वर्तमान उत्पादन लगभग चार अरब यू एस डॉलर मूल्य के लगभग 32 लाख टन है और विश्व मसाला उत्पादन में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है। विभिन्न प्रकार की जलवायु के कारण - उष्णकटिबन्ध क्षेत्र से उपोष्ण कटिबन्ध तथा शीतोष्ण क्षेत्र तक - लगभग सभी तरह के मसालों का बढिया उत्पादन भारत में होता है। वास्तव में भारत के लगभग सभी राज्यों व संघ-शासित क्षेत्रों में कोई-न-कोई मसाला उत्पन्न होता है।


भारतीय मसाले भारत की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय जलवायु मसालों के लिए अच्छी है और भारत अन्तराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) के साथ सूचीबद्ध 109 में से 75 प्रकार के मसालों का उत्पादन करता है।


भारतीय मसालों का इतिहास संपादित करें

प्राचीन और मध्यकालीन युगों में भी भारतीय मसालों ने भारत की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय मसालों का इतिहास रोम, चीन आदि की प्राचीन सभ्यताओं के साथ व्यापार की एक लम्बी कहानी बताता है। केरल, पंजाब, गुजरात, मणिपुर, मिजोरम, उत्तर प्रदेश और कई अन्य राज्य बढ़ते मसालों के केंद्र हैं। निर्यात के अलावा, इन मसालों का उपयोग देश में खाद्य पदार्थों के स्वाद के लिए और दवाओं, दवा, इत्र, सौंदर्य प्रसाधन और कई अन्य उद्योगों में भी किया जा रहा है।


भारतीय मसालों के प्रकार संपादित करें

भारतीय मसालों का उपयोग सूखे बीज, पत्तियों, फूलों, छाल, जड़ों, फलों के रूप में किया जाता है और कुछ मसालों को पीसकर पाउडर के रूप में उपयोग किया जाता है।


बीज के प्रकार के मसाले: कुछ सामान्य बीज जो मसाले के रूप में उपयोग किए जाते हैं, वे हैं अजवाईन, अनारदाना, सौंफ, धनिया, जीरा, भारतीय दाल, सौंफ, मेथी, सरसों, खसखस या पोस्ता, आदि।

पत्ती के प्रकार के मसाले: आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले कुछ मसाले जो पत्ती की श्रेणी में आते हैं, वे हैं- तुलसी, लॉरेल लीव्स, तेजपात, करी लीव्स, पेपरमिंट लीव्स, पुदीना, पार्सले, सेज, सेवरी, रोज़मेरी लीव्स और अन्य।

फूल / फलों के प्रकार के मसाले : कुछ सामान्य फूल जो मसाले के रूप में उपयोग किए जाते हैं, वे हैं रोज़, केपर, रोडोडेंड्रोन, जुनिपर, कोकम, गदा और जायफल, वेनिला, आदि।

मूल प्रकार के मसाले : मसाले के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली जड़ें हैं : गंगंगल, लहसुन, अदरक, प्याज, मीठा झंडा, घोड़ा मूली, स्टोन लीक, लवेज, शालोट और हल्दी।

अन्य मसाले: कुछ मसाले बीज, फल आदि की किसी भी श्रेणी में नहीं आते हैं, लेकिन फिर भी मसालों के परिवार से संबंधित हैं, जैसे काली मिर्च, लॉन्ग पेपर, चबिका, लौंग, अमचुर, हींग, करपूर, एरोवरोट और अन्य।

अ-इ संपादित करें

अजवायन

अमचूर

अंबाकड़ी

अजीनोमोटो

अदरक

अनारदाना

इमली

इलायची बड़ी

इलायची छोटी

क-ख-ग-घ संपादित करें

करीपत्ता

कसूरी मेथी

काली मिर्च

कलौंजी

केसर

खसखस

गरम मसाला

गोल मिर्च

च-छ-ज-झ संपादित करें

चीनी

चाय की पत्ती

चाट मसाला

जीरा

जावित्री

जायफल

त-थ-द-ध-न संपादित करें

तेल

तिल

दालचीनी

धनिया

नमक समुद्री सफ़ेद

नमक काला

नमक सेंधा

नारियल

तेजपात

ट-ठ-ड-ढ संपादित करें

प-फ-ब-भ-म संपादित करें

पुदीना

फूलमखाने

मिर्च लाल

मिर्च हरी

मिर्च सफ़ेद

मिर्च काली

मेथीदाना

य-र-ल-व संपादित करें

राई

लौंग

श-स-ह-क्ष-त्र संपादित करें

सोंठ

सौंफ

शाहजीरा

हल्दी

हरड़

हींग

कुछ भरतीय मसालों का संक्षिप्त परिचय संपादित करें

हल्दी संपादित करें

हल्दी (हरिद्रा) गुणों का खजाना है। हल्दी कन्द है जिसे बड़ी आसानी से घर पर उगाया जा सकता है। इसका पौधा बहुवार्षिक होता है। यह गर्मी की फसल है लेकिन इसे तेज धूप पसंद नहीं है। हल्दी के पत्ते, तना और कंद सभी का प्रयोग खाने और औषधि बनाने में किया जाता है।


धनिया पाउडर संपादित करें

धनिया दाना से तैयार किए गये पाउडर का प्रयोग सम्पूर्ण भारत में होता है। यह करी, दालों, सूखी सब्जियों, और लगभग सभी अचारों में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खुश्बू तेज होती है, और इसके स्थान पर किसी और मसाले का प्रयोग नही किया जा सकता है।


काली मिर्च संपादित करें

काली मिर्च का प्रयोग खाने में मसाले के जैसे और दवाइयों में सदियों से होता आ रहा है। काली मिर्च एक पौधे का फल है। इसके फल गुच्छों में उगते है। काली मिर्च का फल हरा होता है और पक जाने पर फल का रंग लाल हो जाता है और जब इसे तोड़कर सुखाया जाता है तो इसका रंग काला हो जाता है। काली मिर्च अन्दर से हल्की सफेद होती है।


सफेद मिर्च - सफेद मिर्च और काली मिर्च दोनों एक ही पौधे के फल हैं, बस अपने रंग के कारण उनका उपयोग अलग हो जाता है। सफेद मिर्च का प्रयोग आमतौर हल्के रंग के व्यंजनों जैसे कि सूप, सलाद, ठंडाई, बेक्ड रेसिपी इत्यादि में किया जाता है।


जीरा संपादित करें

जीरा हर भारतीय रसोई में मिलने वाला एक आवश्यक मसाला है। जीरे का उपयोग दालों, करी, अचारों इत्यादि में होता है। जीरे को भून कर और पीस कर दही के व्यंजनों में भी डालते हैं।


भुना जीरा - भुने जीरे का प्रयोग भी भारतीय खाने में बहुतायत में होता है। जीरे को भून कर और पीस कर दही के व्यंजनों , देसी पेय, चटनी, गलका, चाट इत्यादि में भी डालते हैं।


भुना हुआ जीरा पाउडर - जीरे को भूनकर के दरदरा पिसे हुए इस मसाले का उपयोग मुख्य रूप से दही से बनने वाली डिशेज़ में किया जाता है। जीरे को भून और पीस कर डिब्बे में रख सकते हैं जिससे इसका इस्तेमाल आसान हो जाता है।


काला जीरा संपादित करें

काला जीरा, रोज इस्तेमाल में आने वाले जीरे से अलग है। काला जीरा आमतौर पर उत्तर भारत में अधिक प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग गरम मसाला बनाने में भी किया जाता है।


अमचूर पाउडर (खटाई) संपादित करें

खटाई का प्रयोग आमतौर पर उत्तर भारत में होता है। इसका प्रयोग सूखी सब्जियों को थोड़ा खट्टा स्वाद देने के लिए किया जाता है। खाने में खट्टा स्वाद लाने के लिए खटाई की जगह नीबू का रस भी इस्तेमाल किया जा सकता है।


हींग संपादित करें

हींग की महक बहुत तेज होती है और खाने में भी यह थोड़ी कड़वी होती है। आमतौर पर बाजार में मिलने वाली पिसी हींग में चावल का आटा मिलाया जाता है जिससे की उसकी कड़वाहट को थोड़ा कम किया जा सके। हींग को आमतौर पर तेज गरम घी / तेल में भूना जाता है। हींग बहुत लाभकारी पाचक है। छोटे बच्चों को जब पेट में हवा की शिकायत होती है तो हींग को पानी में घोल कर पेट पर बाहर से लगाने से राहत आती है। शुद्ध हींग पानी में घोलने पर सफेद हो जाती है।


हड़ संपादित करें

हड़ एक खड़ा मसाला है और इसका प्रयोग आमतौर पर चूरन, अचार, इत्यादि में होता है। यह पेट के लिए भी बहुत अच्छा माना जाता है।


मेथीदाना संपादित करें

मेथी के दानों का प्रयोग मसाले के रूप में होता है तथा मेथी की पतियों का प्रयोग पराठा, सब्जी, करी, नाश्ते इत्यादि में होता है। मेथी का पौधा वार्षिक होता है जिसे आसानी से घर की बगिया में भी उगाया जा सकता है। यह एक औषधीय पौधा है और इसका उपयोग पेट की बीमारियों से लेकर मधूमेह तक के बचाव में होता है।


हरी इलायची संपादित करें

हरी इलायची को 'छोटी इलायची' भी कहते हैं। इसकी सुगन्ध बहुत मीठी सी होती है। यह एक बहुउपयोगी मसाला है और इसका प्रयोग, गरम मसाले, करी, चावल की डिश, नमकीन, देशी पेय और इसके साथ ही साथ मिठाइयों में भी होता है।


सूखा पुदीना (पुदीना पाउडर) संपादित करें

पुदीना स्वास्थ के लिए लाभकारी होता है और गर्मियों में ठंडक भी पहुँचाता है। पुदीने का पाउडर बहुत ही आसानी से घर पर बनाया जा सकता है और बोतल में लंबे समय तक रख सकते हैं। कभी जब पुदीने की ताजी पत्तियाँ घर पर नही होती हैं तब पुदीने का पाउडर बहुत काम आता है, ख़ासतौर पर दही से बनने वाली डिशेज़ में।


तेज पत्ता संपादित करें

तेज पत्ते का प्रयोग मुख्यतः करी, और चावल के व्यंजनों मे होता है। तेज पत्ता, सीधे पत्ते के रूप में भी डाला जाता है और इसको गरम मसाले में पीसा भी जाता है। तेज पत्ते की महक बहुत अच्छी होती है और इसे छोले, राजमा इत्यादि में भी डालते हैं।


अजवाइन संपादित करें

अजवाइन को एक अच्छा पाचक माना जाता है और इसका प्रयोग सदियों से आयुर्वेद में होता आ रहा है। अजवाइन के दाने बहुत खुश्बुदार होते हैं। इसका प्रयोग छौंक के अलावा, चूरन, चाट मसाला, अचार, करी और बहुत सारी चीज़ों मे किया जाता है।


चाट मसाला संपादित करें

चाट मसाला कई प्रकार के मसालों को मिलाकर बनाया जाता है, जैसे नमक, काला नमक, अमचूर पाउडर, अनरदाना, काली मिर्च, पुदीना, सोंठ, इत्यादि। चाट मसाले का प्रयोग फलों की चाट, अंकुरित चाट, पकोड़ी आदि का स्वाद बढ़ाने के लिए करते हैं।


गरम मसाला संपादित करें

गरम मसाला कई प्रकार के खड़े मसालों को मिलाकर बनाया जाता है। भारत के अलग-अलग प्रांतों में गरम मसाले को बनाने की विधि अलग-अलग हो सकती है। इस मसाले की खुश्बू बहुत अच्छी होती है और इससे खाने का स्वाद भी बढ़ जाता है।


मंगौड़ी संपादित करें

मंगौड़ी, मारवाड़ी खाने की जान होती हैं। मंगौड़ी को मूंगदाल के पेस्ट से बनाया जाता हैं। बनाने के बाद मंगौड़ी को धूप में सुखाते हैं और फिर इसे डिब्बे में भण्डारित कर सकते हैं। मंगौड़ी से कई व्यंजन बनाए जाते हैं जैसे कि मंगौड़ी की तहरी, मंगौड़ी की कढ़ी, मंगौड़ी आलू इत्यादि।।


सरसों और राई संपादित करें

सरसों का पौधा बहुउपयोगी होता है। सरसों कई रंग की होती हैं, लेकिन काली सरसों आसानी से मिल जाती है। सरसों की पत्तियाँ का साग, भुजी, इत्यादि बनाए जाते है, और सरसों के दानों का प्रयोग, तड़के में, अचारों में, और बहुत सारी चीज़ों में होता है। पश्चिम में सरसों का इस्तेमाल सॉस बनाने में भी किया जाता है।


जायफल संपादित करें

जायफल गोल या अंडाकार होता है। यह बीज है और लाल रंग की छाल से ढका रहता है जिसे 'जावित्री' के नाम से जानते हैं। जायफल और जावित्री दोनों ही मसाले हजारों वर्षों से इस्तेमाल होते आ रहे हैं। गरम मसाला बनाने के लिए यह मसाला अत्यन्त आवश्यक है। इनका उपयोग आयुर्वेदिक दवाई बनाने में भी किया जाता है। भारत में घरेलू इलाज में, जायफल को ठंड लग जाने पर घिस कर दूध के साथ बच्चों को दिया जाता है।


अनारदाना संपादित करें

यह अनार के दानों से तैयार किया गया मसाला है। अनार के दानों को सुखा कर पीसे गये इस मसाले का प्रयोग खाने में खट्टा स्वाद लाने की लिए किया जाता हैं। अनारदाने से नाना प्रकार के स्वादिष्ट चूरन भी बनते हैं।


केसर संपादित करें

केसर को 'जाफ़रान' के नाम से भी जाना जाता है। केसर शायद सबसे महंगा मसाला है लेकिन बहुत कम मात्रा में इस्तेमाल करने पर भी यह खाने में बहुत स्वाद और खुश्बू देता है। इसका प्रयोग मिठाइयों, पुलाव, करी, इत्यादि में होता है। केसर के धागे दूध या पानी में भिगोने पर केसरिया रंग (पीला) देता है।


सफेद तिल संपादित करें

बाजार में दो प्रकार के सफेद तिल आते हैं, एक महीन छिलके के साथ जो कि हल्का गुलाबी-भूरा होता है, और एक बिना छिलके के जो एकदम सफेद होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से छिलके वाला तिल अति उत्तम है। तिल से नाना प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। जैसे कि, मिठाइयाँ, नमकीन, करी, कई प्रकार की ब्रेड बनाने में भी इनका प्रयोग होता है। तिल में कैल्शियम बहुतायत में होता है, इसके साथ ही साथ इसमें फास्फ़ोरस और कई प्रकार के विटामिन भी होते हैं।



Wednesday, October 20, 2021

वीरभद्र मन्दिर, लेपाक्षी




 *👆🏻🛕अपने सामर्थ्य को पहचानो🛕👇🏻*


*🛕 वीरभद्र मंदिर, लेपाक्षी(आंध्र प्रदेश)*


*🔶हमारे देश में रहस्‍यों से भरे मंदिरों की कमी नहीं है। ऐसा ही लेपाक्षी मंदिर है दक्षिण भारत में ज‍िसके रहस्‍य को सुलझाने में ब्रिटिशर्स भी हार गए। यह मंदिर पुरातन काल से आज तक लोगों के लिए उत्‍सुकता का व‍िषय है। बता दें क‍ि यह मंदिर भगवान शिव, भगवान व‍िष्‍णु और भगवान विरभद्र को समर्पित है।*


*🔶आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्‍थापित लेपाक्षी मंदिर 70 खंभों पर खड़ा है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी क‍ि मंदिर का एक खंभा भूमि को छूता ही नहीं है। बल्कि हवा में झूलता रहता है। यही कारण है कि इस मंदिर को हैंगिंग टेंपल के नाम से भी जाना जाता है।*


*🔶मंदिर के न‍िर्माण को लेकर अलग-अलग मत हैं। इस धाम में स्थित एक स्वयंभू शिवलिंग भी है जिसे शिव का रौद्रअवतार यानी वीरभद्र अवतार माना जाता है। जानकारी के अनुसार यह श‍िवलिंग 15वीं शताब्दी तक खुले आसमान के नीचे विराजमान था। लेकिन 1538 में दो भाइयों विरुपन्ना और वीरन्ना ने मंदिर का न‍िर्माण क‍िया था जो की विजयनगर राजा के यहां काम करते थे।*


*🔊सनातन की सभ्यता,कला, ज्ञान,सामर्थ्य आदि के कारण भारत विश्व गुरु था किन्तु हिन्दुओ के अहंकार,जातिवाद, लालच एंव कायरता के चलते ना केवल हजार साल ग़ुलाम रहा अपितु पुनः अब विनाश की और अग्रसर हो रहा है*


*🔊समय की मांग पहचान समय रहते जातिवाद, मत/भाषा/क्षेत्र का भेद ,स्वार्थ एवं कायरता छोड़ जागो हिन्दुओ*

*अन्यथा ना राष्ट्र,धर्म का अस्तित्व बचेगा ना तुम्हारे प्राण ना बहन बेटियों की आन*

वैदिक विज्ञान


 वैदिक विज्ञान को समझे 

*नोटः- यह एक विस्तृत लेख है समय का अभाव होने पर न पढ़ें क्योंकि अधूरा ज्ञान घातक सिद्ध हो सकता है।*


            *✈️ वैदिकविज्ञान 🚀*


  *🚁शीघ्रगामी यानों की गति का परिणाम 🚁*


 *🚁विमान शास्त्र का परिचय...*


ऐसे कई गूढ़ रहस्य भरे है.. हमारे देश की पांडुलिपियों और प्राचीन ग्रन्थों मे "'अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत शोध मण्डल" ने प्राचीन पाण्डुलिपियों की खोज के विशेष प्रयास किये फलस्वरूप् जो ग्रन्थ मिले, उनके आधार पर ऋषि भरद्वाज का `विमान प्रकरण´, विमान शास्त्र प्रकाश 

में आया इस ग्रन्थ का बारीकी से अध्यन करने पर आठ प्रकार के विमानों का पता चला है :-


१. शक्त्युद्गम- बिजली से चलने वाला।

२. भूतवाह- अग्नि, जल और वायु से चलने वाला।

३. धूमयान- गैस से चलने वाला।

४. शिखोद्गम- तेल से चलने वाला।

५. अंशुवाह- सूर्यरश्मियों से चलने वाला।

६. तारामुख- चुम्बक से चलने वाला।

७. मणिवाह-चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त मणियों से चलने वाला

८. मरुत्सखा - केवल वायु से चलने वाले

*🛫 प्राचीन भारतीय विमान शास्त्र 🛬*


 सनातन वैदिक विज्ञान का अप्रतिम स्वरूप :


हिंदू वैदिक ग्रंथोँ एवं प्राचीन मनीषी साहित्योँ मेँ वायुवेग से उड़ने वाले विमानोँ (हवाई जहाज़ोँ) का वर्णन है, सेकुलरोँ के लिए ये कपोल कल्पित कथाएं हो सकती हैँ, परन्तु धर्मभ्रष्ट लोगोँ की बातोँ पर ध्यान ना देते हुए हम तथ्योँ को विस्तार देते हैँ।ब्रह्मा का १ दिन, पृथ्वी पर हमारे वर्षोँ के ४,३२,००००००० दिनोँ के बराबर है। और यही १ ब्रह्म दिन चारोँ युगोँ मेँ विभाजित है यानि, सतयुग, त्रेता, द्वापर एवं वर्तमान मेँ कलियुग।


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सतयुग की आयु १,७२,८००० वर्ष निर्धारित है, इसी प्रकार १,००० चक्रोँ के सापेक्ष त्रेता और कलियुग की आयु भी निर्धारित की गई है।


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सतयुग मेँ प्राणी एवं जीवधारी वर्तमान से बेहद लंबा एवं जटिल जीवन जीते थे, क्रमशः त्रेता एवं द्वापर से कलियुग आयु कम होती गई और सत्य का प्रसार घटने लगा,


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उस समय के व्यक्तियोँ की आयु लम्बी एवं सत्य का अधिक प्रभाव होने के कारण उनमेँ आध्यात्मिक समझ एवं रहस्यमयी शक्तियां विकसित हुई, और उस समय के व्यक्तियोँ ने जिन वैज्ञानिक रचनाओँ को बनाया उनमेँ से एक थी "वैमानिकी"।


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उस समय की मांग के अनुसार विभिन्न विमान विकसित किए गए, जिन्हेँ भगवान ब्रह्मा और अन्य देवताओँ के आदेश पर यक्षोँ (जिन्हेँ इंजीनियर कह सकते हैँ) ने बनाया था,


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ये विमान प्राकृतिक डिज़ाइन से बनाए जाते थे, इनमेँ पक्षियोँ के परोँ जैसी संरचनाओँ का प्रयोग जाता था, इसके पश्चात् के विमान, वैदिक ज्ञान के प्रकांड संतएवं मनीषियोँ द्वारा निर्मित किए गए, तीनोँ युगोँ के अनुरूप विमानोँ केभी अलग अलग प्रकार होते थे,


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प्रथम युग सतयुग मेँ विमान मंत्र शक्ति से उड़ा करते थे, द्वितीय युग त्रेता मेँ मंत्र एवं तंत्र की सम्मिलित शक्ति का प्रयोग होता था, तृतीय युग द्वापर मेँ मंत्र-तंत्र-यंत्र तीनोँ की सामूहिक ऊर्जा से विमान उड़ा करते थे, वर्तमान मेँ अर्थात् कलियुग मेँ मंत्र एवं तंत्र के ज्ञान की अथाह कमी है, अतः आज के विमान सिर्फ यंत्र (मैकेनिकल) शक्ति से उड़ा करते हैँ,


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युगोँ के अनुरूप हमेँ विमानोँ के प्रकारोँ की संख्या ज्ञात है, सतयुग मेँ मंत्रिका विमानोँ के २६ प्रकार (मॉडल) थे, त्रेता मेँ तंत्रिका विमानोँ के ५६ प्रकार थे, तथा द्वापर मेँ कृतिका (सम्मिलित) विमानोँ के भी २६ प्रकार थे,


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हालांकि आकार और निर्माण के संबंध मेँ इनमेँ आपस मेँ कोई अंतर नहीँ हैँ।


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*महान भारतीय आचार्य महर्षि भारद्वाज ने एक ग्रंथ रचा, जिसका नाम है, "विमानिका" या "विमानिका शास्त्र"*


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१८७५ ईसवीँ में दक्षिण भारत के एक मन्दिर में विमानिका शास्त्र ग्रंथ की एक प्रति मिली थी। इस ग्रन्थ को ईसा से ४०० वर्ष पूर्व का बताया जाता है, इस ग्रंथ का अनुवाद अंग्रेज़ी भाषा में हो चुका है। इसी ग्रंथ में पूर्व के ९७ अन्य विमानाचार्यों का वर्णन है तथा २० ऐसी कृतियों का वर्णन है जो विमानों के आकार प्रकार के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं। खेद का विषय है कि इन में से कई अमूल्य कृतियां अब लुप्त हो चुकी हैं। कई कृतियोँ को तो विधर्मियोँ ने नालंदा विश्वविद्यालय मेँ जला दिया,


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इस महान ग्रंथ मेँ विभिन्न प्रकार के विमान, हवाई जहाज एवं उड़न-खटोले बनाने की विधियाँ दी गई हैँ, तथा विमान और उसके कलपुर्जे तथा ईंधन के प्रयोग तथा निर्माण की विधियोँ का भी सचित्र वर्णन किया गया है, उन्होँने अपने विमानोँ मेँ ईंधन या नोदक अथवा प्रणोदन (प्रोपेलेँट) के रूप मेँ पारे (मर्करी Hg) का प्रयोग किया।


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बहुत कम लोग जानते हैँ कि कलियुग का पहला विमान राइट ब्रदर्स ने नहीँ बनाया था, पहला विमान १८९५ ई. में मुम्बई स्कूल ऑफ आर्ट्स के अध्यापक शिवकर बापूजी तलपड़े, जो एक महान वैदिक विद्वान थे, ने अपनी पत्नी (जो स्वयं भी संस्कृत की विदुषा थीं) की सहायता से बनाया एवं उड़ाया था। उन्होँने एक मरुत्सखा प्रकार के विमान का निर्माण किया। इसकी उड़ान का प्रदर्शन तलपड़े ने मुंबई चौपाटी पर तत्कालीन बड़ौदा नरेश सर शिवाजी राव गायकवाड़ और बम्बई के प्रमुख नागरिक लालजी नारायण के सामने किया था। विमान १५०० फुट की ऊंचाई तक उड़ा और फिर अपने आप नीचे उतर आया। बताया जाता है कि इस विमान में एक ऐसा यंत्र लगा था, जिससे एक निश्चित ऊंचाई के बाद उसका ऊपर उठना बन्द हो जाता था। इस विमान को उन्होंने महादेव गोविन्द रानडे को भी दिखाया था।


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दुर्भाग्यवश इसी बीच तलपड़े की विदुषी जीवनसंगिनी का देहावसान हो गया(कथित है कुछ अंग्रेज उनको मार कर दस्तावेज चुरा ले गए)। फिर तलपड़े जी मानसिक रुप से विमार पड़ गये। फलत: वे इस दिशा में और आगे न बढ़ सके। १७ सितंबर, १९१८ ईँसवी को उनका देहावसान हो गया।


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राइट ब्रदर्स के काफी पहले वायुयान निर्माण कर उसे उड़ाकर दिखा देने वाले तलपड़े महोदय को आधुनिक विश्व का प्रथम विमान निर्माता होने की मान्यता देश के स्वाधीन (?) हो जाने के इतने वर्षों बाद भी नहीं दिलाई जा सकी, यह निश्चय ही अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है। और इससे भी कहीं अधिक दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि पाठ्य-पुस्तकों में शिवकर बापूजी तलपड़े के बजाय राइटब्रदर्स (राइट बन्धुओं) को ही अब भी प्रथम विमान निर्माता होने का श्रेय दिया जा रहा है, जो नितान्त असत्य है।


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"समरांगन:- सूत्र धारा" नामक भारतीय ग्रंथ मेँ भी विमान निर्माण संबंधी जानकारी है। इस ग्रंथ मेँ युद्ध के समय वैमानिक मशीनोँ के प्रयोग का वर्णन है, इस ग्रंथ मेँ संस्कृत के २३० श्लोक हैँ, स्थान की कमी के कारण हम यहाँ इस ग्रंथ के पूरे श्लोक नहीँ लिख रहे हैँ, अन्यथा लेख लंबा हो जाएगा।


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*परन्तु हम इस ग्रंथ के १९० वेँ श्लोक का अनुवाद अवश्य कर रहे हैँ :-*

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"[२:२० . १९०] परिपत्रोँ से पूर्ण विमान के दाहिने पंख से अंदर जाते हुए केंद्र पर ध्वनि की गति से पारे को ईँधन के सापेक्ष पहुँचाने पर एक छोटी पर अधिक दबाव वाली आंतरिक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो आपके यंत्र को आकाश मेँ शनैः शनैः ले जाएगी, जिससे यंत्र के अंदर बैठा व्यक्ति अविस्मरणीय तरीके से नभ की यात्रा करेगा, चार कठोर धातु से बने पारे के पात्रोँ का संयोजन उचित स्थिति मेँ किया जाना चाहिए, एवं उन्हेँ नियंत्रित तरीके से ऊष्मा देनी चाहिए, ऐसा करने से आपका विमान आकाश मेँ चमकीले मोती के समान उड़ता नज़र आएगा।।"


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*👉🏽इस ग्रंथ के एक गद्य का अनुवाद इस प्रकार है -*


"सर्वप्रथम पाँच प्रकार के विमानों का निर्माण ब्रह्मा, विष्णु, यम, कुबेर तथा इन्द्र के लिये किया गया था। तत्पश्चात अन्य विमान बनाये गये। चार मुख्य श्रेणियों का ब्योरा इस प्रकार हैः-


(१) रुकमा – रुकमा नुकीले आकार के और स्वर्ण रंग के विमान थे।


(२) सुन्दरः –सुन्दर: त्रिकोण के आकार के तथा रजत (चाँदी) युक्त विमान थे।


(३) त्रिपुरः – त्रिपुरः तीन तल वाले शंक्वाकार विमान थे।


(४) शकुनः – शकुनः का आकार पक्षी के जैसा था। तथा ये अंतर्राक्षीय विमान थे।

 


दस अध्याय संलगित विषयों पर लिखे गये हैं जैसे कि विमान चालकों का प्रशिक्षण, उडान के मार्ग, विमानों के कल-पुर्ज़े, उपकरण, चालकों एवं यात्रियों के परिधान तथा लम्बी विमान यात्रा के समय भोजन किस प्रकार का होना चाहिये। ग्रंथ में धातुओं को साफ करने की विधि, उस के लिये प्रयोग करने वाले द्रव्य, अम्ल जैसे कि नींबू अथवा सेब या अन्य रसायन, विमान में प्रयोग किये जाने वाले तेल तथा तापमान आदि के विषयों पर भी लिखा गया है।

 


साथ ही, ७ प्रकार के इंजनों का वर्णन किया गया है, तथा उनका किस विशिष्ट उद्देश्य के लिये प्रयोग करना चाहिये तथा कितनी ऊंचाई पर उसका प्रयोग सफल और उत्तम होगा ये भी वर्णित है।


ग्रंथ का सारांश यह है कि इसमेँ प्रत्येक विषय पर तकनीकी और प्रयोगात्मक जानकारी उपलब्ध है। विमान आधुनिक हेलीकॉप्टरों की तरह सीधे ऊंची उडान भरने तथा उतरने के लिये, आगे-पीछे तथा तिरछा चलने में भी सक्षम बताये गये हैं।


इसके अतिरिक्त हमारे दूसरे ग्रंथोँ - रामायण, महाभारत, चारोँ वेद, युक्तिकरालपातु (१२ वीं सदी ईस्वी) मायाम्तम्, शतपत् ब्राह्मण, मार्कण्डेय पुराण, विष्णु पुराण, भागवतपुराण, हरिवाम्सा, उत्तमचरित्र ,हर्षचरित्र, तमिल पाठ जीविकाचिँतामणि, मेँ तथा और भी कई वैदिक ग्रंथोँ मेँ भी विमानोँ के बारे मेँ विस्तार से बताया गया है,


महर्षि भारद्वाज के शब्दों में - "पक्षियों की भान्ति उडने के कारण वायुयान को विमान कहते हैं, (वेगसाम्याद विमानोण्डजानामिति ।।)


*🚁 विमानों के प्रकार ✈️*


(१) शकत्युदगम विमान -"विद्युत से चलने वाला विमान"


(२) धूम्र विमान - "धुँआ, वाष्प आदि से चलने वाला विमान"


(३) अशुवाह विमान - "सूर्य किरणों से चलने वाला विमान",


(४) शिखोदभग विमान - "पारे से चलने वाला विमान",


(५) तारामुख विमान -"चुम्बकीय शक्ति से चलने वाला विमान",


(६) मरूत्सख विमान - "गैस इत्यादि से चलने वाला विमान"


(७) भूतवाहक विमान - "जल,अग्नि तथा वायु से चलने वाला विमान"


वो विमान जो मानवनिर्मित नहीं थे किन्तु उन का आकार प्रकार आधुनिक ‘उडनतशतरियों’ के अनुरूप है। विमान विकास के प्राचीन ग्रन्थ भारतीय उल्लेख प्राचीन संस्कृत भाषा में सैंकडों की संख्या में उपलब्द्ध हैं, किन्तु खेद का विषय है कि उन्हें अभी तक किसी आधुनिक भाषा में अनुवादित ही नहीं किया गया।


प्राचीन भारतीयों ने जिन विमानों का अविष्कार किया था उन्होंने विमानों की संचलन प्रणाली तथा उन की देख भाल सम्बन्धी निर्देश भी संकलित किये थे, जो आज भी उपलब्द्ध हैं और उनमें से कुछ का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया जा चुका है। विमान-विज्ञान विषय पर कुछ मुख्य प्राचीन ग्रन्थों का ब्योरा इस प्रकार हैः-


*🛩️ प्रथम ग्रंथ :🛩️*


(१) ऋगवेद- इस आदिग्रन्थ में कम से कम २०० बार विमानों के बारे में उल्लेख है। उन में तिमंजिला, त्रिभुज आकार के, तथा तिपहिये विमानों का उल्लेख है जिन्हेँ अश्विनों (वैज्ञानिकों) ने बनाया था। उन में साधारणतया तीन यात्री जा सकते थे। विमानों के निर्माण के लिये स्वर्ण,रजत तथा लोह धातु का प्रयोग किया गया था तथा उन के दोनो ओर पंख होते थे। वेदों में विमानों के कई आकार-प्रकार उल्लेखित किये गये हैं। अहनिहोत्र विमान के दो ईंजन तथा हस्तः विमान (हाथी की शक्ल का विमान) में दो से अधिक ईंजन होते थे। एक अन्य विमान का रुप किंग-फिशर पक्षी के अनुरूप था। इसी प्रकार कई अन्य जीवों के रूप वाले विमान थे। इस में कोई संदेह नहीं कि बीसवीं सदी की तरह पहले भी मानवों ने उड़ने की प्रेरणा पक्षियों से ही ली होगी।


*यातायात के लिये ऋग्वेद में जिन विमानों का उल्लेख है वह इस प्रकार है-*


(१) जलयान – यह वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। (ऋग वेद ६.५८.३)


(२) कारायान – यह भी वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था। (ऋग वेद ९.१४.१)


(३) त्रिताला – इस विमान का आकार तिमंजिला था। (ऋगवेद ३.१४.१)


(४) त्रिचक्र रथ – यह रथ के समान तिपहिया विमान आकाश में उड़ सकता था। (ऋगवेद ४.३६.१)


(५) वायुरथ – रथ के जैसा ये यह विमान गैस अथवा वायु की शक्ति से चलता था। (ऋगवेद ५.४१.६)


(६) विद्युत रथ – इस प्रकार का रथ विमान विद्युत की शक्ति से चलता था। (ऋगवेद ३.१४.१).


आ नासत्या त्रिभिरेकादशैरिह देवेभिर्यातं मधुपेयमश्विना।

प्रायुस्तारिष्टं नी रपासि मृक्षतं सेधतं द्वेषो भवतं सचाभुवा।।

                  - ऋग्वेद। मं०१। सू०३४ मं०११।।


हे शिल्पविद्या के ज्ञाता जनों! आप ( नासत्या ) सत्यगुण - स्वभाव वाले अश्विनी ( सचाऽभुवा ) सम्मिलन करने वाले जल एवम् अग्नि के समान ( देवेभिः ) सम्मिलन करने - करानेवाले विद्वानों के साथ ( इह ) इस उत्तम यान में बैठकर ( त्रिऽभिः ) तीन दिन और तीन रातों में समुद्र के पार व ( एकादशैः ) ग्यारह दिन और ग्यारह रात्रियों में भूगोल - पृथ्वी के अन्त को ( यातम् ) जाओ तथा ( द्वेषः ) शत्रुओं को तथा दुःखों को अच्छी तरह दूर करो । ( मधुऽपेयम् ) मधुर गुण युक्त पान ( सेवन ) के लिए योग्य द्रव्यों द्वारा ( आयुः ) जीवन की ( तारिषृम् ) प्रयत्नपूर्वक वृद्धि करो । इस प्रकार उत्तम सुख की ( सेधतम् ) प्राप्ति करके सब दृष्टियों से श्रेष्ठ व्यक्ति बनो ।


तीन अहोरात्रों ( रात - दिनों में ) में पृथ्वी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक तथा ग्यारह अहोरात्रों में पूरे भूगोल का पर्यटन करने तक - अर्थात् पृथ्वी की कर्ण - रेखा की लम्बाई और उसकी परिधि की लम्बाई के कुल मीलों की दूरी क्रमशः ७२ और २६४ घंटों में पूरी की जा सके, विमान का इतना वेग होना चाहिये । पृथ्वी का व्यास लगभग ८००० मील है । ७२ घण्टों में इतनी दूरी तय करने के लिए एक घण्टे में १११ १/९(एक सौ ग्यारह एक बटा नौ) मील के वेग से जाने वाले विमानों की आवश्यकता होगी । पृथ्वी की परिधि २४ , ००० मील की है । उतने मीलों की यात्रा २६४ घण्टे में करने के लिए प्रति घण्टा ९० मील के वेग से जाने वाले यानों की आवश्यकता होगी। तात्पर्य यह कि यान का वेग एक घण्टे में ९० से लेकर १११ मील का होना चाहिये ।


अन्वेषण, आविष्कार या खोज करनेवाले लोगों के लिए किसी भी बात की कमा नहीं होती । दयालु परमेश्वर ने सम्पूर्ण सष्टि ही हमारे सामने प्रत्यक्ष खड़ी की है । 

 उस सृष्टि को वेदों की सहायता से नहीं जानकर वेद प्रचारक ऋषियों की सन्तानें जब यह कहती हैं कि अपने यहाँ विमानादि शिल्पविद्या का कुछ भी अता - पता नहीं है, और यदि वे यह समझते हों कि वे विद्याएँ हमारे यहाँ नही थी, तो मेरा उनसे इतना ही कहना है कि शोध करने वाले विद्वान् विद्या, कला - कौशल आदि को खोजकर निकाल सकते हैं तथा प्रयोग करने वालों को अपने ध्येय में पूर्णता भी अवश्य प्राप्त होती है । आलसी, निरुत्साही, पुरूषार्थहीन एवम् पराधीनता में आनन्द मनाने वाले लोगों को विद्या और कला - कौशल आदि कदापि प्राप्त नहीं हो सकती । तनिक यूरोप के लोगों की ओर देखिये - इसे क्या कहा जाय कि विद्या और कला - कौशल के ग्रन्थ उन्हें हिन्दुस्थान में मिले हैं और उन्होंने, जो उन ग्रन्थों का महत्व ही नहीं जानते थे, उन हमारे पूर्वजों से वे ग्रन्थ प्राप्त किये । फिर उन ग्रन्थों का अध्ययन, अन्वेषण करके बड़ा परिश्रम किया और अपने तथा अन्य देशों को उस अध्ययन, परिश्रमादि का लाभ प्राप्त कराया। एक ओर वे और एक ओर हम !! हम मुंह उठाकर सारे संसार को कहते फिर रहे हैं कि हमारे यहाँ कला - कोशल के ग्रन्थ हैं ही नहीं । इससे बडा आश्चर्य और क्या होगा ?


*🛩️द्वितीय ग्रंथ :🛩️*


(२) यजुर्वेद - यजुर्वेद में भी एक अन्य विमान का तथा उन की संचलन प्रणाली उल्लेख है जिसका निर्माण जुड़वा अश्विन कुमारों ने किया था। इस विमान के प्रयोग से उन्होँने राजा भुज्यु को समुद्र में डूबने से बचाया था।


*🛩️तृतीय ग्रंथ :🛩️*


(३) यन्त्र सर्वस्वः – यह ग्रंथ भी महर्षि भारद्वाज रचित है। इसके ४० भाग हैं जिनमें से एक भाग मेँ ‘विमानिका प्रकरण’ के आठ अध्याय, लगभग १०० विषय और ५०० सूत्र हैं जिन में विमान विज्ञान का उल्लेख है। इस ग्रन्थ में ऋषि भारद्वाज ने विमानों को तीन श्रैँणियों में विभाजित किया हैः-


(१) अन्तर्देशीय – जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।


(२) अन्तर्राष्ट्रीय – जो एक देश से दूसरे देश को जाते हैँ।


(३) अन्तर्राक्षीय – जो एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जाते हैँ।


इनमें सें अति-उल्लेखनीय सैनिक विमान थे जिनकी विशेषतायें विस्तार पूर्वक लिखी गयी हैं और वह अति-आधुनिक साईंस फिक्शन लेखक को भी आश्चर्य चकित कर सकती हैं।


उदाहरणार्थ - सैनिक विमानों की विशेषतायें इस प्रकार की थीं-


👉🏽 पूर्णत्या अटूट,


👉🏽 अग्नि से पूर्णतयाः सुरक्षित


👉🏽 आवश्यक्तता पड़ने पर पलक झपकने मात्र के समय मेँ ही एक दम से स्थिर हो जाने में सक्षम,


👉🏽 शत्रु से अदृश्य हो जाने की क्षमता (स्टील्थ क्षमता),


👉🏽 शत्रुओं के विमानों में होने वाले वार्तालाप तथा अन्य ध्वनियों को सुनने में सक्षम। 


👉🏽 शत्रु के विमान के भीतर से आने वाली आवाजों को तथा वहाँ के दृश्योँ को विमान मेँ ही रिकार्ड कर लेने की क्षमता, 


👉🏽शत्रु के विमानोँ की दिशा तथा दशा का अनुमान लगाना और उस पर निगरानी रखना, 


👉🏽 शत्रु के विमान चालकों तथा यात्रियों को दीर्घ काल के लिये स्तब्द्ध कर देने की क्षमता, 


👉🏽 निजी रुकावटों तथा स्तब्द्धता की दशा से उबरने की क्षमता।


👉🏽 आवश्यकता पडने पर स्वयं को नष्ट कर सकने की क्षमता, 


👉🏽 चालकों तथा यात्रियों में मौसमानुसार अपने आप को बदल लेने की क्षमता, 


*👉🏽 स्वचालित तापमान नियन्त्रण करने की क्षमता,* हल्के तथा उष्णता ग्रहण कर सकने वाले धातुओं से निर्मित तथा आपने आकार को छोटा बड़ा करने, तथा अपने चलने की आवाजों को पूर्णतयाः नियन्त्रित कर सकने की सक्षमता,


विचार करने योग्य तथ्य है कि इस प्रकार का विमान अमेरिका के अति आधुनिक स्टेल्थ विमानोँ और अन्य हवाई जहाज़ोँ का मिश्रण ही हो सकता है। ऋषि भारद्वाज कोई आधुनिक ‘फिक्शन राइटर’ तो थे नहीं। परन्तु ऐसे विमान की परिकल्पना करना ही आधुनिक बुद्धिजीवियों को चकित करता है, कि भारत के ऋषियों ने इस प्रकार के वैज्ञानिक माडल का विचार कैसे किया।


उन्होंने अंतरिक्ष जगत और अति-आधुनिक विमानों के बारे में लिखा जब कि विश्व के अन्य देश साधारण खेती-बाड़ी का ज्ञान भी हासिल नहीं कर पाये थे।


*🛩️चतुर्थ ग्रंथ :🛩️*


(४) कथा सरित सागर – यह ग्रन्थ उच्च कोटि के श्रमिकों (इंजीनियरोँ) का उल्लेख करता है जैसे कि काष्ठ का काम करने वाले जिन्हें राज्यधर और प्राणधर कहा जाता था। यह समुद्र पार करने के लिये भी रथों का निर्माण करते थे तथा एक सहस्त्र यात्रियों को ले कर उडने वाले विमानों को बना सकते थे। यह रथ विमान मन की गति से चलते थे।


*🛩️पंचम ग्रंथ :🛩️*


(५) अर्थशास्त्र - चाणक्य के अर्थशास्त्र में भी अन्य कारीगरों के अतिरिक्त सेविकाओं (पायलट) का भी उल्लेख है जो विमानों को आकाश में उड़ाती थी। चाणक्य ने उनके लिये विशिष्ट शब्द "आकाश युद्धिनाः" का प्रयोग किया है जिसका अर्थ है आकाश में युद्ध करने वाला (फाईटर-पायलट)


आकाश-रथ, का उल्लेख सम्राट अशोक के शिलालेखों में भी किया गया है जो उसके काल (२३७-२५६ ईसा पूर्व) में लगाये गये थे। 


भारद्वाज मुनि ने विमानिका शास्त्र मेँ लिखा हैं, -"विमान के रहस्यों को जानने वाला ही उसे चलाने का अधिकारी है।"


शास्त्रों में विमान चलाने के बत्तीस रहस्य बताए गए हैं। उनका भलीभाँति ज्ञान रखने वाला ही उसे चलाने का अधिकारी है। क्योँकि वहीँ सफल पायलट हो सकता है।


विमान बनाना, उसे जमीन से आकाश में ले जाना, खड़ा करना, आगे बढ़ाना टेढ़ी-मेढ़ी गति से चलाना या चक्कर लगाना और विमान के वेग को कम अथवा अधिक करना उसे जाने बिना यान चलाना असम्भव है।


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*▪️अब हम कुछ विमान रहस्योँ की चर्चा करेँगे।*


(१) कृतक रहस्य - बत्तीस रहस्यों में यह तीसरा रहस्य है, जिसके अनुसार हम विश्वकर्मा , छायापुरुष, मनु तथा मयदानव आदि के विमान शास्त्रोँ के आधार पर आवश्यक धातुओं द्वारा इच्छित विमान बना सकते , इसमें हम कह सकते हैं कि यह हार्डवेयर यानी कल-पुर्जोँ का वर्णन है।


(२) गूढ़ रहस्य - यह पाँचवा रहस्य है जिसमें विमान को छिपाने (स्टील्थ मोड) की विधि दी गयी है। इसके अनुसार वायु तत्व प्रकरण में कही गयी रीति के अनुसार वातस्तम्भ की जो आठवीं परिधि रेखा है उस मार्ग की यासा , वियासा तथा प्रयासा इत्यादि वायु शक्तियों के द्वारा सूर्य किरण हरने वाली जो अन्धकार शक्ति है, उसका आकर्षण करके विमान के साथ उसका सम्बन्ध बनाने पर विमान छिप जाता है।


(३) अपरोक्ष रहस्य - यह नौँवा रहस्य है। इसके अनुसार शक्ति तंत्र में कही गयी रोहिणी विद्युत के फैलाने से विमान के सामने आने वाली वस्तुओं को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।


(४) संकोचा - यह दसवाँ रहस्य है। इसके अनुसार आसमान में उड़ने समय आवश्यकता पड़ने पर विमान को छोटा करना।


(५) विस्तृता - यह ग्यारहवाँ रहस्य है। इसके अनुसार आवश्यकता पड़ने पर विमान को बड़ा या छोटा करना होता है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि वर्तमान काल में यह तकनीक १९७० के बाद विकसित हुई है।


(६) सर्पागमन रहस्य - यह बाइसवाँ रहस्य है जिसके अनुसार विमान को सर्प के समान टेढ़ी - मेढ़ी गति से उड़ाना संभव है। इसमें कहा गया है दण्ड, वक्र आदि सात प्रकार के वायु और सूर्य किरणों की शक्तियों का आकर्षण करके यान के मुख में जो तिरछें फेंकने वाला केन्द्र है, उसके मुख में उन्हें नियुक्त करके बाद में उसे खींचकर शक्ति पैदा करने वाले नाल में प्रवेश कराना चाहिए। इसके बाद बटन दबाने से विमान की गति साँप के समान टेढ़ी - मेढ़ी हो जाती है।


(७) परशब्द ग्राहक रहस्य - यह पच्चीसवाँ रहस्य है। इसमें कहा गया है कि शब्द ग्राहक यंत्र विमान पर लगाने से उसके द्वारा दूसरे विमान पर लोगों की बात-चीत सुनी जा सकती है।


(८) रूपाकर्षण रहस्य - इसके द्वारा दूसरे विमानों के अंदर का दृश्य देखा जा सकता है।


(९) दिक्प्रदर्शन रहस्य - दिशा सम्पत्ति नामक यंत्र द्वारा दूसरे विमान की दिशा का पता चलता है।


(९) स्तब्धक रहस्य - एक विशेष प्रकार का अपस्मार नामक गैस स्तम्भन यंत्र द्वारा दूसरे विमान पर छोड़ने से अंदर के सब लोग मूर्छित हो जाते हैं।


(१०) कर्षण रहस्य - यह बत्तीसवाँ रहस्य है, इसके अनुसार आपके विमान का नाश करने आने वाले शत्रु के विमान पर अपने विमान के मुख में रहने वाली वैश्र्‌वानर नाम की नली में ज्वालिनी को जलाकर सत्तासी लिंक (डिग्री जैसा कोई नाप है) प्रमाण हो, तब तक गर्म कर फिर दोनों चक्कल की कीलि (बटन) चलाकर शत्रु विमानों पर गोलाकार दिशा से उस शक्ति की फैलाने से शत्रु का विमान नष्ट हो जाता है।


"विमान-शास्त्री महर्षि शौनक" आकाश मार्ग का पाँच प्रकार का विभाजन करते हैं तथा "महर्षि धुण्डीनाथ" विभिन्न मार्गों की ऊँचाई पर विभिन्न आवर्त्त या तूफानोँ का उल्लेख करते हैं और उस ऊँचाई पर सैकड़ों यात्रा पथों का संकेत देते हैं। इसमें पृथ्वी से १०० किलोमीटर ऊपर तक विभिन्न ऊँचाईयों पर निर्धारित पथ तथा वहाँ कार्यरत शक्तियों का विस्तार से वर्णन करते हैं।


आकाश मार्ग तथा उनके आवर्तों का वर्णन निम्नानुसार है -


(१) १० किलोमीटर - रेखा पथ - शक्त्यावृत्त तूफान या चक्रवात आने पर


(२) ५० किलोमीटर - वातावृत्त - तेज हवा चलने पर


(३) ६० किलोमीटर - कक्ष पथ - किरणावृत्त सौर तूफान आने पर


(४) ८० किलोमीटर - शक्तिपथ - सत्यावृत्त बर्फ गिरने पर


एक महत्वपूर्ण बात विमान के पायलटोँ को विमान मेँ तथा पृथ्वी पर किस तरह भोजन करना चाहिए इसका भी वर्णन है


उस समय के विमान आज से कुछ भिन्न थे। आज के विमान की उतरने की जगह (लैँडिग) निश्चित है, पर उस समय विमान कहीं भी उतर सकते थे।


अतः युद्ध के दौरान जंगल में उतरना पड़ा तो जीवन निर्वाह कैसे करना चाहिए, इसीलिए १०० वनस्पतियों का वर्णन दिया गया है, जिनके सहारे दो-तीन माह जीवन चलाया जा सकता है। जब तक दूसरे विमान आपको खोज नहीँ लेते।


विमानिका शास्त्र में कहा गया है कि पायलट को विमान कभी खाली पेट नहीं उड़ाना चाहिए। १९९० में अमेरिकी वायुसेना ने १० वर्ष के निरीक्षण के बाद ऐसा ही निष्कर्ष निकाला है।


अब जरा विमानोँ मेँ लगे यंत्रोँ और उपकरणोँ के बारे मेँ तथ्य प्रस्तुत कियेँ जाएं -


"विमानिका-शास्त्र" में ३१ प्रकार के यंत्र तथा उनके विमान में निश्चित स्थान का वर्णन मिलता है। इन यंत्रों का कार्य क्या है इसका भी वर्णन किया गया है। कुछ यंत्रों की जानकारी निम्नानुसार है -


(१) विश्व क्रिया दर्पण - इस यंत्र के द्वारा विमान के आसपास चलने वाली गतिविधियों का दर्शन पायलट को विमान के अंदर होता था, इसे बनाने में अभ्रक तथा पारा आदि का प्रयोग होता था।


(२) परिवेष क्रिया यंत्र - ये यंत्र विमान की गति को नियंत्रित करता था।


(३) शब्दाकर्षण मंत्र - इस यंत्र के द्वारा २६ किमी. क्षेत्र की आवाज सुनी जा सकती थी तथा पक्षियों की आवाज आदि सुनने से विमान को "पक्षी-टकराने" जैसी दुर्घटना से बचाया जा सकता था।


(४) गर्भ-गृह यंत्र - इस यंत्र के द्वारा जमीन के अन्दर विस्फोटक खोजा जाता था।


(५) शक्त्याकर्षण यंत्र - इस यंत्र का कार्य था, विषैली किरणों को आकर्षित कर उन्हें ऊष्णता में परिवर्तित करना और ऊष्णता के वातावरण में छोड़ना।


(६) दिशा-दर्शी यंत्र - ये दिशा दिखाने वाला यंत्र था (कम्पास)।


(७) वक्र प्रसारण यंत्र - इस यंत्र के द्वारा शत्रु विमान अचानक सामने आ गया, तो उसी समय पीछे मुड़ना संभव होता था।


(८) अपस्मार यंत्र - युद्ध के समय इस यंत्र से विषैली गैस छोड़ी जाती थी।


(९) तमोगर्भ यंत्र - इस यंत्र के द्वारा शत्रु युद्ध के समय विमान को छिपाना संभव था। तथा इसके निर्माण में तमोगर्भ लौह प्रमुख घटक रहता था।


"विमानिका-शास्त्र" मेँ विमान को संचालित करने हेतु विभिन्न ऊर्जा स्रोतोँ का वर्णन किया गया है, *महर्षि भारद्वाज इसके लिए तीन प्रकार के ऊर्जा स्रोतों उल्लेख करते हैं।*

(१) विभिन्न दुर्लभ वनस्पतियोँ का तेल - ये ईँधन की भाँति काम करता था।

(२) पारे की भाप - प्राचीन शास्त्रों में इसका शक्ति के रूप में उपयोग किए जाने का वर्णन है। इसके द्वारा अमेरिका में विमान उड़ाने का प्रयोग हुआ, पर वह जब ऊपर गया, तब उसमेँ विस्फोट हो गया। पर यह सिद्ध हो गया कि पारे की भाप का ऊर्जा की तरह प्रयोग हो सकता है, इस दिशा मेँ अभी और कार्य करने बाकी हैँ।

(३) सौर ऊर्जा - सूर्य की ऊर्जा द्वारा भी विमान संचालित होता था। सौर ऊर्जा ग्रहण कर विमान उड़ाना जैसे समुद्र में पाल खोलने पर नाव हवा के सहारे तैरता है। इसी प्रकार अंतरिक्ष में विमान वातावरण से सूर्य शक्ति ग्रहण कर चलता रहेगा। सेटेलाइट इसी प्रक्रिया द्वारा चलते हैँ।


"विमानिका-शास्त्र" मेँ महर्षि भारद्वाज विमान बनाने के लिए आवश्यक धातुओँ का वर्णन किया है, पर प्रश्न उठता है कि क्या "विमानिका-शास्त्र" ग्रंथ का कोई ऐसा भाग है जिसे प्रारंभिक तौर पर प्रयोग द्वारा सिद्ध किया जा सके ?


यदि कोई ऐसा भाग है, तो क्या इस दिशा में कुछ प्रयोग हुए हैं?


क्या उनमें कुछ सफलता मिली है


सौभाग्य से इन प्रश्नों के उत्तर हाँ में दिए जा सकते हैं।


हैदराबाद के डॉ. श्रीराम प्रभु ने "विमानिक-शास्त्र" ग्रंथ के यंत्राधिकरण को देखा , तो उसमें वर्णित ३१ यंत्रों में कुछ यंत्रों की उन्होंने पहचान की तथा इन यंत्रों को बनाने वाली मिश्र धातुओं का निर्माण सम्भव है या नहीं , इस हेतु प्रयोंग करने का विचार उनके मन में आया। प्रयोग हेतु डॉ. प्रभु तथा उनके साथियों ने हैदराबाद स्थित बी. एम. बिरला साइंस सेन्टर के सहयोग से प्राचीन भारतीय साहित्य में वर्णित धातुएं, दर्पण आदि का निर्माण प्रयोगशाला में करने का प्रकल्प किया और उसके परिणाम आशाष्पद हैं।


अपने प्रयोंगों के आधार पर प्राचीन ग्रंथ में वर्णित वर्णन के आधार पर दुनिया में अनुपलब्ध कुछ धातुएं बनाने में उन्हेँ सफलता मिली है।


(१) प्रथम धातु है "तमोगर्भ-लौह" इसके बारे मेँ हमने अभी ऊपर बताया है, विमानिका-शास्त्र में वर्णन है कि यह विमान को अदृश्य (स्टील्थ मोड मेँ डालने) करने के काम आता है। इस पर प्रकाश छोड़ने से ये ७५ से ८० प्रतिशत प्रकाश को सोख लेता है। यह धातु रंग में काली तथा लेड से कठोर तथा कान्सन्ट्रेटेड सल्फ्‌यूरिक एसिड में भी नहीं गलती।

(२) दूसरी धातु जो उन्होँने बनाई है, उसका नाम है पंच लौह, यह रंग में स्वर्ण जैसी है तथा कठोर व भारी है। ताँबा आधारित इस मिश्र धातु की विशेषता यह है, कि इसमें सीसे का प्रमाण ७.९५ प्रतिशत है, जबकि अमेरिकन सोसायटी ऑफ मेटल्स ने कॉपर बेस्ड मिश्र धातु में सीसे का अधिकतम प्रमाण ०.३५ से ३ प्रतिशत संभव है यह माना है। इस प्रकार ७.९५ सीसे के मिश्रण वाली यह धातु विचित्र गुणोँ से परिपूर्ण है।

(३) तीसरी धातु का नाम है"ऑरर" यह ताँबा आधारित मिश्र धा।


इन अध्ययनोँ पर बनारस विश्वविद्यालय के एक रीडर ने कहा था


"This is the Study of Various Materials Described in Vimanika Shastra of Great Maharshi Bharadwaja"


इस प्रकल्प के तहत उन्होंने महर्षि भारद्वाज वर्णित दर्पण बनाने का प्रयत्न नेशनल मेटलर्जिकल लेबोरेटरी जमशेदपुर में किया तथा वहाँ के निदेशक पी.रामचन्द्र राव के साथ प्रयोग कर एक विशेष प्रकार का कांच बनाने में सफलता प्राप्त की, जिसका नाम "प्रकाश स्तंभनभिद् लौह" है। इसकी विशेंषता है कि यह दर्शनीय प्रकाश को सोखता है तथा इन्फ्रारेड प्रकाश को जाने देता है। इसका निर्माण कचर लौह – सिलिका, भूचक्र सुरमित्रादिक्षर - चूना

अयस्कान्त - इन खनिजोँ के द्वारा, अंशुबोधिनी में वर्णित विधि से किया गया है।


प्रकाश स्तंभनभिद् लौह की यह विशेषता है कि यह पूरी तरह से नॉन-हाईग्रोस्कोपिक है, नॉन-हाईग्रोस्कोपिक काँचों में पानी की भाप या वातावरण की नमी से उनका पॉलिश नहीँ हटता है, और वे सुरक्षित रहते हैं।


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RSS नमस्ते सदा वत्सले

 *RSS की प्रार्थना का हिन्दी में अनुवाद ... पढ़ो और सोचिये कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भारत माता के प्रति भावना क्या है 🚩*


*1. नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोsहम्। 🚩*

हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है। 🚩


*2. महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।। १।। 🚩*

हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ। 🚩


*3. प्रभो शक्ति मन्हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता, इमे सादरं त्वाम नमामो वयम् त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं, शुभामाशिषम देहि तत्पूर्तये। 🚩*

हे सर्वशक्तिशाली परमेश्वर! हम हिन्दूराष्ट्र के सुपुत्र तुझे आदर सहित प्रणाम करते है। तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी है। उसकी पूर्ति के लिए हमें अपना शुभाशीर्वाद दे। 🚩


*4. अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम, सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्, श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं, स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्।। २।। 🚩*

हे प्रभु! हमें ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये। ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये। 🚩


*5. समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं, परं साधनं नाम वीरव्रतम्*

*तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा, हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राsनिशम्। 🚩*

उग्र वीरव्रती की भावना हम में उत्स्फूर्त होती रहे, जो उच्चतम आध्यात्मिक सुख एवं महानतम ऐहिक समृद्धि प्राप्त करने का एकमेव श्रेष्ठतम साधन है। तीव्र एवं अखंड ध्येयनिष्ठा हमारे अंतःकरणों में सदैव जागती रहे। 🚩


*6. विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्, विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्। परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।। ३।। ।। भारत माता की जय।। 🚩*

हे माँ तेरी कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने में समर्थ हो। भारत माता की जय।.. 🚩


*अब आप ही विचार करे कि RSS की विचारधारा कैसी है... 🚩*