सभी नवग्रहों में शनि देव सबसे धीमी गति से चलते हैं और शनैः शनैः व्यक्ति को जीवन में अनेक प्रकार की सीख देते हैं। कुंडली में शनि की महादशा लगभग 19 वर्ष तक रहती है। लगभग 30 वर्ष में यह सभी 12 राशियों में भ्रमण का एक चक्कर पूरा करते हैं। शनि की ढैया और साढ़ेसाती विशिष्ट रूप से लोगों के दिमाग में अंकित है। क्योंकि कुछ लोगों द्वारा ऐसा बताया जाता है कि शनि की ढैया और साढ़ेसाती काफी बुरे परिणाम देती है, जबकि वास्तव में स्थिति बिल्कुल ऐसी नहीं है। शनिदेव की कृपा पाने का सबसे अच्छा तरीका है अपने कर्मों को अच्छा रखना इसलिए जब शनि की महादशा या शनि का गोचर ढैय्या अथवा साढ़ेसाती के रूप में आता है तो आपके कर्मों का हिसाब होता है।
शनि की साढ़े साती क्या है?
शनि की साढ़े साती वास्तव में शनि का गोचर ही है। जिस प्रकार अन्य ग्रह अपना गोचर करते हैं उसी प्रकार शनि ग्रह भी गोचर करता है। सबसे मंद गति से चलने के कारण शनि को शनैश्चर भी कहा जाता है। शनि ग्रह का गोचर एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहता है। गोचर के दौरान जब शनि ग्रह जन्म कालीन चन्द्र से बारहवें भाव में प्रवेश करते हैं तो साढ़ेसाती का आरंभ माना जाता है। इसके बाद जब शनि का गोचर जन्म कालीन चंद्रमा पर अर्थात चंद्र राशि जिसे हम पहला भाव भी कहते हैं, उस पर होता है तो साढ़ेसाती मध्य में होती है और यह साढ़ेसाती का दूसरा चरण कहलाता है और अंत में जब शनि जन्म कालीन चंद्रमा से दूसरे भाव मे गोचर करता है तो यह अवधि साढ़ेसाती का अंतिम अर्थात तीसरा चरण कहलाती है। इस प्रकार चंद्रमा द्वारा अधिष्ठित राशि से बारहवें भाव से प्रारंभ होकर,चंद्र राशि से गुजरते हुए चंद्रमा से द्वितीय भाव में रहने तक की अवधि कुल मिलाकर तीन भावों में ढाई-ढाई वर्ष जोड़ने के बाद 7.5 वर्ष की होती है। इसी के आधार पर इसे साढ़ेसाती कहा जाता है।
चंद्रमा मन का कारक है और शनि उस मन को नियंत्रित करने वाला अर्थात व्यक्ति को सीख देने वाले होते हैं। ऐसे में साढ़ेसाती की अवस्था में चंद्रमा पर शनि का विशेष प्रभाव होने के कारण आमतौर पर साढ़ेसाती मानसिक तनाव देने वाली होती है और ऐसे में व्यक्ति को अधिक मेहनत भी करनी पड़ती है। साढ़ेसाती के दौरान आप शनिवार के उपाय अथवा शनि चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं जिनके द्वारा शनिदेव की कृपा सहज ही प्राप्त हो सकती है। शनिदेव की कृपा पाने के लिए आप शनिवार के दिन धतूरे की जड़ धारण कर सकते हैं अथवा उत्तम गुणवत्ता का नीलम रत्न भी पहन सकते हैं। इसके अतिरिक्त सात मुखी रुद्राक्ष पहनना या फिर शनि यंत्र की स्थापना कर उसकी नियमित रूप से पूजा करना भी शनिदेव की कृपा प्राप्ति का सहज उपाय है।
शनि की साढ़ेसाती के विभिन्न चरण
जैसा कि ऊपर हमने जाना कि शनि की साढ़ेसाती के कुल मिलाकर 3 चरण होते हैं। यदि सामान्य रूप से देखें तो पहला चरण वृषभ, सिंह और धनु राशि वाले जातकों के लिए थोड़ा कष्टकारी हो सकता है। दूसरा चरण जिसे मध्य चरण भी कहा जाता है वह मेष, कर्क, सिंह, और वृश्चिक राशि के जातकों के लिए अधिक अनुकूल नहीं माना जाता। तीसरा अर्थात अंतिम चरण विशेष रूप से मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक और मीन राशि वाले जातकों के लिए कष्टकारी माना गया है। लेकिन यह आवश्यक नहीं कि शनि की साढ़ेसाती सदैव ही कष्टकारी हो। यदि आपकी कुंडली में अच्छे योग हैं और शनि आपकी कुंडली के लिए अनुकूल फल देने वाला ग्रह है तो शनि की साढ़ेसाती आपके जीवन में खुशियों का अंबार लगा सकती है।
शनि की साढ़ेसाती
हमारी इस शनि की साढ़े साती रिपोर्ट से हम आपको शनि ग्रह के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। शनि ग्रह को वैदिक ज्योतिष में कर्म का अधिष्ठाता ग्रह माना जाता है। शनि देव सूर्य देव तथा देवी छाया के पुत्र हैं और यम तथा यमि इनके भाई बहन हैं। यह पश्चिम दिशा पर अधिकार रखते हैं और इनकी वात प्रकृति है। इनके दस विशेष नाम कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्रन्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मंद और पिप्पलाद हैं। शनिदेव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं तथा तुला राशि में उच्च के स्थिति में होते हैं तो मेष राशि में नीच अवस्था में माने जाते हैं। पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र शनिदेव के आधिपत्य क्षेत्र में आते हैं। शनिदेव व्यक्ति को किए गए कर्मों के अनुसार फल देते हैं। यदि कर्म अच्छे हैं तो व्यक्ति को रंक से राजा बनने की काबिलियत शनिदेव देते हैं और यदि कर्म बुरे हैं तो राजा को रंक बनाते हुए उन्हें समय नहीं लगता।
शनि की साढ़े साती क्या है?
शनि की साढ़े साती वास्तव में शनि का गोचर ही है। जिस प्रकार अन्य ग्रह अपना गोचर करते हैं उसी प्रकार शनि ग्रह भी गोचर करता है। सबसे मंद गति से चलने के कारण शनि को शनैश्चर भी कहा जाता है। शनि ग्रह का गोचर एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहता है। गोचर के दौरान जब शनि ग्रह जन्म कालीन चन्द्र से बारहवें भाव में प्रवेश करते हैं तो साढ़ेसाती का आरंभ माना जाता है। इसके बाद जब शनि का गोचर जन्म कालीन चंद्रमा पर अर्थात चंद्र राशि जिसे हम पहला भाव भी कहते हैं, उस पर होता है तो साढ़ेसाती मध्य में होती है और यह साढ़ेसाती का दूसरा चरण कहलाता है और अंत में जब शनि जन्म कालीन चंद्रमा से दूसरे भाव मे गोचर करता है तो यह अवधि साढ़ेसाती का अंतिम अर्थात तीसरा चरण कहलाती है। इस प्रकार चंद्रमा द्वारा अधिष्ठित राशि से बारहवें भाव से प्रारंभ होकर,चंद्र राशि से गुजरते हुए चंद्रमा से द्वितीय भाव में रहने तक की अवधि कुल मिलाकर तीन भावों में ढाई-ढाई वर्ष जोड़ने के बाद 7.5 वर्ष की होती है। इसी के आधार पर इसे साढ़ेसाती कहा जाता है।
चंद्रमा मन का कारक है और शनि उस मन को नियंत्रित करने वाला अर्थात व्यक्ति को सीख देने वाले होते हैं। ऐसे में साढ़ेसाती की अवस्था में चंद्रमा पर शनि का विशेष प्रभाव होने के कारण आमतौर पर साढ़ेसाती मानसिक तनाव देने वाली होती है और ऐसे में व्यक्ति को अधिक मेहनत भी करनी पड़ती है। साढ़ेसाती के दौरान आप शनिवार के उपाय अथवा शनि चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं जिनके द्वारा शनिदेव की कृपा सहज ही प्राप्त हो सकती है। शनिदेव की कृपा पाने के लिए आप शनिवार के दिन धतूरे की जड़ धारण कर सकते हैं अथवा उत्तम गुणवत्ता का नीलम रत्न भी पहन सकते हैं। इसके अतिरिक्त सात मुखी रुद्राक्ष पहनना या फिर शनि यंत्र की स्थापना कर उसकी नियमित रूप से पूजा करना भी शनिदेव की कृपा प्राप्ति का सहज उपाय है।
शनि की साढ़ेसाती के विभिन्न चरण
जैसा कि ऊपर हमने जाना कि शनि की साढ़ेसाती के कुल मिलाकर 3 चरण होते हैं। यदि सामान्य रूप से देखें तो पहला चरण वृषभ, सिंह और धनु राशि वाले जातकों के लिए थोड़ा कष्टकारी हो सकता है। दूसरा चरण जिसे मध्य चरण भी कहा जाता है वह मेष, कर्क, सिंह, और वृश्चिक राशि के जातकों के लिए अधिक अनुकूल नहीं माना जाता। तीसरा अर्थात अंतिम चरण विशेष रूप से मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक और मीन राशि वाले जातकों के लिए कष्टकारी माना गया है। लेकिन यह आवश्यक नहीं कि शनि की साढ़ेसाती सदैव ही कष्टकारी हो। यदि आपकी कुंडली में अच्छे योग हैं और शनि आपकी कुंडली के लिए अनुकूल फल देने वाला ग्रह है तो शनि की साढ़ेसाती आपके जीवन में खुशियों का अंबार लगा सकती है।
शनि की साढ़ेसाती
हमारी इस शनि की साढ़े साती रिपोर्ट से हम आपको शनि ग्रह के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। शनि ग्रह को वैदिक ज्योतिष में कर्म का अधिष्ठाता ग्रह माना जाता है। शनि देव सूर्य देव तथा देवी छाया के पुत्र हैं और यम तथा यमि इनके भाई बहन हैं। यह पश्चिम दिशा पर अधिकार रखते हैं और इनकी वात प्रकृति है। इनके दस विशेष नाम कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्रन्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मंद और पिप्पलाद हैं। शनिदेव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं तथा तुला राशि में उच्च के स्थिति में होते हैं तो मेष राशि में नीच अवस्था में माने जाते हैं। पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र शनिदेव के आधिपत्य क्षेत्र में आते हैं। शनिदेव व्यक्ति को किए गए कर्मों के अनुसार फल देते हैं। यदि कर्म अच्छे हैं तो व्यक्ति को रंक से राजा बनने की काबिलियत शनिदेव देते हैं और यदि कर्म बुरे हैं तो राजा को रंक बनाते हुए उन्हें समय नहीं लगता।
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